टेटियाबंबर. प्रखंड के जगतपुरा दुर्गा मंदिर का इतिहास 252 वर्ष पुराना है. मान्यता के अनुसार यहां जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां दुर्गा से मन्नत मांगते हैं, मां उनकी मुरादें पूरी करती है.
पुत्री की प्राप्ति होने पर जमींदार ने मंदिर के लिए दान दी थी जमीन
बताया जाता है कि वर्षों पूर्व जगतपुरा के जमींदार काली सिंह ने संतान की प्राप्ति के लिए इस दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा से मन्नत मांगी थी. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद उन्हें पुत्री की प्राप्ति हुई. इसके बाद जमींदार काली सिंह ने मां जगतपुरा व्रतघटा तिलकारी दुर्गा मंदिर के नाम से अपनी जमीन दान कर दी. इसके बाद जगतपुरा में दुर्गा पूजा शुरु हुआ और ग्रामीणों व श्रद्धालुओं के सहयोग मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर भव्यता प्रदान किया गया. मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है. यहां पंडित श्याम की देखरेख में पूजा-पाठ शुरू की गयी.
मां विंध्याचल दुर्गा ने स्वप्न दिखाया तो मंदिर की हुई स्थापना
श्याम पंडित ने कहा कि कि वर्षों पूर्व उनके पूर्वज नदी किनारे पहुंचे थे. वहां एक कुमारी कन्या को देखा कन्या ने उनके पूर्वजों से वस्त्र की मांग की, तो उसमें से एक ने कंधे पर रखा गमछा दे दिया. उसके बाद कन्या ने उन्हें घर ले जाने की बात कही. पूर्वज घर से वापस आकर ले जाने की बात कहकर चले गये. परंतु वापस कुमारी कन्या को लेने के लिए जब नदी किनारे पहुंचे तो वह वहां नहीं मिली. उसके बाद रात में स्वप्न में देवी ने उनसे कहा कि मैं मां विंध्याचल हूं. तब पूर्वजों ने मां दुर्गा मंदिर की स्थापन की. तब से यहां मंदिर में शारदीय नवरात्र पर विशेष पूजा-अर्चना की प्रथा चली आ रही है. बता दें कि मां दुर्गा के पुराने मंदिर में मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के मुकुट सोना और चांदी का है. इस मंदिर में माता की पूजा-अर्चना करने के लिए प्रखंडवासी सहित दूर-दराज से भक्त पहुंचते हैं.
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