अजय कुमार, नवादा : जिंदगी एक ही बार के लिए है. इसे कुंठित होकर न जिया जाये. जिंदगी जीने की कोई शर्तें भी न हो. हां, यह जरूरी है कि आप अपने लक्ष्यों को लेकर निरंतरता बनाये रखें. यह आपको ऊंचाई तक ले जायेगा. यह बातें देश के चर्चित फिल्म कहानीकार राजेश बहादुर ने कही है. गुरुवार को प्रभात खबर के साथ दूरभाष पर बातचीत हुई. यह शख्स मुंबई महानगरी की फिल्म सिटी का जाना माना चेहरा और नाम है.
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साइंटिस्ट बनने के सपने, जी रहे कहानीकार की जिंदगी
अजय कुमार, नवादा : जिंदगी एक ही बार के लिए है. इसे कुंठित होकर न जिया जाये. जिंदगी जीने की कोई शर्तें भी न हो. हां, यह जरूरी है कि आप अपने लक्ष्यों को लेकर निरंतरता बनाये रखें. यह आपको ऊंचाई तक ले जायेगा. यह बातें देश के चर्चित फिल्म कहानीकार राजेश बहादुर ने कही […]
पर जिले में यह एक अजनबी बने हुए हैं. यह भी इनकी विशालता है. मूल रूप से नवादा के सुदूर प्रखंड गोविंदपुर के बुधवार निवासी राम रतन सिंह के पुत्र हैं राजेश बहादुर. इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नवादा के स्टेशन रोड स्थित संत जोसेफ स्कूल से की है. इसके बाद इनका चयन ऑल इंडिया स्कॉलरशिप के चयनित स्कूलों के लिए हो गया.
फिर उदयपुर में अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की. आगे के लिए वे पिलानी स्थित बिरला स्कूल में दाखिला लिये. दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजहंस कॉलेज से इन्होंने वर्ष 1993 में फिजिक्स में स्नातक की डिग्री ली. इन्होंने कहा-साइंटिस्ट बनने के मेरे सपने का यह आखिरी पड़ाव था.
आगे के लिए इन्होंने आम युवकों की तरह कॉरपोरेट नौकरियां सहित अन्य कार्य भी किया. पर, उदयपुर के स्कूली जीवन में इनका लगाव कला के विभिन्न क्षेत्रों से हो चुका था. इसे इन्होंने दिल्ली के राजहंस कॉलेज में भी अपनाये रखा. इसके बाद रंजीत बहादुर ने सत्यजीत रे फिल्म इंस्टीट्यूट, कोलकाता में दाखिला लिया.
यहां एडिटिंग की पढ़ाई पूरी की. इसके पूरा होने के बाद रंजीत बहादुर ने वर्ष 2000 में मुंबई मायानगरी की ओर रुख किया. यहां से इन्होंने संघर्षों को जीना शुरू किया. ‘थ्री इडियट, फेरारी की सवारी’ जैसी कई फिल्मों के लिए डायलॉग लिखे. इन दिनों इनका एक बड़ा ही चर्चित फिल्म ‘पानीपत’ सुर्खियां बनी है.
यह फिल्म इनका पहला कहानीकार के रूप में सामने आया है. कला क्षेत्र से जुड़े युवाओं के लिए इन्होंने विशेष तौर पर कहा है कि वे अपने कार्यों में निरंतरता बनाये रखें. साथ ही माता-पिता से भी अपील की है कि अपने बच्चों पर भरोसा करें. परवरिश की प्रक्रिया कम उम्र में ही समाप्त हो जाती है, फिर तो इन बच्चों को अपने हिसाब से अपना कैरियर और अपनी जिंदगी का चयन करना ही होगा.
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