10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

बिहार : भगत सिंह ने मां से कहा था, मैं भले फांसी चढ़ जाऊं, मेरी आत्मा बटुकेश्वर में ही रहेगी

पुष्यमित्र पटना : यह कहानी उस क्रांतिकारी की है, जिसे पंजाब ‘दत्त भगत सिंह’ के नाम से पुकारता है, क्योंकि फांसी से ठीक पहले भगत सिंह ने अपनी मां से कहा था कि मैं भले फांसी चढ़ जाऊं, मगर मेरी आत्मा बटुकेश्वर दत्त में ही रहेगी. भगत सिंह की मां ने ताउम्र इस बात का […]

पुष्यमित्र
पटना : यह कहानी उस क्रांतिकारी की है, जिसे पंजाब ‘दत्त भगत सिंह’ के नाम से पुकारता है, क्योंकि फांसी से ठीक पहले भगत सिंह ने अपनी मां से कहा था कि मैं भले फांसी चढ़ जाऊं, मगर मेरी आत्मा बटुकेश्वर दत्त में ही रहेगी. भगत सिंह की मां ने ताउम्र इस बात का ख्याल रखा. जब बटुकेश्वर कैंसर से पीड़ित हुए, तो उनके इलाज के लिए चंदा करके पैसा जुटाया, अस्पताल में उनकी तीमारदारी की, उनकी बेटी का धूमधाम से ब्याह कराया.
उस बटुकेश्वर दत्त को, जिनकी क्रांतिकारियों में भूमिका भगत सिंह और आजाद से कम नहीं थी, आजाद भारत में पटना की सड़कों पर कभी बिस्कुट बेचना पड़ा. बिहार विधान परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘विप्लवी बटुकेश्वर दत्त’ के लेखक भैरवलाल दास कहते हैं, वैसे तो बटुकेश्वर दत्त का जन्म बंगाल के वर्धमान जिले के औरी गांव में 18 नवंबर, 1910 को हुआ था, मगर उनका शुरुआती जीवन पटना और कानपुर में गुजरा. कानपुर में पिता रेलवे में काम करते थे और पटना में भाई सेंट्रल बैंक में इम्पलाइ थे. यहां उनका अपना घर भी था.
कानपुर में रहते हुए वे भगत सिंह और आजाद जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आये. भगत सिंह और उनके साथियों की तरह वे भी एसेंबली बम कांड और सैंडर्स हत्याकांड में दोषी थे, मगर जहां तीन साथियों को फांसी हुई, वहीं बटुकेश्वर को आजीवन कारावास के तहत अंडमान के सेल्यूलर जेल भेज दिया गया. वहां वे 1936 तक रहे. उस साल जब बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी, तब डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रयासों से पटना जेल में उनका तबादला कराया गया. फिर छोड़ दिया गया. वे फिर भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गये. उन्हें मोतिहारी जेल में सजा काटनी पड़ी.
स्वतंत्रता सेनानी होने की कीमत वसूलना नहीं था गवारा
बटुकेश्वर उन लोगों में थे, जिन्हें स्वतंत्रता सेनानी होने की कीमत वसूलने से परहेज था. वे आजादी के बाद भी आम हिंदुस्तानी की तरह जीये. उनका ज्यादातर वक्त जेल में गुजरा. उन्हें अपना कैरियर बनाने का वक्त नहीं मिला. लिहाजा उन्होंने आजीविका के लिए कई तरह के काम किये. कभी स्टेशन के बाहर बनियान बेची, तो कभी साइकिल पर घूम-घूमकर बिस्कुट बेचे.
डीएम ने मांगा था स्वतंत्रता सेनानी होने का सबूत
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की निगाह में जब उनकी स्थिति आयी, तो उन्हें पटना के तत्कालीन डीएम से कहा कि इनके लिए किसी सम्मानजनक रोजगार की व्यवस्था की जाये. तय हुआ कि इन्हें पटना और आरा के बीच बस चलाने का परमिट दिया जायेगा, मगर जब बटुकेश्वर दत्त डीएम के पास पहुंचे, तो डीएम ने इनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांग लिया.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel