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विश्व हीमोफीलिया दिवस आज : 10,000 में से दो मरीज बीमारी से पीड़ित, …जानें क्‍या है हीमोफीलिया

पीएमसीएच के भरोसे हीमोफीलिया के मरीज पटना : हीमोफीलिया एक खतरनाक बीमारी है. आनुवंशिक बीमारी होने के कारण यह पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों में पहुंचती है. महिलाओं के अपेक्षा यह बीमारी पुरुषों में अधिक पायी जाती है. बिहार में इसके इलाज की समुचित सुविधा नहीं है. राजधानी को ही लें केवल पीएमसीएच में ही इस […]

पीएमसीएच के भरोसे हीमोफीलिया के मरीज
पटना : हीमोफीलिया एक खतरनाक बीमारी है. आनुवंशिक बीमारी होने के कारण यह पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों में पहुंचती है. महिलाओं के अपेक्षा यह बीमारी पुरुषों में अधिक पायी जाती है. बिहार में इसके इलाज की समुचित सुविधा नहीं है.
राजधानी को ही लें केवल पीएमसीएच में ही इस रोग की दवा है. पीएमसीएच में हर महीने तीन से चार मरीज इस बीमारी के आते हैं. पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हीमोफीलिया की जांच होती है. अस्पताल प्रशासन की ओर से इंजेक्शन व दवाओं का इंतजाम है. लेकिन, शहर के बाकी सरकारी अस्पतालों में इन दिनों हीमोफीलिया की दवाएं नहीं है. हीमोफीलिया का इंजेक्शन लेने के लिए मरीजों को पीएमसीएच जाना पड़ता है. ऐसे में यहां भी अक्सर दवाएं खत्म होती हैं. नतीजन मरीजों को बाहर के दुकानों का सहारा लेना पड़ता है. जबकि, इस बीमारी की दवाएं काफी महंगी आती हैं. इस बीमारी के प्रति जागरुकता के लिए हर साल विश्व हीमोफीलिया दिवस 17 अप्रैल को मनाया जाता है.
क्या है हीमोफीलिया
गार्डिनर रोड अस्पताल के अधीक्षक डॉ मनोज कुमार ने बताया कि हीमोफीलिया एक आनुवंशिक बीमारी है, जो माता-पिता से उनके बच्चों में पहुंचती है. यह दो प्रकार की होती है. इसको हीमोफीलिया ए व हीमोफीलिया बी दो वर्गों में बांटा गया है. हीमोफीलिया ए में फैक्टर-8 की मात्रा बहुत कम या शून्य हो जाती है. हीमोफीलिया बी में फैक्टर-9 की मात्रा शून्य या बहुत कम होने पर होता है. इन मरीजों में लगभग 80 प्रतिशत हीमोफीलिया ए के रोगी होते हैं. जबकि, हीमोफीलिया बी के कम मामले सामने आते हैं. यह क्रोमोजोम की कार्य प्रणाली बिगड़ने से होता है. इसमें रक्तस्राव बहुत तेज होता है.
इस रोग में चोट या कट जाने पर शरीर से तेजी से खून निकलता है. वह रुकता नहीं है. दरअसल बाहर निकल रहे रक्त को जमाने वाले तत्व की कमी हो जाती है. यह बीमारी थ्राम्बोप्लास्टिन नामक पदार्थ की कमी से होती है. ये पदार्थ बाहर निकलने वाले रक्त को जमा देते हैं, जिससे ज्यादा खून बाहर नहीं निकल पाता है.
क्यों है खतरनाक यह बीमारी
इससे पीड़ित मरीजों का खून का थक्का नहीं बनता है. यहां तक कि शरीर के अंदर के अंग जैसे लिवर, किडनी, मसल्स से भी खून बहने लगता है.
इस तरह से होता है इलाज
इसका इलाज जेनेटिक इंजीनियरिंग से होता है. फैक्टर-8 (काबुलेशन फैक्टर) ट्रांसफ्यूज होता है. प्लाज्मा चढ़ा कर भी रक्तस्राव रोका जा सकता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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