बिहारशरीफ : धान की कटाई शुरू होने के बाद फसल अवशेषों को नहीं जलाने के लिए जिले में सघन रूप से जागरूकता अभियान चलाया जाये. किसानों के बीच जाकर अभियान चलाएं,अवशेष (पराली) को जलाने से होने वाली समस्याओं से अवगत कराएं, ताकि किसान इससे जानकारी हासिल कर जागरूक हो सकें.
इस कार्य को सफल बनाने के लिए मंगलवार को जिला कृषि कार्यालय परिसर अवस्थित आत्मा सभागार में प्रखंड कृषि पदाधिकारियों, कृषि समन्वयकों व किसान सलाहकारों की बैठक में यह निर्देश डीएओ विभु विद्यार्थी ने दिया. उन्होंने बताया कि कंबाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई करने वाले खेतों में बचे अवशेषों को किसान जला देते हैं. अवशेष को जलाने से वायु प्रदूषित होता है.
इससे किसानों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं जमीन की उर्वरा शक्ति में ह्रास आती है, जिससे बाद में फसल की उत्पादकता भी कम होने की आशंका बनी रहती है. इन सब समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जिले में सघन रूप से जागरूकता अभियान चलाने की सख्त जरूरत है.
उन्होंने प्रखंड कृषि पदाधिकारियों, कृषि समन्वयकों व किसान सलाहकारों को निर्देश दिया कि गांवों में जाकर किसानों के बीच जागरूकता अभियान चलाना सुनिश्चित करें. इतना ही नहीं किसानों को अवशेष जलाने से रोकने का पूरा प्रयास करें. यदि इसके बावजूद अवशेष जलाते हैं, तो संबंधित किसानों को चिह्नित कर इसकी सूचना किसानों के पते के साथ डीएओ को उपलब्ध कराएं.
संगोष्ठी में जनप्रतिनिधियों को भी करें शामिल
तकनीकी सहायक पदाधिकारी धनंजय कुमार ने बताया कि जो किसान धान के अवशेष को जलायेंगे, वह योजनाओं के लाभ से भी वंचित हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि डीएओ ने निर्देश दिया है कि नौ नवंबर को जिले की हरेक पंचायत स्तर पर जागरूकता बैठक या संगोष्ठी की जाये.
इस संगोष्ठी में जनप्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाये. संगोष्ठी के माध्यम से अवशेष जलाने से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से अवगत किसानों को कराएं, ताकि किसान पूरी तरह से जागरूक हो सकें और अवशेष को नहीं जला पाएं.
कहते हैं चिकित्सक
बढ़ते प्रदूषण के कारण सांस संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. दमा, टीवी के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं. हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रहा है. इसके कारण शरीर पर दूरगामी असर पड़ रहा है. मस्तिष्क, हर्ट के साथ शरीर के हर अंग पर प्रतिकूल असर डाल रहा है. इसके कारण स्कीन एलर्जी पैदा हो रही है तथा चर्म रोग हो रहे हैं.
डॉ राम मोहन सहाय, गैस संचारी रोग पदाधिकारी, नालंदा
बढ़ते प्रदूषण के कारण सांस संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. दमा, टीवी के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं. हवा में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रहा है. इसके कारण शरीर पर दूरगामी असर पड़ रहा है. मस्तिष्क, हर्ट के साथ शरीर के हर अंग पर प्रतिकूल असर डाल रहा है. इसके कारण स्कीन एलर्जी पैदा हो रही है तथा चर्म रोग हो रहे हैं.
डॉ राम मोहन सहाय, गैस संचारी रोग पदाधिकारी, नालंदा
क्या है एक्यूआइ
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) वायु की गुणवत्ता मापने का एक पैमाना है. इसमें नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डायऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनो डायऑक्साइड, अमोनिया व लीड की हवा में कितनी मौजूदगी है, को मापा जाता है.
नालंदा व उसके आसपास जलायी जा रही पराली
वायु प्रदूषण की कई वजहें हैं. इनमें निर्माण कार्य, वाहनों से निकल रहे धुएं, पराली जलाना आदि शामिल है. नालंदा व उसके आसपास के जिलों में पराली धड़ल्ले से जलायी जा रही थी. पराली जलाने वालों पर कार्रवाई की घोषणा से कुछ लगाम लगा है.
पराली जलाने की मुख्य वजह धान की कटनी में मशीनों का प्रयोग है. मशीन से धान की फसल के ऊपरी हिस्से को काट लिया जाता है. इससे फसल का कुछ हिस्सा खेत में ही रह जाता है, जिसे किसान आग से जलाकर खत्म कर देते हैं. जो किसान मशीन की जगह मजदूर से फसल कटवाते हैं, उनके खेतों में पराली की समस्या नहीं होती है.
जड़ के पास से फसल को काटकर खलिहान में लाते हैं और धान को पीटकर नेबारी महंगे दाम पर बेच देते हैं.
एक्यूआइ के मानक
0-30 : अच्छा
30-60 : संतोषजनक
60-90 : थोड़ा प्रदूषित
90-120 : खराब
120-250 : बहुत खराब
250 से ऊपर : खतरनाक
