मुजफ्फरपुर: ये सही है, जब भाजपा नेत्री कल्पना श्रीवास्तव महिलाओं को सम्मान को लेकर चलाये जा रहे कार्यक्रम में भाग ले रही थीं, तभी चंदन उनके घर की कैद से आजाद होकर अपने घर गया, लेकिन उसके शरीर पर जिस तरह से जख्म के निशान हैं. वह उस हैवानियत की गवाही जरूर दे रहे हैं, जो उसके साथ हुई है. इन्हें बयान करते हुये ये मासूम बार-बार रो पड़ता है.
कभी अपनी मां की ओर देखता है तो कभी अपने छोटे भाई व बहन की ओर, जिन्हें इसने अपनी कमाई का कुछ हिस्सा देने का गुमान था. इसे लगता था, हमें जो पैसे मिल रहे हैं. उससे हमारी मां व भाई-बहन का खर्च चल रहा होगा. घर तो झोपड़ी का है, लेकिन उनके पेट में कुछ अन्न का दाना जरूर जा रहा होगा. यातना की गवाही उसकी पीट पर बने निशान देते हैं. हम ये नहीं कहते हैं, ये निशान किसने दिये, लेकिन कोई तो ऐसा रहा होगा, जिसने इस मासूम को इस हाल में पहुंचा दिया. वह चाहे कल्पना श्रीवास्तव हों या फिर कोई और, लेकिन शक की सुई इसलिए भी कल्पना पर जा कर टिकती है, क्योंकि पिछले तीन सालों से चंदन उसी के घर में रह रहा था.
अभी उसकी वह उम्र भी नहीं है, जिसमें वह छल व प्रपंच की बातें कर सके. उसकी मासूम जुबान दो दिन पहले जब खुली थी, तब उसने सभी सच्चई साफ-साफ बयान की थी, कहा था, कम उम्र का होने के कारण हम घर का पूरा काम नहीं कर पाते थे. इसी वजह से हमारी पिटाई होती थी. बारी-बारी से मां व बेटे की ओर से पीटा जाता था.
चंदन बताता है, जब वह 11 साल का था, तब उसे पांच सौ रुपये पर कल्पना श्रीवास्तव के यहां काम मिला था. शर्मिला देवी ने काम दिलवाया था. इसके बाद से ही उसे वापस घर नहीं आने दिया जा रहा था, लेकिन कल्पना श्रीवास्तव का कहना है, उन्होंने चंदन के ऊपर दया की थी. पहले कह रही थी. एडवांस में रुपया ले लिया.
चुकाना नहीं पड़े, इसलिए मां-बेटा ऐसा बोल रहे हैं. अब कह रही हैं, हमारा कीमती सामान चुरा ले गया चंदन. मामला कोर्ट में है, जो फैसला लेना होगा, अदालत लेगी, लेकिन जिस तरह से चंदन का शरीर हो गया है. वह किसी सामान्य बच्चे का नहीं होगा.