मुंगेर : राज्य में पिछले तीन वर्षों से ईंट-भट्ठा को नयी तकनीक जिग-जैग से लैस करने की कवायद चल रही थी. इसकी अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो गयी. लेकिन कुछ को छोड़ कर स्वच्छता तकनीक से जिले का ईंट भट्ठा को परिवर्तित नहीं किया गया है.
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पुरानी पद्धति पर ही संचालित हो रहे मुंगेर में ईंट-भट्ठे, फैला रहा प्रदूषण, कार्रवाई नहीं
मुंगेर : राज्य में पिछले तीन वर्षों से ईंट-भट्ठा को नयी तकनीक जिग-जैग से लैस करने की कवायद चल रही थी. इसकी अवधि 31 अगस्त को समाप्त हो गयी. लेकिन कुछ को छोड़ कर स्वच्छता तकनीक से जिले का ईंट भट्ठा को परिवर्तित नहीं किया गया है. राज्य में लगभग तीन हजार ईंट-भट्ठा को नयी […]
राज्य में लगभग तीन हजार ईंट-भट्ठा को नयी तकनीक से लैस नहीं होने पर बंद करवा दिया गया है, लेकिन मुंगेर में खनन विभाग एवं प्रदूषण नियंत्रण विभाग की कार्रवाई पूरी तरह से शून्य पर आउट है. इसके कारण आज भी पुराने पद्धति पर ही ईंट-भट्ठा का संचालन किया जा रहा है.
मुंगेर में संचालित हो रहे 46 ईंंट-भट्ठे: जिला खनन विभाग के रजिस्टर में 46 ईंट-भट्ठा संचालित होने की पुष्टि है. सबसे अधिक ईंट-भट्ठा का संचालन नयारामनगर, मुफस्सिल, बरियारपुर, कासिम बाजार एवं हवेली खड़गपुर में हो रहा है. विभाग की मानें तो मात्र 10-11 ईंट-भट्ठा संचालक द्वारा ही नयी तकनीक लगाने का व्योरा दिया है.
जब विभाग से जिग-जैग पद्धति से लैस ईंट-भट्ठा का व्योरा मांगा गया, तो विभाग के कर्मी ने इसे देने में असमर्थता जतायी. इससे पता चलता है कि जिले में जो ईंट-भट्ठा संचालित हो रहा है वह आज भी पुराने पद्धति पर ही हो रहा है.
बेगूसराय में कार्यालय रहने से चांदी काट रहे संचालक: बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने यह साफ कर दिया है कि प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण अब भट्ठे को परिवर्तित नहीं किया गया, तो किसी भी कीमत में न तो संचालन की अनुमति दी जायेगी और न ही उन्हें रिन्युअल मिलेगा.
पहले से लगे ईंट-भट्ठों को अब अपनी तकनीक में बदलाव लाना होगा. बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयास करना होगा. इसके लिए 31 अगस्त 2019 तक का गाइड लाइन तय किया गया था. यह समय बीत चुका है. लेकिन मुंगेर के ईंट-भट्ठा संचालक पर सरकार के इस आदेश का कोई असर नहीं देखा जा रहा है.
माना जा रहा है कि प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय मुंगेर में नहीं है. यह कार्यालय बेगूसराय में है, जिसके अधीन मुंगेर जिला आता है. बेगूसराय प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय से कोई पदाधिकारी यहां कार्रवाई के लिए नहीं आता है. जिला खनन विभाग ने भी चुप्पी साध ली है. इसके कारण मुंगेर के ईंट-भट्ठा संचालकों की चांदी है.
क्या है ईंट-भट्ठे की पुरानी तकनीक: एफसीबीटीके यानी फिक्स्ड चिमनी बुल्स ट्रेंच क्लीन का प्रयोग अभी तक चिमनी में हो रहा था, जो आकार में गोल या बादामी होते हैं. कच्ची ईंटों को भट्ठे में पकने के लिए पायों में सजाया जाता है.
भट्ठे में कोयले की झुंकाई चम्मच द्वारा भट्टे की छत पर बने कोल फीडिंग होल से की जाती है. इसमें आमतौर पर दो से तीन लाइनों में कोयले की झुंकाई की जाती है. इसमें कोयले की ज्यादा खपत होती है. जिससे वायु प्रदूषण भी अधिक होता था. इसमें खर्च भी ज्यादा होता था. यही नहीं केवल 50 से 60 फीसदी ईंटे ही क्लास वन की निकल पाती है.
किस थाना क्षेत्र में कितने ईंट भट्ठे हो रहे संचालित
थाना ईंट भट्ठा की संख्या
नयारामनगर 11
मुफस्सिल 07
बरियारपुर 07
कासिम बाजार 07
हवेली खड़गपुर 07
संग्रामपुर 01
तारापुर 02
गंगटा 04
क्या है नयी तकनीक
क्लीनर टेक्नोलॉजी में जिगजैग तकनीक है. इसका प्रयोग कर पुराने भट्ठे से 70 से 80 प्रतिशत कम प्रदूषण होता है और खर्च भी 25 फीसदी तक घट जाता है. क्लास वन ईंटें 80 फीसदी ज्यादा निकलती है. जिगजैग भट्ठों में हवा का बहाव सीधे होने की बजाय जिगजैग यानी टेढ़ा-मेढ़ा या घुमावदार तरीके से होता है. इन भट्ठों में ईंटों की भराई चैंबरों में इस तरह की जाती है कि हवा का बहाव जिगजैग हो. इसमें दो प्रकार के भट्ठे होते हैं. नेचुरल ड्राफ्ट में हवा का खिंचाव चिमनी द्वारा होता है और दूसरे हाई ड्राफ्ट में हवा का खिंचाव एक पंखे की सहायता से किया जाता है.
बोले जिला खनन पदाधिकारी: जिला खनन पदाधिकारी निधी भारती ने कहा कि अभी ईंट-भट्ठा का सीजन नहीं है. प्रदूषण विभाग से भी कोई पत्र नहीं आया है. अगर ईंट-भट्ठा पर नयी तकनीक नहीं लगायी गयी होगी तो प्रदूषण विभाग द्वारा पत्र मिलने पर कार्रवाई की जायेगी.
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