हरनौत : वैसे तो खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गया है. लेकिन नकदी फसल कहे जाने वाले आलू, प्याज में भी किसानों को रुला रहा है. खास करके नालंदा जिला में आलू की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गया है. इधर कुछ वर्षों से नालंदा जिला आलू उत्पादक किसानों की हालत बेहद खराब हो गया है. उत्पाद किया गया आलू के गुणवत्ता में कमी के कारण किसान उसे अधिक समय तक भंडारण नहीं कर सकते हैं. जिससे किसान को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है.
गुणवत्तापूर्ण आलू बीज से ही किसान बढि़या आलू का उत्पादन कर सकते हैं. जिले में लगभग 2768 हेक्टेयर में आलू की खेती की जाती है. यहां किसानों के द्वारा आलू का कुफरी पुखराज प्रभेद का खेती किया जाता है. आलू के इस प्रदेभ में रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं होता है. जिससे आलू के गुणवत्ता में कमी आ जाता है. आलू के ऊपरी चमड़ी पर खुरदरा दाग बना हुआ रहता है. जिससे खरीदारों की भी कमी हो जाती है. कुफरी पुखराज पर प्रभेद में अगेती व पछेती झुलसा,
वायरल, बैक्टीरियल रोग लगने का संभावना सबसे अधिक रहता है. इसी परिपेक्ष्य में कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत के द्वारा किसानों के साथ एक गोष्ठी आयोजित की गई. जिसमें तीन प्रखंड के लगभग 35 आलू उत्पादक कृषक भाग लिये. कृषि वैज्ञानिकों ने कुफरी पुखराज के जगह दूसरे रोग रोधी, गुणवत्तापूर्ण एवं अधिक उत्पादन देने वाले प्रभेद का जिक्र किया. सभी किसान कुफरी पुखराज के समतुल्य पुखरी ख्याति, अशोखा ललित बीज उपलब्ध कराने का विचार किया. वैज्ञानिक डॉ. एनके सिंह ने बताया कि बहुत दिनों से लगातार यह प्रभेद खास एरिया में लगाया जा रहा है. जिससे इसमें बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है. किसान क्लब और किसान उत्पादन संघ (फार्मर प्रोडूसर कंपनी) के सदस्यों ने भाग लिया. कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक बीज उत्पादन करने का सलाह दिया. इस संबंध में कार्य योजना केवीके बनायेगी एवं बीज उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण दी जायेगी. तकनीकी रूप से जानकारी संवर्धन करेंगे.