पटना : लगता है विवाद और बिहार कांग्रेस कार्यालय का चोली दामन का साथ है. जब से कादरी कार्यकारी अध्यक्ष बने हैं, पार्टी में आपसी कलह तेज हो गयी है. कभी-कभार या आये दिन सदाकत आश्रम से किसी न किसी विवाद की खबर आती ही रहती है. ताजा मामला गणतंत्र दिवस के दिन का है, जब पार्टी के अंदर पूरी तरह गणतंत्र नहीं दिखा और कार्यकर्ता कौकब कादरी के सामने ही भिड़ गये. इस घटना के बाद राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि कौकब को बदनाम करने के लिए कुछ लोग इस तरह के कदम उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि ऐसा कुछ नहीं है, कौकब पूरी तरह बिहार प्रदेश कांग्रेस पार्टी को संभाल नहीं पा रहे हैं.
गौरतलब हो कि इससे पूर्व भी सदाकत आश्रम रणक्षेत्र में तब्दील रहा है. महागठबंधन टूटने का असर पार्टी पर दिखा था और गत वर्ष अक्तूबर महीने में पार्टी कार्यालय में जमकर झड़प हुई थी और पार्टी दो फाड़ में नजर आयी थी. कांग्रेस का पार्टी कार्यालय, सदाकत आश्रम जिसकी अपनी गरिमा है, उससे दूर-दूर तक हंगामा करने वालों को कोई मतलब नहीं है. अक्तूबर में हुई यह घटना बिहार कांग्रेस में पहला मौका था जब पार्टी की गरिमा सड़क पर यूं ही बेजार नजर आई और जनता के सामने ही पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं ने पार्टी के इज्जत की धज्जियां उड़ायीं थी, फटे कुर्ते और बनियान, पार्टी कार्यालय के बाहर धक्का-मुक्की और मारपीट ने पार्टी की अस्मिता को जनता के सामने उजागकर कर रख दिया था. इतना ही नहीं, भाजपा का विरोध करने वाली पार्टी में बैठक के दौरान पार्टी कार्यालय के बाहर नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे भी लगाये गये थे.
उस घटना में राजद को लेकर उपजे इस विवाद के बाद कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने वरिष्ठ नेताओं पर आरोप लगाया था कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने की साजिश चल रही है और इसका नतीजा कुछ ही दिनों में सामने आ गया, जब उन्हें पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर कौकब कादरी को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था. इसके बाद अशोक चौधरी ने पार्टी आलाकमान पर भी तीखे प्रहार किये और उसके बाद बिहार कांग्रेस दो गुटों में बंट गयी, एक गुट अशोक चौधरी का तो दूसरा कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी का था, इन दोनों गुटों में जमकर बयानबाजी जारी रही थी.
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