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जिले में मासूमों का भविष्य हो रहा बदहाल, दुकानदार हो रहे मालामाल

मधेपुरा : कोसी क्षेत्र में अब भी करोड़ों की आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है. इस कारण अभिभावकों का बच्चों से बाल मजदूरी करवाना उनकी मजबूरी बन जाती है, जिसका फायदा उठाकर कुछ व्यापारी व संपन्न लोग बेहद कम पैसे में काम के नाम पर बच्चों का शोषण करते है. कोसी क्षेत्र […]

मधेपुरा : कोसी क्षेत्र में अब भी करोड़ों की आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है. इस कारण अभिभावकों का बच्चों से बाल मजदूरी करवाना उनकी मजबूरी बन जाती है, जिसका फायदा उठाकर कुछ व्यापारी व संपन्न लोग बेहद कम पैसे में काम के नाम पर बच्चों का शोषण करते है. कोसी क्षेत्र में बचपन पूरी तरह से कराहता नजर आ रहा है. संपूर्ण साक्षरता व बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को मुंह चिढ़ा रहे है. सर्व शिक्षा अभियान व बालश्रम कानून महज दिखावा बनकर रह गयी है.

नौकरशाही हो या शासन सत्ता में बैठे लोग कोई भी इस बात के लिए फिक्रमंद नहीं है कि कचरे में भटकती हुई जिंदगी को संवारा कैसे जाये. अफसरों की अनदेखी के चलते जिले के होटल, ढाबा व चाय की दुकानों पर सैकड़ों की संख्या में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. वहीं इन बच्चों से काम करवाने वाले इनसे मेहनत तो ज्यादा करवाते हैं, लेकिन मजदूरी कम देते हैं.
पढ़ाई की उम्र में होटल, चाय दुकान पर करते हैं काम: जिला मुख्यालय से लेकर प्रखंड, कस्बों में संचालित हो रहे होटल, चाय की दुकानों व खेमचों पर 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को झूठे कप प्लेटों को धोते हुये अक्सर देखा जाता है.
सुबह होते ही नौनिहाल पीठ पर बस्ता की जगह बड़ा-बड़ा बोरा लादकर आंख मलते हुये सड़कों, गलियों से प्लास्टिक व कागजों को उठाते हुये आसानी से देखे जा सकते है. कुछ ने तो अभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है. जिनके सिर से मां-बाप का साया ही नहीं है या फिर उनके माता-पिता शारीरिक रूप से इतना अशक्त है कि इन बच्चों के पास कचरा बीनने के सिवाय और कोई विकल्प ही नहीं है.
स्थिति यह है की तमाम बच्चे यह जानते ही नहीं बचपन आखिर होता क्या है. जबकि जिला मुख्यालय में एक बाल कल्याण समिति बनी हुई है व प्रोवेशन अधिकारी भी नियुक्त है. लेकिन सब मूकदर्शक बने बैठे है. नौनिहालों का शोषण होता देख रहे है.
मुक्त कराये गये बच्चों के अभिभावक को 25 हजार की राशि देती है सरकार:
ज्ञात हो कि मुक्त कराये गये बच्चों को मुख्यमंत्री राहत कोष की ओर से 25 हजार रुपये उनके भरण-पोषण के लिए दिया जाता है, जो सभी सरकारी जांच पड़ताल होने के बाद उनके माता-पिता अथवा अभिभावक को सौंपा जाता है. वही बाल श्रम विभाग की ओर से तीन हजार की राशि तत्काल उसे प्रदान की जाती है.
अब तक 21 बच्चों को मिला नया जीवन: बीते जून माह में श्रम विभाग मधेपुरा ने 12 बच्चों मुक्त करवाया. वही जुलाई व अगस्त में इसका आंकड़ा शून्य रहा, जबकि सितंबर में अब तक आलमनगर से तीन बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया गया. वहीं जून से पहले श्रम विभाग द्वारा पिछले छह महीने में यानी की जनवरी से जून तक कुल छह बच्चे को मुक्त कराया गया है.
शहर में से कहीं भी बाल मजदूरी को लेकर कोई सूचना मिलती है, तो तुरंत करवाई की जाती है. शहर में बाल मजदूरी को रोकने के लिए 14 वर्ष से कम के किशोरों को बाल मजदूर से मुक्त कराने के साथ-साथ शहर के जिला के विभिन्न प्रखंडों में जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है.
जिसके तहत जिन ढाबों पर अथवा होटलों में बाल मजदूरी के शिकार हुये बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवाया जाता है. वहीं बच्चों को मुक्त करवाने के साथ-साथ जागरूकता अभियान के तहत नियोजक से शपथ पत्र भरवाया जाता है ताकि वह दोबारा गलती न दोहराए. पुन: किशोरों से मजदूरी करते हुए पकड़े जाने पर तीन माह की सजा व पांच हजार का जुर्माना का प्रावधान है.
सुजीत कुमार, जिला श्रम अधीक्षक, मधेपुरा

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