मधुबनी : पहले एक सौ पच्चास बेड का फिर पांच सौ बेड में उत्क्रमित उसके बाद मॉडल अस्पताल का दर्जा प्राप्त सदर अस्पताल में सुविधाओं का अभाव है. आलम यह है कि एक करोड़ रुपये की लागत से बना सदर अस्पताल स्थित आइसीयू वर्षों से बंद है. विशेष संक्रमित रोग से ग्रसित मरीजों के लिए बनाये गये आइसीयू इन दिनों फालतू सामानों का भंडार गृह बन गया है.
ऐसे में गहन सघन चिकित्सा इकाई में आने वाले मरीजों को प्राथमिक उपचार के बाद सीधे डीएमसीएच व अन्य स्वास्थ्य संस्थानों में रेफर कर दिया जाता है. विडंबना है कि सरकार मरीजों को बेहतर चिकित्सीय सुविधा देने की लाख कवायद करें लेकिन जिला अस्पताल महज कुछ सुविधाओं से उपर रहकर पीएचसी के जैसा ही मरीजों को सेवा दे रहा है.
दो तीन वर्ष ही संचालित हुआ आइसीयू. सदर अस्पताल में जिला के गंभीर रोग से ग्रसित मसलन पक्षाघात, हार्ट अटैक, प्वाइजनिंग व अनकसियस मरीजों के लिए सदर अस्पताल में आइसीयू की स्थापना वर्ष 2008 में किया गया था. उद्देश्य था गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीजों को जिला अस्पताल में ही सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराना.
एक करोड़ रुपये से अधिक लागत से निर्मित आइसीयू में 7 बेड वेंटीलेशन, पल्स आक्सोमीटर कार्डियो मानीटर सहित आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित था. लेकिन विडंबना रहा कि यह आइसीयू से निर्माण के दो- तीन वर्ष ही मरीजों को सेवा उपलब्ध हो सका. जिसके बाद से आइसीयू बंद हो गया.
निर्माण के समय आइसीयू के लिए पांच चिकित्सकों को प्रतिनियुक्त किया गया था. इसके साथ ही कई तकनीकी कर्मियों सहित स्टाफ नर्स की भी तैनाती थी. आज निर्माण के दस-ग्यारह वर्षों में ही मरीजों के लिए बना आइसीयू खुद आइसीयू में चला गया है. जहां मरीजों का इलाज नहीं बल्कि विभिन्न कार्यालयों के खराब समानों का भंडार गृह बन गया है. आलम यह है कि आज के समय में आइसीयू में होने वाला इसीजी सेवा भी वर्षों से बंद है. लंबे चौड़े आइसीयू भवन के एक कमरे में कभी कभार कालाजार के भर्ती मरीजों के उपचार किया जाता है.
लाखों रुपये का उपकरण बर्वाद
रख रखाव के अभाव में आइसीयू कक्ष में लगे लाखों रुपये का आधुनिक उपकरण यंत्र बर्वाद हो गया है. जिसमें एसी सहित कई उपकरणों की चोरी भी चोरों द्वारा कर ली गयी. साथ ही कई उपकरणों के बर्वाद होकर केवल आइसीयू का एहसास दिलाता है. विदित हो कि सदर अस्पताल के कर्मियों सहित चिकित्सकों का वेतन मद का सालाना वजट 7 करोड़ तथा एआरयू का वार्षिक बजट लगभग 3 करोड़ रुपये का है. आंकड़ों पर गौर करें तो सदर अस्पताल में मरीजों को बेहतर चिकित्सीय व्यवस्था के लिए प्रति वर्ष लगभग 10 करोड़ रुपये खर्च किया जाता है. वहीं मॉडल अस्पताल का दर्जा प्राप्त जिला अस्पताल में मरीजोंको इसीजी की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है.
डाक्टरों की कमी से बंद है आइसीयू
चिकित्सकों के कमी के कारण आइसीयू बंद हुआ. जिसके बाद नयी नियुक्ति नहीं होने के कारण उसे पुन: पुराने रूप में नहीं लाया जा सका. उन्होंने बताया कि वर्तमान 8 चिकित्सक के सहारे ही इमरजेंसी, ओपीडी सहित अन्य चिकित्सीय कार्य किये जा रहे हैं. साथ ही उपलब्ध संसाधनों से आने वाले मरीजों को बेहतर सेवा उपलब्ध करायी जा रही है. चिकित्सकों की कमी के संबंध में सिविल सर्जन को भी पत्र के माध्यम से सूचना दी गयी है.
डा. एचके सिंह, अधीक्षक, सदर अस्पताल