राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को रांची कोर्ट द्वारा शनिवार को साढ़े तीन साल की सजा सुनाने के बाद पार्टी ने लालू प्रसाद के दूसरे बेटे और विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद को सर्वमान्य नेता स्वीकार कर लिया है. पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी आवास पर आयोजित बैठक में शामिल होने वाले सभी शीर्ष नेताओं ने एक स्वर से इस बात को स्वीकारा कि तेजस्वी ही पार्टी के नेता है. उनके नेतृत्व में ही आगे का संघर्ष होगा. हालांकि चुनौतियां भी कम नहीं हैं जिससे उनको रूबरू होना होगा. 2019 में लोकसभा और 2020 में विधानसभा का चुनाव होना है. इतने दिनों तक पार्टी को जोड़ कर रखना और दूसरे दलों से एकजुटता बनाये रखना तेजस्वी की अग्निपरीक्षा से कम साबित नहीं होगी.
लालू प्रसाद के जेल जाने के पहले और बाद राजद के शीर्ष नेताओं से यह बात बार-बार पूछी जाती रही कि अब पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा. इसको लेकर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी, अब्दुल बारी सिद्दीकी ने स्पष्ट कहा कि इसको लेकर कोई सवाल नहीं है. उनका जवाब था कि जब पार्टी ने विरोधी दल के नेता के रूप में तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है तो फिर इस सवाल का कोई मतलब नहीं. उनका यह भी कहना था कि लालू भले ही जेल चले गये हैं पर अब भी कर्पूरी, लोहिया और उसको आगे बढ़ानेवाले लालू प्रसाद के विचार संघर्ष को धारदार बनाने के लिए पार्टी के पास थाती के रूप में है. इसी वैचारिक लड़ाई को आगे बढ़ाया जायेगा. इधर जब से राजद सत्ता से बाहर हुई है तब से पार्टी के अंदर से बगावत का स्वर भी नहीं उठा है. आवश्यकता पड़ने पर बड़े नेताओं ने एक साथ खड़े होकर लालू परिवार के साथ एकजुटता भी दिखायी. विरोधी दल के नेता तेजस्वी यादव के सामने 2019 में होनेवाले लोकसभा और 2020 में होनेवाले विधानसभा चुनाव को लेकर अन्य दलों को साथ जोड़ने की चुनौती होगी. लालू प्रसाद को जमानत नहीं मिलने पर उनको अकेले इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. अगर लालू प्रसाद जेल से बाहर निकल भी जाते हैं तो उनकी सक्रियता उस प्रकार की नहीं होगी.
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अपने लंबे राजनीतिक अनुभव के कारण अपने दल पर नियंत्रण रखने के साथ दूसरे दलों के साथ भी गठबंधन बनाने में कामयाब होते थे. सभी को लालू प्रसाद ने जोड़ कर रखा. इसमे चाहे वह शिवानंद तिवारी हों, मो अली अशरफ फातमी हो चाहे रघुनाथ झा हों. सभी लोगों ने लालू का साथ छोड़ा पर जब लौटने की बारी आयी तो लालू प्रसाद ने दरियादिली दिखायी. इधर सांप्रदायिकता के मामले पर लालू नीतीश कुमार के साथ भी खड़े रहे. जीतन राम मांझी सरकार को उन्होंने बाहर से समर्थन दिया. लालू प्रसाद का राजनीतिक अनुभव ही था कि बिहार में कभी उन्होंने लोजपा के साथ गठबंधन बनाया. 1990 के दशक से सत्ता से जा चुकी कांग्रेस को अपनी शर्तों पर साथ जोड़ कर रखा. आवश्यकता पड़ने पर उन्होंने वाम दलों को भी मनाने की कोशिश की. अब लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद दूसरे दलों के साथ तालमेल बनाना और उनको साथ जोड़कर रखने की चुनौती तेजस्वी प्रसाद यादव की होगी.