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ई का कर देलहअ हो अल्ला हाथ फैला कर दिन गुजार रहल छी…

बाढ़ का कहर : 15वें दिन भी राजघट्टा के 50 घर पानी से घिरे बेनीपट्टी : सीतामढ़ी सीमा पर स्थित प्रखंड का बररी पंचायत निचले इलाके में बसे होने के कारण हर वर्ष बाढ़ के चपेट में आ जाता है. पंचायत का राजघट्टा गांव सर्वाधिक नीचले इलाके में होने के कारण बर्बादी का दंश झेलता […]

बाढ़ का कहर : 15वें दिन भी राजघट्टा के 50 घर पानी से घिरे

बेनीपट्टी : सीतामढ़ी सीमा पर स्थित प्रखंड का बररी पंचायत निचले इलाके में बसे होने के कारण हर वर्ष बाढ़ के चपेट में आ जाता है. पंचायत का राजघट्टा गांव सर्वाधिक नीचले इलाके में होने के कारण बर्बादी का दंश झेलता रहा है. बाढ़ आने के 15वें दिन भी राजघट्टा का तकरीबन 50 घर बाढ़ के पानी से घिरा हुआ है. जहां पहुंच पाना चुनौती है. कदम-कदम पर सड़कें बाढ़ की सितम की कहानी बयां कर रही है.

गांव की 50 फीट मुख्य सड़क क्षतिग्रस्त हो गयी है. सड़क क्षतिग्रस्त होने के साथ मो. अख्तर अंसारी अपनी बेगम वसीला खातून के साथ गिरे घर के मलबे में खाक छान रही थी. पूछने पर अख्तर ने बताया कि फूंस के तीन घर थे. लेकिन13 जुलाई की आधी रात तबाही की रात साबित हुई. रात के करीब दो बजने वाले थे.

अचानक करीब पांच फीट पानी गांव में प्रवेश कर मुख्य सड़क को क्षतिग्रस्त कर दिया. सड़क टुटते ही पानी की धारा तेज हो गयी. पानी की तेज धारा ने तीन कमरे वाले घर के दो कमरे को अपने साथ बहा ले गया. घर में रखे अनाज, कपड़ा, पेटी, बक्सा कुछ भी नहीं निकाल सके. जब तक शोर करते और गांव के लोग आते तब तक सब कुछ डूब गया था.

टॉर्च और मोबाइल की रोशनी पर तिनके बिखरते अपने घर को तमाशबीन की तरह देखते रह गये. फिर गांव में अफरातफरी मच गयी. लोग अपने-अपने घर की ओर भागने लगे. सभी के घर में पानी घुस जाने का भय सता रहा था.

लिहाजा कोई किसी की सुनने या मदद करने की स्थिति में नहीं था. रात भर बगल के एक उंचे टीले पर अपने पांच छोटे-छोटे बच्चों के साथ बैठकर अपनी बर्बादी पर आंसू बहाते रहे. सुबह परोस के एक मकान में शरण लिया. सुबह होते-होते पास के मो. अब्दुल जब्बार, कमरे अंसारी, जाहिरा खातून सहित 10 लोगों के घर ध्वस्त हो गये. टुटे घर में सामान तलाशती अख्तर की पत्नी कहने लगी जाने कहिया हमरा सभ के ई मुसीबत से छुटकारा मिली है. बाढ़िक तबाही हमरा सभ के दर-दर ठोकर खाये लेल विवश कर दिहे. पंद्रह दिन से केकरा केकरा लग हाथ फैला कर वक्त गुजार रही है.

उनके घर से चंद कदम की दूरी पर ही मो. काफिल नदाफ का खपरैल घर गिर गया था. अब भी घर के सामान खपड़ा और मिट्टी के ढेर में पलंग के टुकड़े, बिस्तर, बाल्टी, चूल्हा, बर्तन, पेटी बक्शा आदि सामान दबे पड़े थे. उसकी पत्नी अजमेरी खातून दहाड़े मारकर रोये जा रही थी. अल्ला हो अल्ला, ई सब कि क देल्हो हो. आब हम कोना जिबई हो अल्ला. अजमेरी के छह बच्चे कैनात फातिमा (10), खुशबू (8), आरजू (6), मो. कैफ (5), आयत प्रवीण (2) और मो. सैफ (1) हैं. आगे बढ़े तो मो. रसूल और जरीना खातून सहित कई लोगों के घर की कमोबेश यही स्थिति देखने को मिली. देखते ही देखते पीड़ितों की भीड़ उमड़ पड़ी. सभी अपने घर को दिखाने और अपनी व्यथा सुनाने की कोशिश करने लगे.

तबाही का मंजर देख मेरे रोंगटे खड़े हो गये. हमने जब सरकारी मदद की बात पूछा तो लोग एक दम से बिफर पड़े. कहने लगे कि इसी गांव का मुखिया होने के कारण अपने स्तर से तीन दिनों तक खिचड़ी खिलाया. लेकिन सरकार के मुलाजिमों के द्वारा अब तक एक फूड पैकेट भी नहीं दिया गया है. गांव के लोगों से ही कर्ज लेकर बाल बच्चों को खिला रहे हैं. सामुदायिक किचेन भी वहीं चलाया गया जहां हमलोग नही. पहुंच सकते थे.

शुरुआत के चार दिन तो चूड़ा, बिस्किट खाकर गुजारा किये. अब भी बाढ़ सहायता राशि के छह हजार रुपये रास्ते में ही अटका है. सरकारी सहायता के नाम पर महज एक नाव उपलब्ध कराया गया है. बस बाढ़ विभीषिका की पीड़ा सुनकर हम थक चुके थे. आखिर कितने का दुःख सुन पाते. जितने लोग उससे अधिक उनकी पीड़ा, गम, शोक, दर्द और व्यथा मुझे वापस लौटने को विवश कर दिया है.

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