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जाली जांच, नकली दवाएं और फर्जी डॉक्टरों से जूझता यह देश
सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक सा नहीं है कि यहां सारी पैथोलॉजिकल जांच गलत ही हो रही है. यह भी नहीं है कि बाजारों में मिल रही सारी दवाएं भी नकली ही हैं. फर्जी डिग्री वाले एमबीबीएस डॉक्टरों की संख्या तो और भी कम हैं. पर यदि हर जिले में कुछ दर्जन भी ऐसे हैं तो […]
सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
सा नहीं है कि यहां सारी पैथोलॉजिकल जांच गलत ही हो रही है. यह भी नहीं है कि बाजारों में मिल रही सारी दवाएं भी नकली ही हैं. फर्जी डिग्री वाले एमबीबीएस डॉक्टरों की संख्या तो और भी कम हैं. पर यदि हर जिले में कुछ दर्जन भी ऐसे हैं तो अंदाज लगा लीजिए कि वे रोज कितने अधिक मरीजों के जीवन से वे खेल रहे हैं. और सरकारें उन्हें रोक पाने में काफी हद तक विफल साबित हो रही हैं. ऐसा असली डॉक्टरों की भारी कमी के कारण हो रहा है. याद रहे कि इस देश में पांच लाख डॉक्टरों की कमी है. इस देश में हर साल सिर्फ 50 हजार डॉक्टर ही बन पाते हैं. इस कमी का लाभ फर्जी डॉक्टर उठा रहे हैं.
ऐसे तीन दर्जन फर्जी डॉक्टर हाल में पश्चिम बंगाल में गिरफ्तार हुए हैं. आश्चर्य है कि गिरफ्तार डॉक्टरों में से एक डॉक्टर को तो इस साल मई में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी करवा दिया गया था. लगता है कि इस देश में पैसे और पहुंच से कई चीजें संभव हो जाती हैं. अच्छी बात है कि वह अब जेल में है. ठीक से जांच हो तो ऐसे नटवर लाल बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में भी पाये जाएंगे. डॉक्टरों की कमी के बीच हर साल इस देश से करीब डेढ़ हजार डॉक्टर विदेशों में जा बसते हैं. एम्स में एक डॉक्टर तैयार करने में सरकार को एक करोड़ 70 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं. अन्य सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी भारी खर्च पड़ता है. यह गरीब देश के गरीबों से मिले टैक्स का भी तो पैसा है.
पर उन गरीबों को इलाज के लिए तरसता छोड़ वे विदेश चले जाते हैं. उनके वहां जाने से पहले सरकार को चाहिए कि वह उनसे उनकी पढ़ाई का खर्च वसूल ले. इतना ही नहीं, विशेष पढ़ाई के लिए विदेश गये तीन हजार डॉक्टर लौटे ही नहीं. किसी भी लोक कल्याणकारी सरकार के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य की प्राथमिकता होनी चाहिए. दुनिया के अन्य देशों में इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है. भारत जैसे विकासशील देशों के लिए तो यह और भी जरूरी है जहां आम भारतीयों के पास उचित इलाज के लिए पैसे ही नहीं है. कोई पर्याप्त आम स्वास्थ्य सुरक्षा योजना भी नहीं है. आज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की बात कौन कहे, एम्स के लिए भी पर्याप्त संख्या में डॉक्टर नहीं मिल रहे हैं.
गत साल पटना सहित देश के छह नये एम्स के लिए 1300 डॉक्टरों की जरूरत थी. विज्ञापन निकाले गये. तीन सौ चुने गये. पर उन में से भी सिर्फ दो सौ डॉक्टरों ने ही ज्वाइन किया. इस साल 1285 पदों पर बहाली होनी है. पर केंद्र सरकार को लगता है कि योग्य उम्मीदवार नहीं मिलेंगे. सरकार ने रिटायर डॉक्टरों की सेवा लेने का मन बनाया है. दरअसल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों के रहने के लिए बेहतर आवास व्यवस्था तथा अन्य तरह की सुविधाओं की ओर सरकार को प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा.
अस्पतालों में बेहतर संरचना भी चाहिए. यदि यह सब कुछ हुआ तो एक हद तक डॉक्टरों का आकर्षण छोटी जगहों के लिए शायद बढ़े.
लौटती बरात की दुर्घटना: ड्राइवर की आंख लग गयी और बिहटा-मनेर रोड पर सफारी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी. पांच लोगों की जान चली गयी. वे लोग बरात से लौट रहे थे. दरअसल ऐसी घटनाएं आम तौर पर लौटती बरात की गाड़ी से ही होती है. जाती बरात वाली गाड़ी उलट गयी, ऐसी खबर शायद ही कभी मिलती है
दरअसल, लौटती बरात की गाड़ी के ड्राइवर की या तो नींद पूरी नहीं हुई होती या फिर वह शराब के नशे में होता है. ऐसे लोगों को गाड़ी चलाने से रोकने की जिम्मेदारी किसकी है? कुछ पुलिस
की तो अधिक बारात में शामिल अभिभावकों की.
भारत और इस्राइल का एक फर्क यह भी
इस्राइल के पूर्व प्रधानमंत्री एहुद ओलमेर्त गत 2 जुलाई को जेल से रिहा कर दिये गये. उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में 27 महीनों की सजा हुई थी. उन्हें कुछ शर्तों के साथ समय से पहले रिहा किया गया है. वह अगले कुछ महीनों तक स्वयंसेवक का काम करेंगे. हर महीने दो बार उन्हें पुलिस के सामने पेश होना होगा. इस बीच वह न तो देश से बाहर जा सकते हैं और न ही मीडिया को इंटरव्यू दे सकेंगे. जिस देश में अपने प्रधानमंत्री तक को सजा देने की ताकत हो, वही देश संपन्न बन सकता है और दुश्मनों के छक्के छुड़ा सकता है.
अब जरा इस्राइल से भारत की तुलना करके देखें. भ्रष्टाचार के मामले में इस्राइल की अपेक्षा इस देश की हालत खराब है. ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार इस्राइल के मुकाबले भारत में भ्रष्टाचार अधिक है. पिछले साल उसने इस्राइल को 64 तो भारत को 40 अंक दिये थे. इस्राइल 1948 में बना तो भारत एक साल पहले ही आजाद हो चुका था. इस्राइल का जीडीपी विश्व औसत का 262 गुना है. वहीं भारत के लोगों की औसत सालाना आय एक लाख 3 हजार रुपये है.
इन दिनों उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक भारत के जितने नेताओं के खिलाफ जितने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों में मुकदमे चल रहे हैं या जांच हो रही है, या फिर आरोप लग रहे हैं वह एक रिकॉर्ड है. अब देखना है कि ऐसे मुकदमे सजा तक पहुंचते भी हैं या नहीं! इस मामले में भारत में एक कहावत है कि यहां भ्रष्टों को मारने वालों से बचाने वाले अधिक ताकतवर होते हैं.
चीन का छह देशों के साथ अब भी सीमा विवाद
चीन की सीमाएं 16 देशों से सटी हुई हैं. इनमें से अधिकतर देशों के साथ उसका सीमा विवाद रहा है. कुछ देशों से तो सुलझ गया. भारत सहित कुछ अन्य देशों के साथ अब भी विवाद है. दरअसल यह विवाद औपनिवेशिक विरासत के रूप में मिला है. भारत के साथ विवाद जटिल है. युद्ध से किसी को शायद ही कभी कोई स्थायी लाभ मिलता है. आमतौर पर हर युद्ध का अंत आखिर समझौते में होता है. फिर युद्ध के पहले ही समझौता क्यों नहीं? हां, युद्ध से एक फायदा जरूर होता है. युद्धरत देशों को अपने बाहर और भीतर के दोस्तों और दुश्मनों की पहचान हो जाती है.
चीन-भारत संबंधों को लेकर यहां एक प्रकरण की चर्चा सामयिक है : भारतीय सीमा से तिब्बत के दो सौ मील अंदर के मनसर गांव की कहानी याद आती है. यह गांव 1962 के चीनी आक्रमण तक भारत सरकार को अपना राजस्व देता था. समाजवादी सांसद डॉ राम मनोहर लोहिया ने इसकी खोज की और लोकसभा में यह बात रखी थी. इस पर टोकते हुए एक कांग्रेसी सांसद ने व्यंग्य किया और कहा कि हां, वे लोग लगान शायद लोहिया साहब को देते थे.
पर, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने डॉ लोहिया से कहा कि मेहरबानी करके वह सबूत हमारे हाथ में दे दो. तब लोहिया ने कहा कि आप खोज करो. खोज की गयी और तब वह बात सही निकली. याद रहे कि डॉ लोहिया 1963 से 1967 तक लोकसभा के सदस्य थे. ऐसे थे भारत के संबंध तिब्बत के साथ. याद रहे कि अब तिब्बत चीन का हिस्सा है.
और अंत में : सन 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक मोरचाबंदी अभी से शुरू हो चुकी है. देखना है कि अगले चुनाव में अच्छे-बुरे कामों पर जनता फैसला करती है या भावनाएं जीतती हैं! जातीय और सांप्रदायिक समीकरण कितना कारगर होता है और दलीय जोड़तोड़ की कैसी भूमिका रहती है. नये नेता के रूप में कौन-कौन उभरेंगे और किनका चमकता सितारा अस्त होगा! इन सब बातों पर लोगबाग अभी से अटकलें लगाने लगे हैं.
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