मधुबनी. जिलाधिकारी आनंद शर्मा ने फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सभी संबंधित अधिकारियों को कई आवश्यक निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा है कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए व्यापक जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाए. उन्होंने किसान चौपालों में कृषि वैज्ञानिकों की उपस्थिति में किसानों को फसल जलाने से होने वाले नुकसान एवं पराली प्रबंधन की जानकारी देने का निर्देश दिया. उन्होंने कहा कि विद्यालयों में बच्चों को फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी दें. डीएम ने कहा कि फसल अवशेष को जलाने से खेतों की उर्वरा शक्ति को काफी नुकसान होता है. प्रकृति व मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा कि कृषि विभाग की ओर से कई कृषि यंत्र किसानों को अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है. ताकि किसान खेतों में फसल अवशेष को न जला कर उसे यंत्र द्वारा खाद के रूप में उपयोग कर सकें. जिलाधिकारी ने कहा कि फसल अवशेषों को खेतो में जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति व मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. फसल अवशेष को खेतों में जलाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है. जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. उन्होंने कहा कि फसल अवशेष को खेतों में जलाने से सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन, नाक एवं गले की समस्या बढ़ती है. मिट्टी का तापमान बढ़ने के कारण मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवाणु केचुआ मर जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक टन पुआल जलाने से वातावरण को होने वाले नुकसान के कारण 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोक्साइ, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड 199 किलोग्राम राख, 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित होता है. जिलाधिकारी ने कहा कि हार्वेस्टर मालिकों को कृषि विभाग से लेनी अनुमति लेना होगा. बिना अनुमति के हार्वेस्टर चलाने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने उप निदेशक (कृषि अभियंत्रण), मधुबनी को निर्देशित किया है कि कृषि यांत्रीकरण योजना अन्तर्गत अनुदानित दर पर उपलब्ध कराये गये फसल अवशेष प्रबंधन से संबंधित कृषि यंत्रों की उपलब्धता के लिए किसानों को जागरूक करें. उन्होंने जिला सहकारिता पदाधिकारी को निर्देशित किया है कि धान अधिप्राप्ति के समय किसानों को जागरूक करेंगे कि खेतों में फसल अवशेष नहीं जलायें.
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