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नरसंहार के 22 आरोपित रिहा

बिहारशरीफ : जिला न्यायालय के प्रथम एडीजे रश्मि शिखा ने सत्र परिवाद संख्या 364/00 के विचारणोपरांत साक्ष्य के अभाव में सभी 22 आरोपितों को 17 वर्षों के बाद रिहा करने का फैसला सुनाया. इस कांड में बुधन सिंह, बुल्लु सिंह, मंगल सिंह, भोला सिंह, विजय सिंह, पप्पू सिंह, विपिन, कपिल, कारू, रविशंकर, स्वरूप, नगीना, बच्चु, […]

बिहारशरीफ : जिला न्यायालय के प्रथम एडीजे रश्मि शिखा ने सत्र परिवाद संख्या 364/00 के विचारणोपरांत साक्ष्य के अभाव में सभी 22 आरोपितों को 17 वर्षों के बाद रिहा करने का फैसला सुनाया.
इस कांड में बुधन सिंह, बुल्लु सिंह, मंगल सिंह, भोला सिंह, विजय सिंह, पप्पू सिंह, विपिन, कपिल, कारू, रविशंकर, स्वरूप, नगीना, बच्चु, रामवचन, सुली, विनोद, रामलगन, सुगन, रामाशीष, कारू, रास बिहारी, बुधन, सत्येंद्र, नागेंद्र, सीताराम, छोटू, चुन्नु, टुन्ना, श्याम सिंह कुल 29 को प्राथमिकी में आरोपित बनाया गया था. ये सभी सिलाव थाने के पांकी ग्राम वासी हैं.
मामलेे की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष से वरीय अधिवक्ता सत्यदेव सिंह व कनीय कौशलेंद्र कुमार ने बहस की. वहीं, अभियोजन पक्ष से दलित अधिनियम विशेष लोक अभियोजक बच्चू प्रसाद पासवान ने दलील दी.
16 अप्रैल, 2000 की रात 10 बजे पांकी गांव की दलित बस्ती पर हमला किया था, जिसमें गोली लगने से विलास दास, मुंशी दास व बसंती पासवान की मौत हो गयी थी और कई लोग जख्मी हो गये थे. ग्रामीण शिवशंकर रविदास के बयान पर सिलाव थाने में मामला दर्ज किया गया. बस्ती की बगल के खाड़ में हमलावर मछली मारते थे और औरतों से छेड़छाड़ करते थे. मना करने के बावजूद उन्होंने अपना काम जारी रखा था. इसी विवाद में 14 जनवरी, 2000 को गांगो दास की भी गोली मार कर हत्या की थी. इंदिरा आवास बनाने पर भी जान मारने की धमकी दी जाती थी. विवाद का मूल कारण यही था, जिसके बाद कांड को अंजाम दिया गया था. एक आरोपित टुन्ना अब तक फरार है और चुन्नू पुलिस की गिरफ्त में है.

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