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शरद -अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता जाने के बाद अब क्या ?

पटना : आखिरकार शरद यादव का नीतीशका साथ छोड़ना रास नहीं आया.दशकोंतक एक ही पार्टी के धुरी रहे शरद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन की राजनीतिक रासलीला में शामिल हुए, शरद यादव विद्रोह का बिगुल बजाकर पार्टी के लिए विलेन बन गये,वहीं नीतीश कुमार ने बिहार हितको सर्वोपरिबताकरभाजपा केसाथ हो गये. शरद […]

पटना : आखिरकार शरद यादव का नीतीशका साथ छोड़ना रास नहीं आया.दशकोंतक एक ही पार्टी के धुरी रहे शरद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन की राजनीतिक रासलीला में शामिल हुए, शरद यादव विद्रोह का बिगुल बजाकर पार्टी के लिए विलेन बन गये,वहीं नीतीश कुमार ने बिहार हितको सर्वोपरिबताकरभाजपा केसाथ हो गये. शरद यादवद्वारालालू का पक्ष लेने के बाद जदयू नेउनपरहमला करना जारी कर दिया, परिणाम यह हुआ कि शरद पार्टी में अलग-थलग पड़ गये और अबअलीअनवर के साथ उनकी भी राज्यसभासदस्यतासमाप्त हो गयी.कहतेहैं कि सियासत में हमेशा संबंधोंकी परिभाषा राजनीतिकसमीकरणके हिसाब से गढ़ी जाती है. जब, पार्टी के ज्यादातर नेता नीतीश के फैसले के पक्ष में थे, उस वक्त शरद यादव को यह भांप जाना चाहिए था कि परिस्थितियां नीतीश कुमार के पक्ष में हैं, इसलिए उन्हें वक्त का इंतजार करना चाहिए. हालांकि, ऐसा नहीं हुआ.

अब अली अनवर और शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता समाप्त हो जाने के बाद, जदयू की वह सीट खाली हो गयी है. इतना ही नहीं बिहार जदयू के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह के अलावा अनिल कुमार साहनी और डॉ महेंद्र प्रसाद का भी अप्रैल 2018 में राज्यसभा सीट का कार्यकाल खत्म हो रहा है. क्या पार्टी इन लोगों को दोबारा राज्यसभा भेज पायेगी ? यह प्रश्न अभी हवा में तैर रहा है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जदयू कि इन सीटों के लिए जदयू में एक बार फिर घमसान मचने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ? उधर, शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता समाप्त होने के बाद जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि अब दोनों बैठकर शंख बजाएं.

गौर हो कि राज्यसभा सदस्यता समाप्त करने का मामला सभापति के यहां विचाराधीन था. जनता दल यू के नेता और राष्ट्रीय महासचिव आरसीपी सिंह ने वेंकैया नायडू को आवेदन देकर शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता समाप्त करने का अनुरोध किया था. दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद वेंकैया नायडू ने शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता समाप्त कर दी. दोनों को सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया गया है. शरद यादव और अली अनवर अंसारी पर दल विरोधी रुख अपनाने का आरोप था तथा इनके खिलाफ दल विरोधी गतिविधियों में भाग लेने की शिकायत को लेकर राज्यसभा के सभापति के यहां शिकायत की गयी थी.

अब पार्टी के अंदर सवाल उठने लगा है कि शरद यादव की सीट पर अब पार्टी की तरफ से राज्यसभा कौन पहुंचेगा?. शरद यादव का कार्यकाल 8 जुलाई 2016 से 7 जुलाई 2022 था. अब उनकी सदस्यता खत्म होने के बाद किसी का चुना जाना तय है. शरद यादव की सीट पर राज्यसभा पहुंचने वाले दावेदारों में कई नाम हैं लेकिन सूत्रों के मुताबिक इस पद के लिए जदयू के राष्ट्रीय महासचिव के सी त्यागी का नाम सबसे आगे है. इस रेस में पार्टी के महासचिव संजय झा का भी नाम है लेकिन विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक के सी त्यागी की दावेदारी ज्यादा मजबूत है. दोनों नेता नीतीश कुमार के काफी करीबी हैं और पार्टी के लिए दोनोें हमेशा संकटमोचक साबित हुए हैं. केसी त्यागी को खुले मंच पर भी नीतीश कुमार के साथ अक्सर देखा जाता है लेकिन संजय झा पर्दे के पीछे से पार्टी के लिए काम करते हैं.

आपको बता दें कि इससे पहले जुलाई 2016 में भी राज्यसभा के दो सीटों के लिए के सी त्यागी और संजय झा मजबूत दावेदार थे लेकिन पार्टी ने शरद यादव और आरसीपी सिंह पर भरोसा जताया था. हालांकि,अली अनवर की भी सदस्यस्ता खत्म हुई है लेकिन उनका कार्यकाल 2 अप्रैल 2018 को समाप्त हो रहा है और ऐसे में उनकी सीट पर चुनाव होनेे की उम्मीद नहीं है. महागठबंधन से नीतीश कुमार ने अलग होकर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनायी तो शरद यादव और अली अनवर अंसारी बिदक गए थे. दोनों ने खुलेआम न सिर्फ नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होने के फैसले की आलोचना की बल्कि नीतीश कुमार के दूसरे फैसलों का भी विरोध किया. इतना भी नहीं राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव द्वारा बुलाई गई भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली में शरद यादव और अली अनवर अंसारी ने भाग लिया था. जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा मना किए जाने के बावजूद दोनों नेताओं ने न सिर्फ रैली में भाग लिया बल्कि केंद्र और बिहार सरकार को लेकर सवाल भी खड़े किए थे.

सदस्यता समाप्त करने के राज्यसभा सभापति के फैसले से पहले चुनाव आयोग ने भी शरद यादव को झटका दिया था. शरद यादव ने जनता दल यूनाइटेड और तीर चुनाव चिह्न पर दावा जताते हुए भारत निर्वाचन आयोग में आवेदन दिया था. शरद यादव की ओर से अरुण कुशवाहा और मोहम्मद जावेद रजा चुनाव चिह्न और जनता दल यूनाइटेड पर अपना दावा जता रहे थे. शरद यादव द्वारा किये गये दावे के बाद नीतीश कुमार खेमे ने भी चुनाव आयोग में अपना दावा जताया था. दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद चुनाव आयोग ने नीतीश कुमार के पक्ष में फैसला दिया था तथा तीर चुनाव चिन्ह और जदयू और नीतीश कुमार का कब्जा बरकरार रह गया था. उसके बाद से यह साफ हो गया था कि शरद यादव और अली अनवर की सदस्यता खतरे में है.

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