नवादा : मछली पालन को बढ़ावा देने वाली योजनाएं जिले में कारगर साबित नहीं हो रही हैं. लगभग 25 लाख की आबादी वाले नवादा जिला के लिए विभागीय स्तर पर महज 10 से 15 लोगों को लाभ देने की योजनाएं मत्स्य पालन विभाग के द्वारा दी जाती है.
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कहां गये 230 तालाब, मछली पालन के लिए खोज रहा मत्स्य विभाग
नवादा : मछली पालन को बढ़ावा देने वाली योजनाएं जिले में कारगर साबित नहीं हो रही हैं. लगभग 25 लाख की आबादी वाले नवादा जिला के लिए विभागीय स्तर पर महज 10 से 15 लोगों को लाभ देने की योजनाएं मत्स्य पालन विभाग के द्वारा दी जाती है. इन योजनाओं के बल पर जिला में […]
इन योजनाओं के बल पर जिला में मत्स्य विभाग किस प्रकार से मछली उत्पादकों की मदद करते हुए मछली का उत्पादन बढ़ा पायेगी यह एक बड़ा सवाल है. मांग के अनुरूप जिला में मछली का उत्पादन फिस्सड्डी है. सरकारी योजनाओं के नाम पर जो लाभ देने की बात कही जाती है उसका लाभ सही लाभूकों को भी मिलने में काफी विलंब होता है.
इसी का नतीजा है कि मछली का उत्पादन जिला में बढ़ने के बजाय और घट रहा है. जिला में मांग के अनुरूप मछली का उत्पादन फिसड्डी है. विभागीय स्तर पर मछली उत्पादन के लिए जिला भर में सरकारी तालाब व आहर, पाइन आदि बने हैं लेकिन इसका वास्तविक धरातल पर उतना असर नहीं दिखता है. सुखाड़ क्षेत्र होने के कारण मछली पालन के लिए आदर्श व्यवस्था जिला में नहीं है.
बावजूद जिला में बने आठ डैम व अन्य प्राइवेट व सरकारी तालाबों से सामान्य रूप से 6 से 7 क्विंटल मछली प्रतिदिन उत्पादन होता है जो जिला के अलावे कोडरमा व अन्य दूसरे जिलों में सप्लाई किये जाते हैं. मत्स्य पालन विभाग मछली पालन को प्रोत्साहन देने के लिए कई प्रकार के कार्यक्रम व योजनाएं चलाने का दावा करती है. लेकिन, इसका असर नहीं दिखता है.
सरकारी तालाबों का नहीं हो पा रहा उपयोग: मत्स्य पालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जिला में कुल 436 तालाब हैं. इनमें से केवल 230 तालाबों व आहर-पइन का सरकारी टेंडर विभाग कर पायी है. शेष 206 तालाब यूं ही सार्वजनिक रूप से छूटे हुए हैं.
1990 के बाद सरकारी स्तर पर नहीं हुआ तालाबों का सर्वे
1990 के बाद सरकारी स्तर पर तालाबों का सर्वे भी नहीं कराया गया है. बीते 25 सालों में प्रकृति के दोहन से स्थिति और बदतर हुई है. जिला मुख्यालय के प्रसिद्ध हरिश्चंद्र तालाब, सब्जी बाजार स्थित पक्की तालाब, बरहगैनिया पैन आदि शहर की पहचान हुआ करती थी लेकिन आज इन सभी जल क्षेत्रों का अस्तित्व समाप्त होने की स्थिति में है.
हरिश्चंद्र तालाब आज शहर की गंदगी को डंप करने का स्थल बन गया है. शहर की कई नालियां सीधे प्रतिदिन सैकड़ों टन कचरा इसमें भर रही है.
कभी मछली पालन का प्रमुख केंद्र हरिश्चंद्र तालाब में पिछले कई वर्षों से मछली पालन की प्रक्रिया नहीं किया गया है. डंप किये गये कचरे व नालियों के पानी से पुरा तालाब विषाक्त हो गया है. पूरे तालाब मे फैला जलकुंभी इसे बेकार बना दिया है. सब्जी बाजार की पक्की तालाब का अस्तित्व समाप्त करके इसके किनारे पर टाउन हॉल बना दिया गया है.
तालाब के नाम पर महज उसके होने का अस्तित्व बचा है. यहि हाल बरहगैनिया पाइन का है, शहर से होकर गुजरने वाली पाइन कभी खुरी नदी का पानी आस-पास के गांवों में पहुंचाकर सिंचाई का साधन प्रदान करती थी. लेकिन बाजार ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह नाला बनकर रहा गया है.
मत्स्य विभाग के अनुसार (महत्वपूर्ण बातें)
जिले में कुल तालाबों की संख्या436
टेंडर होने वाले तालाबों की संख्या206
पिछले कई वर्षों से जिन तालाबों का टेंडर नहीं हुआ230
कुल 436 तालाबों का वाटर एरिया- 769.11 हेक्टेयर
वर्तमान में इस्तेमाल हो रहा वाटर एरिया494.26 हेक्टेयर
जरूरत से कम मिलता है सहयोग
मत्स्य पालन विभाग के द्वारा भी जिले को उपेक्षित किया जाता है. मछली पालकों की संख्या तथा जरूरत को देख कर योजना नहीं बन रही है. इस साल केवल एक दर्जन मछली पालकों को बोरिंग के लिए लाभ देने की अनुशंसा हुई है. ऐसे में लगभग 250 सरकारी तथा डेढ़ हजार तक प्राइवेट स्तर पर मछली पालन कर रहे किसानों को एक साथ योजना का लाभ मिल सके यह संभव नहीं है.
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