मधेपुरा.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य की द्वितीय राजभाषा उर्दू के प्रचार-प्रसार, संरक्षण व सर्वांगीण विकास की दिशा में अभूतपूर्व कार्य किया जा रहा है. उर्दू निदेशालय द्वारा राज्य के सभी विभागों, जिला समाहरणालयों, अनुमंडलों, प्रखंडों व अंचल कार्यालयों में उर्दू भाषा कोषांगों के माध्यम से नागरिकों को सुगम भाषायी सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है. यह जानकारी उर्दू परामर्शदात्री समिति बिहार सरकार के सदस्य डॉ फिरोज मंसूरी ने दी. उन्होंने बताया कि वित्तीय वर्ष 2025-26 में उर्दू निदेशालय द्वारा अनेक महत्वपूर्ण योजनाएं व गतिविधियां प्रभावी रूप से क्रियान्वित की जा रही है. इसमें प्रमुख रूप से राष्ट्रीय स्तर पर उर्दू साहित्य की सेवा में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों व लेखकों को शिखर पुरस्कार व नामित पुरस्कार प्रदान किया जाता है. उर्दू लेखकों व कवियों की पाण्डुलिपियों के प्रकाशन के लिए अनुदान वर्ष 2022-24 के दौरान 134 पाण्डुलिपियों पर ₹30,57,000/- की राशि व्यय की जा चुकी है. दिवंगत साहित्यकारों व कवियों की स्मृति को जीवंत बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया. प्रतिभाशाली उर्दू भाषी छात्रों को वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के आधार पर 57,00,000/- की प्रोत्साहन राशि के साथ मेडल व प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाता है. द्वितीय राजभाषा उर्दू के प्रचार-प्रसार व दक्षता विकास के लिए नियमित कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन किया. राष्ट्रीय स्तर पर कवि सम्मेलन, उर्दू नाटक, मुशायरा व शाम-ए-गजल जैसे साहित्यिक कार्यक्रमों का आयोजन किया. त्रैमासिक पत्रिका ‘भाषा संगम’ का प्रकाशन तथा उर्दू साहित्यकारों के जीवन व कृतित्व पर आधारित मोनोग्राफ का प्रकाशन किया. ऑनलाइन व ऑफलाइन माध्यम से उर्दू सीखने-बोलने के प्रशिक्षण कार्यक्रम किया. वर्ष 2025 में नौवीं बैच की परीक्षा संपन्न हुई है तथा 10वीं बैच जनवरी 2026 से प्रारंभ होगी. आवेदन-पत्रों, सरकारी आदेशों, विज्ञापनों, जिला गजटों व संकेत-पट्टों में उर्दू भाषा का समुचित व प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जा रहा है. मौके पर डॉ फिरोज मंसूरी ने कहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उर्दू के प्रति अपार संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता के कारण बिहार देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहां उर्दू को सभी प्रशासनिक स्तरों पर सम्मानजनक व व्यावहारिक स्थान प्राप्त हुआ है. आज उर्दू केवल साहित्य की भाषा नहीं रही, बल्कि शासन, शिक्षा व सामाजिक पहचान का सशक्त माध्यम बन चुकी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

