-ग्रामीणों ने बैठक कर लिया निर्णय, कहा- समाज में व्याप्त कुरीति व आडंबर से निजात है जरूरी- पवन कुमार, कुमारखंड प्रखंड के रानीपट्टी गांव में अब किसी की मृत्यु पर न भोज होगा और न ही कर्मकांड. रानीपट्टी पूर्वी एवं रानीपट्टी पश्चिमी के ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है. मृत्युभोज की प्रथा गरीब परिवार को भीतर से तोड़ देती है. कई बार इसके लिए लिए गए कर्ज का भार दूसरी पीढ़ी भी उठाती रहती है. ग्रामीणों ने ऐसा साहसिक निर्णय लिया है, जो न केवल अंधविश्वास की बेड़ियों को तोड़ने वाला है, बल्कि भोज के नाम पर कर्ज के बोझ से भी गरीबों को निजात दिलायेगा. गांव के लोगों ने तय किया है कि किसी के निधन पर वे न तो मृत्युभोज करेंगे और न ही किसी तरह का कर्मकांड ही होगा. -पहले हिचकिचाए, फिर हो गए सहमत- रविवार को रानीपट्टी वार्ड नंबर दस निवासी जुगत लाल यादव का निधन हो गया. वहां लोग एकत्रित हुए थे. दाह संस्कार के बाद रानीपट्टी पश्चिम स्थित शिव मंदिर परिसर में बैठक हुई. इसी बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि समाज में व्याप्त कुरीतियों को सुधारने की जरूरत है. इसलिए मृत्युभोज नहीं किया जाये और न ही कर्मकांड ही कराया जाये. पहले तो गांव के लोग इस बात पर थोड़ा हिचकिचा रहे थे, लेकिन बाद में सब सहमत हो गये. बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि गांव में किसी की भी मृत्यु पर इसी परंपरा को आगे बढ़ाया जाये. इस निर्णय में मुख्य रूप से ई अजित प्रसाद, अमीलाल यादव, बालेश्वर यादव, पंकज कुमार, आनंद कुमार, उपेंद्र यादव, सुभाष चौधरी, मुखिया अनिल ऋषिदेव, पूर्व पंसस अशोक कुमार यादव, सनोज यादव, राजेश कुमार, अरुण कुमार, पूर्व पंसस शंभू यादव, दानी यादव, अच्छेलाल यादव, सुबंधु दास, रमाकांत यादव, बबलू कुमार, नत्थन ऋषिदेव, रविरंजन ज्योतिष, रामाशीष कुमार, पुष्पक कुमार एवं अन्य ग्रामीण शामिल थे. -मृत्युभोज के कर्ज से अब तक नहीं उबर पाए कई- ई अजित ने बताया कि यह निर्णय बहुत ही आवश्यक था. पंचायत के अनेकों लोग अपने माता-पिता एवं संबंधी की मृत्यु पर कर्ज लेकर भोज किए थे, जो अभी तक उससे नहीं उबार पाए हैं. गांव के आनंद कुमार ने बताया कि गांव में कर्मकांड का विरोध लंबे समय से चल रहा था. इसकी शुरुआत 2020 में चंद्रकिशोर दास के देहावसान से हुई थी. उनके निधन के बाद कोई कर्मकांड नहीं हुआ था. पांचवें दिन श्रद्धांजलि भोज रखा गया था. उस समय भी ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन अब गांव वाले इसके लाभ को समझने लगे हैं. इंतजार इस बात का है कि यह वैचारिक आंदोलन रानीपट्टी गांव से निकलकर राज्य और पूरे देश में फैले. -साल में 50 लाख से पांच करोड़ होता है खर्च- मृत्युभोज पर साल में 50 लाख से अधिक खर्च होता रहा है. इसे लेकर सामाजिक कार्यकर्ता बबलू कुमार ने बताया कि एक आकलन के अनुसार सिर्फ रानीपट्टी गांव में एक साल में मृत्युभोज पर होने वाला खर्च 50 लाख से पांच करोड़ रुपये से भी अधिक है. औसतन एक पंचायत में एक मृत्युभोज पर पांच लाख से ज्यादा खर्च हो रहा है. दस लोगों के मृत्युभोज के नाम 50 लाख से अधिक खर्च हो रहा है. जो गरीबों की जिंदगी को आर्थिक विपन्नता में धकेल देता है. सामाजिक कार्यकर्ता बबलू कुमार और फॉरएभर कंपनी के कार्यकर्ता राजेश कुमार अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं. जिसकी समझ वर्षों बाद लोगों को हुई और सर्वसम्मति से मृत्युभोज एवं कर्मकांडों को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया.
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