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बिहार : बालू की हवस ने नदी को बना डाला मौत का कुआं
सरकार की सख्ती के बावजूद राज्य में अवैध बालू का खनन जारी है. बालू माफियाओं के अवैध खनन से गंगा व नदी के तटों पर बड़े-बड़े जानलेवा गड्ढे बन गये हैं जिससे हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. इन गड्ढों में गिर जाने से कई लोगों की जान भी जा चुकी है. गंगा में […]
सरकार की सख्ती के बावजूद राज्य में अवैध बालू का खनन जारी है. बालू माफियाओं के अवैध खनन से गंगा व नदी के तटों पर बड़े-बड़े जानलेवा गड्ढे बन गये हैं जिससे हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है. इन गड्ढों में गिर जाने से कई लोगों की जान भी जा चुकी है.
गंगा में तो खुलेआम छोटी-बड़ी बोटों के माध्यम से खनन किया जा रहा है. गंगा का जल स्तर जब कम हुआ तब मालूम हुआ कि किस तरह से गंगा से बालू निकाल कर बीच-बीच में लंबी दूरी तक गड्ढा खोद दिया गया है. पैसे बनाने के चक्कर में बालू के खेल में शामिल माफिया और आपराधिक तत्वों ने जिंदगी में शांति व शीतलता लानेवाली नदियों को कब्रगाह बना डाला है. बालू माफियाओं ने गंगा-नदी घाट को कैसे बना दिया जानलेवा, आज के बिग इश्यू में हम कर रहे हैं इसकी पड़ताल…
पटना-खनन से जगह जगह पर बन गया दलदल
सरकार की नयी नियमावली व पुलिस की सख्ती के बाद भी गंगा में बालू का अवैध खनन जारी है. इसको लेकर सरकार ने नियमों में बदलाव कर नदी थाने को गश्ती की जिम्मेदारी सौंपी, पर इसके बाद भी गंगा में खुलेआम छोटे-बडे बोट के माध्यम से खनन जारी है.
इस अवैध धंधे में सबसे अधिक वे लोग हैं जिनके पास कोई रोजगार नहीं है और दियारा इलाके के सभी लोग घर छोड़ कर दिन-रात डर के साये में अवैध खनन करते हैं, जिसके एवज में उनको कुछ राशि मिलती है. मोटी रकम धंधे से जुड़े ठेकेदार व कारोबारी लेते हैं, जिसके कारण आज जब गंगा का जल स्तर घटा तब मालूम हुआ कि किस तरह से गंगा से बालू निकाल कर बीच-बीच में लंबी दूरी तक गड्ढा खोद दिया गया है.
इस कारण से दुर्घटनाएं व लोगों की डूब कर मरने की संख्या बढ़ी है. क्योंकि बालू खनन से जगह-जगह पर दलदल बन गया है. बांस घाट, नासरिगंज, दानापुर, फतुहा सहित बाकी जगहों पर बालू खनन से बीच-बीच में गड्ढे हो गये हैं.हाल के दिनों में गंगा से अवैध बालू खनन करने वालों को पकड़ने के लिए नदी थानों को अलर्ट किया गया है. जिसके बाद कई नावों को पकड़ा भी गया है और कई जगहों से अवैध बालू के भंडारण को पकड़ा गया है.
ऐसे में बालू खनन करने वालों के लिए स्पेशल टीम भी बनायी गयी है.पटना के डीएम संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि बालू की कमी को देखते हुए अब बालू की सप्लाई बढ़ाने की दिशा में काम चल रहा है. बिना लाइसेंस लिए कोई भी रिटेलर बालू की बिक्री नहीं करेगा. प्रखंड स्तर पर खपत के अनुसार लाइसेंस निर्गत किया जा रहा है.
गंगा से अवैध बालू खनन से बड़हिया से पिपरिया तक बरसात के दिनों में मौत का सबब बन जाता है. प्रत्येक वर्ष दर्जनों लोगों की मौत होती है. फिर भी खनन विभाग सचेत नहीं होता है.
जिले के बड़हिया से पिपरिया तक गंगा सोता में गंगा का पानी सूखते ही बालू माफिया अवैध बालू खनन जेसीबी से करते हैं. वे कुआं की तरह जहां तहां खुदाई कर बेचते हैं. जब बरसात के दिनों में गंगा की पानी आता है, बच्चे, बुजुर्ग जब स्नान करने जाते है तो कहीं समतल, कहीं गड्ढा होने से प्रत्येक वर्ष दर्जनों लोगों की मौत हो जाती है. तीन माह पूर्व मरांची एवं बड़हिया में 11 बच्चे की गंगा में डूब कर मौत हो गयी.
जिसको लेकर ग्रामीणों ने काफी हंगामा किया था. विगत महीने ग्रामीणों की शिकायत पर डीएम अमित कुमार के द्वारा निर्देश दिये जाने पर बड़हिया थाना पुलिस द्वारा बड़हिया के कॉलेज घाट के पास गंगा नदी का बालू उठाव कर डंप की गयी जगह से एक ट्रैक्टर पर लगे जेसीबी को जब्त किया था, लेकिन उसपर प्राथमिकी दो दिन बाद पदाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद की गयी, जिससे पुलिस की इस बालू उठाव में मिलीभगत साफ जाहिर होती है.
भागलपुर-खतरनाक बनती जा रहीं चंपा व अंधरी नदियां
भागलपुर की चंपा व अंधरी नदी बालू कटाव के कारण खतरनाक बनती जा रही है. गंगा नदी को भी विक्रमशिला पुल के किनारे नवगछिया की तरफ खतरनाक घाट बना दिया गया है. बालू माफिया अवैध तरीके से नदियों में इस तरह बालू का उठाव करते हैं कि जगह-जगह विशाल तालाबनुमा गड्ढे हो गये हैं. सरकार के लाख प्रयास के बाद भी नदियों में बालू का अवैध उठाव का सिलसिला जारी है. बरसात के मौसम में नदियों में जब पानी भर जाता है, तो इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है. नदी में डूबनेवालों की संख्या बढ़ती जा रही है.
अपराधियों का मनोबल इस कदर बढ़ा हुआ है कि कोई आम लोगों की हिम्मत नहीं कि उनका विरोध कर सके. हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अपने गांव दरियापुर के समीप अंधरी नदी में बालू के अवैध उठाव को रोकने के लिए पहल की थी.
लेकिन अपेक्षित सफलता हासिल नहीं हो सकी. बालू माफियाओं का मनोबल इस तरह बढ़ा हुआ है कि गत फरवरी में अंधरी नदी में बालू के अवैध उठाव पर रोक लगाने गये जिला खनन पदाधिकारी पर ही बालू माफिया ने हमला बोल दिया था. बांका और भागलपुर के कई पुलिस पदाधिकारियों को निलंबित किया गया है, लाइन हाजिर किया गया है. लेकिन बालू के अवैध उठाव पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.
मोतिहारी-जान जोखिम में डाल कर रहे खनन
जान जोखिम में डालकर जिले के घाटों से लोग बालू निकालने वाले लोग दूसरों का जीवन तबाह कर रहे हैं. नदियों के घाटों से लोग बालू निकाल कर जगह-जगह पर गड्ढा बना देते हैं जहां बाढ़ आने या पानी का बहाव होने के कारण उसमें पानी भर जाता है.
लोग अंजान बनकर जैसे ही वहां पहुंचते हैं,संतुलन खो बैठते हैं जिससे पानी में डूबने की आशंका बनी रहती है. जानकारी के अनुसार,जिले के लालबेगिया घाट,पकड़ीदयाल,बेलवा,बारनावा,खोड़ीपाकर व बाराघाट बालू के लिए जाना जाता है. इन घाटों पर लोग निजी रास्ता बनाकर नीचे उतरते हैं और बोरा में बालू कसकर फिर ऊपर चढ़ते हैं.जहां से बालू निकालते हैं उस स्थल को समतल नही करते हैं. एक अनुमान के अनुसार,इन घाटों से प्रतिदिन सैकड़ों टेलर बालू निकाला जाता है.
पुलिस की सख्ती के बावजूद अवैध उत्खनन चोरी-छिपे जारी है. कमोबेश प्रतिदिन अवैध उत्खनन मामले में वाहन व चालक गिरफ्तार किये जा रहे हैं. जानकारी के मुताबिक जिले के प्रमुख नदी में अवैध उत्खनन की वजह से जगह-जगह जानलेवा गड्ढे हो गये हैं.
नतीजतन, नहाने के दौरान बच्चों की जान जाना आम बात हो गयी है. विगत एक-दो महीने पूर्व भी नदी के गड्ढे में डूबने से कई बच्चों की जान चली गयी. स्थानीय लोगों ने नियम के विरुद्ध बालू उठाव को इसका जिम्मेदार ठहराया है. जबकि गुप्त रूप से माफिया नदी में जगह-जगह बालू का उठाव कर रहा है. बालू उठाव के बाद यह गड्ढा मौत का कुआं बन जाता है.
बिहारशरीफ : नदियों से होता है कटाव
नालंदा जिले में कुल वैध बालू घाटों की संख्या 27 है. बालू घाटों से प्रत्येक वर्ष करीब हजारों सीएफटी बालू का उठाव होता है. नदियों से होने वाले बालू के उठाव में तय मानकों को नजरअंदाज किया जाता है, जो मौत को आमंत्रण देती है.
खनन विभाग तय मापदंड व नियमावली के हिसाब से ही नदियों से बालू के उठाव की हिदायत बंदोबस्ती धारी को देता है. इसके लिए खनन विभाग ने माइनिंग प्लान बना रखा है. संबंधित माइनिंग प्लान की प्रति बंदोबस्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद बंदोबस्तीधारी को दिया जाता है. बालू के अवैध खनन से नदियां कुएं के सामान हो गयी हैं. बालू के अवैध खनन से नालंदा जिले के सभी 26 वैध घाटों में अनगिनत बड़े-बड़े गड्ढे बन गये हैं.
छपरा-बालू माफिया पड़ रहे हैं प्रशासन पर भारी
जिले में बालू माफिया प्रशासन पर भारी पड़ रहे हैं और प्रशासन को चकमा देने के लिए बालू माफिया तरह तरह का हथकंडा अपना रहे हैं. बालू खनन तथा भंडारण और ढुलाई रोकने में नाकाम कई खनन पदाधिकारी और पुलिस पदाधिकारी नप चुके हैं. हाल ही में डोरीगंज थानाध्यक्ष को बालू का अवैध ढुलाई एवं भंडारण रोकने में नाकाम रहने के कारण हटा दिया गया. इतना ही नहीं सारण के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पंकज कुमार राज के बालू का अवैध कारोबार में संलिप्त रहने का मामला चर्चा में रहा. इसको लेकर निगरानी की जांच चल रही है.
अब जब बालू के खनन तथा भंडारण और ढुलाई करने पर रोक लगा दी गयी है तो, बालू माफिया नालंदा व भागलपुर के चालान पर बालू की ढुलाई कर रहे हैं. भले ही सारण जिले में बालू का खनन नहीं होता है लेकिन बालू का भंडारण और ढुलाई का कार्य यहां बड़े पैमाने पर किया जाता है.
बेगूसराय-दियारा इलाके में हो रहा नियमों का उल्लंघन
जिले के दियारा इलाके में अवैध रूप से बालू रेत का खनन जारी है. जिसके चलते कई घाटों के किनारे बड़े-बड़े गड्ढे बन गये हैं. बालू का यह खेल लगातार चल रहा है. इसके बाद भी जिला प्रशासन के द्वारा इस दिशा में सकारात्मक रूप से पहल नहीं की जा रही है.
जिले के मटिहानी प्रखंड के सिहमा,खोरमपुर ,रामदीरी समेत अन्य घाटों में अवैध तरीके से बालू निकाल कर बेचने का काम जोरों पर किया जा रहा है. पूरे दिन दर्जनों ट्रैक्टर गंगा घाट से बालू निकाल कर सरेआम सड़क से गुजरते रहता है. लेकिन इस पर पुलिस या प्रशासन के पदाधिकारियों की नजर नहीं जाती है. सबसे ताज्जुब की बात यह है कि मिट्टी या बालू ट्रैक्टर पर ले जाने के क्रम में उसे ढक कर ले जाना है, लेकिन इसका भी ट्रैक्टर चालकों द्वारा खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है.
समस्तीपुर-दो सालों में 24 लोगों की जा चुकी है जान
नियमों को ताक पर रखते हुए मोहनपुर में गंगा नदी में बालू का खनन हो रहा है. विगत दो सालों में बालू के कुछ छोटे कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई़ लेकिन, ये कार्रवाई दिखावा भर रही. सच्चाई यह है कि प्रशासनिक अधिकारियों और सफेदपोशों के रसूख का लाभ लेकर यह कारोबार आज भी बेरोकटोक जारी है़
गंगा नदी से निकाले गये बालू के कारण तटवर्ती क्षेत्र गड्ढे में तब्दील हो रहे हैं. दक्षिणवर्ती किनारेे सोन नदी के प्रभाव से गंगा नदी की बालू मटमैली हो जाती है़ यही बालू निकाला जाता है. करीब दो दर्जन लोगों की पिछले दो सालों में डूबने से मौत हो गयी है़ स्नान के क्रम में डूबने की लगातार बढ़ती घटनाओं के अतिरिक्त नाव दुर्घटनाएं यहां के लिए आम हो गयी हैं. निजी तौर पर नाव का परिचालन होता है़ बालू खनन के कारण जलस्तर का अनुमान नहीं रहता, जिस कारण दुर्घटनाएं हो जाती हैं.
गया-बालू की हवस ने नदी को बना डाला मौत का कुआं
शेरघाटी (गया) : तमाम सरकारी हस्तक्षेप के बाद भी बालू का खेल चल रहा है. पैसे बनाने के चक्कर में बालू के खेल में शामिल माफिया और आपराधिक तत्वों ने जिंदगी में शांति व शीतलता लानेवाली नदियों को कब्रगाह बना डाला है.
झारखंड-बिहार के बीच सैकड़ों गांवों के पास से गुजरते हुए शेरघाटी के करीब जीटी रोड पार करनेवाली मोरहर नदी को भी बालू की दुनिया के बेखौफ नियंत्रणकर्ताओं ने कब्रगाह में ही बदल दिया है. यह हाल केवल मोरहर का ही है, ऐसा नहीं. गया और पड़ोसी जिलों से बहनेवाली जगत प्रसिद्ध फल्गु समेत उन दूसरी नदियों का भी है, जहां बालू का खेल बदस्तूर जारी है. गया और पड़ोसी जिलों की नदियों के आसपास मंडराते सैकड़ों ट्रक व ट्रैक्टर रोज देखे जा सकते हैं.
ये वाहन लगातार बालू ढो रहे होते हैं. इन्हें बोझने के लिए नदियों में जेसीबी और पोकलेन जैसी मशीनें ही लगा दी जाती हैं. ऐसी मशीनें, जो बालू छोड़ दूसरा कुछ भी देखती-सोचती नहीं हैं. परिणाम यह है कि शेरघाटी से होकर बहनेवाली मोरहर अकेले ही अपनी आगोश में मौत के हजारों कुएं (गहरे जानलेवा गड्ढे) समेट रखी है. इनमें बार-बार बच्चे और वयस्क डूबते रहे हैं, मरते रहे हैं.
पिछले वर्ष 17 जून को शेरघाटी के पास हेमजापुर घाट के करीब सातवीं का छात्र समीर नदी किनारे गेंद खेलते हुए बालू निकलने से बने एक गड्ढे के पास गया क्या, फिर लौट नहीं सका. वह गड्ढे में गयी अपनी गेंद निकालने गया था. उसे पता नहीं था कि गड्ढा कितना गहरा है.
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