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NDA छोड़ महागठबंधन में मांझी, 4 कांग्रेस MLC जदयू में, जानिए कैसे शुरू हुआ इनके बीच राजनीतिक उठापटक

पटना : बिहार में भाजपा के साथ जदयू की सरकार के गठन के बाद दोनों गठबंधनों में चल रही बयानबाजी बुधवार को वास्तविक रूप लेने लगी. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व एमएलसी अशोक चौधरी ने अपने साथ पार्टी के तीन अन्य एमएलसी रामचंद्र भारती, तनवीर अख्तर और दिलीप चौधरी के साथ जदयू में शामिल […]

पटना : बिहार में भाजपा के साथ जदयू की सरकार के गठन के बाद दोनों गठबंधनों में चल रही बयानबाजी बुधवार को वास्तविक रूप लेने लगी. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व एमएलसी अशोक चौधरी ने अपने साथ पार्टी के तीन अन्य एमएलसी रामचंद्र भारती, तनवीर अख्तर और दिलीप चौधरी के साथ जदयू में शामिल होने की घोषणा की.
इसके पहले एनडीए में नाराज चल रहे पूर्व मुख्यमंत्री व हम (सेक्यूलर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने राजद नीत महागठबंधन में शामिल होने का एलान किया. विधानमंडल की कार्यवाही के समाप्त होते ही राजधानी में राजनीतिक हलचल अचानक बढ़ गयी.
सुबह में ही विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव से मुलाकात के बाद मांझी ने एनडीए छोड़ने और महागठबंधन का हिस्सा बनने की घोषणा कर दी थी. हालांकि उन्होंने इसकी औपचारिक घोषणा रात आठ बजे संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में की.
इधर कांग्रेस में बागी चल रहे अशोक चौधरी ने शाम पांच बजे ही विधान परिषद सभापति से मिलकर कांग्रेस के चार एमएलसी की स्थिति के बारे में अवगत करा दिया. इन चारों एमएलसी ने जीतन राम मांझी के प्रेस काॅन्फ्रेंस करने के बाद जदयू में शामिल होने की औपचारिक घोषणा कर दी.
हालांकि प्रेस काॅन्फ्रेंस के पहले ही कांग्रेस ने इन चारों एमएलसी को पार्टी से निकालने का एलान कर दिया था. अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव के पहले एनडीए के दलित चेहरे जीतन राम मांझी, जदयू के दलित चेहरे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी और श्याम रजक के बागी सुर निकलने लगे थे. इधर कांग्रेस के दलित चेहरे अशोक चौधरी ने भी बगावती रुख अख्तियार कर लिया था.
अररिया लोकसभा उपचुनाव की घोषणा होने के बाद जदयू विधायक सरफराज अलाम ने पार्टी का साथ छोड़ दिया और वे राजद के टिकट पर अपने पिता व राजद सांसद तस्लीमुद्दीन की सीट पर उपचुनाव में उतर गये. जीतन राम मांझी के राजद के साथ जाने पर जदयू ने डैमेज कंट्रोल की नीति अख्तियार की.
उपचुनाव में कोई राजनीतिक संदेश जाये, इसके पहले ही कांग्रेस के अशोक चौधरी को जदयू में आने से भरपाई हो गयी. इसके अलावा सरफराज अालम के राजद में जाने की भरपाई कांग्रेस के तनवीर अख्तर के जदयू में जाने से हो गयी है. इसके साथ ही जदयू में एक पिछड़ा नेता रामचंद्र भारती और सवर्ण नेता दिलीप चौधरी के पार्टी में आने का राजनीतिक संकेत दिया जा सकता है.
कैसे शुरू हुआ राजनीतिक उठापटक
26 जुलाई, 2017 को बिहार की राजनीति फिर से पुराने रास्ते पर लौटी थी. तब महागठबंधन में शामिल जदयू के मुखिया नीतीश कुमार राजद व कांग्रेस का साथ छोड़ एनडीए में शामिल हो गये. 2015 में नये समीकरण में महागठबंधन की सरकार बनने के 20 माह बाद ही यह गठबंधन बिखर गया. इसका असर दोनों गठबंधनों में शामिल दलों व नेताओं पर साफ झलकने लगा.
जदयू के एनडीए में शामिल होने के बाद एनडीए के घटक दलों में शामिल रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार से बागी होकर मुख्यमंत्री बने जीतन राम मांझी को एनडीए में असहजता दिखने लगी. जीतन राम मांझी अपनी भावना का रह-रह कर प्रकट भी करते रहे. हाल में राज्य में होनेवाले अररिया लोकसभा और जहानाबाद व भभुआ विधानसभा उपचुनाव को लेकर एक सीट पर दावा ठोक दिया.
सीट नहीं मिलने के बाद वह पूरी तरह से एनडीए में असंतुष्ट दिखने लगे थे. इधर राजद से उनकी नजदीकी बढ़ने लगी थी. इस बात को विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने कई बार सार्वजनिक रूप से बताया कि जीतन राम मांझी राजद गठबंधन के साथ आ सकते हैं. दोनों दलों के बीच पक रही खिचड़ी बुधवार को तैयार हो गयी.
नीतीश कुमार के फैसलों से दलितों व गरीबों को झटका लगा है. शराबबंदी में करीब 90 हजार लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, जिनमें 90% दलित व गरीब हैं.
जीतन राम मांझी
जिस पार्टी में सम्मान ही नहीं है, वहां रहकर क्या करेंगे. हमारे साथ कांग्रेस के कई विधायक भी हैं. समय आने पर सब पता चल जायेगा. नीतीश कुमार आइडियल नेता हैं.
अशोक चौधरी
पहले से एक-दूसरे के गठबंधन में सेंधमारी का हो रहा था प्रयास
हम व रालोसपा को महागठबंधन में आने का राजद ने दिया था ऑफर
राजद ने हम के अध्यक्ष जीतन राम मांझी और रालोसपा के अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को महागठबंधन में आने का खुला ऑफर दिया था. साथ ही राजद नेता दावा करते रहे कि एनडीए के घटक दलों के कई नेता उनके संपर्क में हैं. जब उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार में शिक्षा में सुधार को लेकर मानव कतार का अायोजन किया तो राजद नेता उनके साथ खड़े हुए, जबकि एनडीए के नेता इससे दूर रहे. इसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा के राजद से हाथ मिलाने की अटकलें शुरू हो गयी थीं. हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने इसे बेबुनियाद करार दिया था.
लेकिन, उपचुनाव में जहानाबाद विधानसभा सीट नहीं मिलने और राज्यसभा की एक सीट की मांग पर एनडीए की चुप्पी से मांझी के नाराज होने की खबरों के बीच तेजस्वी प्रसाद यादव बुधवार की सुबह जब उनके आवास पर पहुंचे और मुलाकात की तो मांझी ने तुरंत राजद से हाथ मिलाने का एलान कर दिया.
कांग्रेस के तीन एमएलसी का नीतीश से रहा है बेहतर संबंध
महागठबंधन सरकार के सत्ता में आने के बाद अशोक चौधरी की सीएम नीतीश कुमार से नजदीकी बढ़ने लगी थी. नीतीश सरकार में उनको शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी िमली. सत्ता जाने के बाद भी उनकी नजदीकी नीतीश कुमार से बनी रही. इधर कांग्रेस ने पार्टी में टूट की अटकलों के बीच अशोक चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर कौकब कादरी को प्रभारी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया.
इससे अशोक चौधरी पहले दिन से ही असंतुष्ट हो गये. वे अपनी भावना को हर मौके पर प्रकट कर रहे थे. कांग्रेस के दूसरे एमएलसी दिलीप चौधरी अशोक चौधरी के करीबी माने जाते हैं. इधर राज्यपाल कोटे से एमएलसी बने रामचंद्र भारती कांग्रेस में रहते हुए भी नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे. इसे वे कभी छुपाते भी नहीं थे. तनवीर अख्तर ही शायद वह नाजुक कड़ी थे जिनके कारण कांग्रेस एमएलसी की टूट नहीं हो रही थी. आखिरकार उन्होंने भी इसमें अशोक चौधरी का साथ दिया.
Prabhat Khabar Digital Desk
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