लखीसराय.
बभनगावां स्थित श्री शेषनाग हाई स्कूल के शिक्षकों और छात्रों को बाढ़ के कारण जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचना पड़ रहा है. स्कूल के रास्ते में बाढ़ का गहरा पानी जमा हो गया है, जिसे पार करने के लिए वे जुगाड़ की नाव का सहारा ले रहे हैं. शिक्षकों का कहना है कि अपनी ड्यूटी निभाने के लिए उन्हें यह जोखिम उठाना पड़ रहा है. वे जानते हैं कि इस दौरान कोई भी हादसा हो सकता है, लेकिन उनके पास स्कूल जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. स्थानीय ग्रामीण मृत्युंजय सिंह ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कुछ छात्र-छात्राएं भी बड़ी मुश्किल से इस गहरे पानी को पार कर रहे हैं. उन्होंने जिला प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कोई दुर्घटना होती है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी. ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन या तो स्कूल तक आने-जाने के लिए नाव की व्यवस्था करे, या फिर स्थिति सामान्य होने तक स्कूल में छुट्टी दे दे. विद्यालय के प्राचार्य ने इस गंभीर समस्या को लेकर संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखकर सूचित कर दिया है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. जब तक पानी नहीं सूखता, शिक्षकों और छात्रों के लिए स्कूल पहुंचना एक बड़ी चुनौती रहेगा.700 से अधिक विद्यार्थी जान जोखिम में डालकर कर रहे आवागमन; जुगाड़ नाव का किराया भी चुकाना पड़ रहा
लखीसराय. श्री शेषनाग उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले 700 से अधिक छात्र-छात्राओं और 17 शिक्षकों को हर दिन जान जोखिम में डालकर स्कूल पहुंचना पड़ रहा है. बाढ़ का पानी स्कूल के रास्ते को पूरी तरह से डुबो चुका है, जिससे आवागमन का एकमात्र सहारा जुगाड़ की नाव बन गयी है. यह समस्या सिर्फ बभनगावां के छात्रों तक सीमित नहीं है. सदर प्रखंड के अमहरा, रामनगर, नीमचक, मनकट्ठा, दीघा और झाखर जैसे गांवों के अलावा, बड़हिया प्रखंड के ज्वास और धीरा जैसे दूर-दराज के गांवों से भी विद्यार्थी यहां पढ़ने आते हैं. इन सभी को स्कूल तक पहुंचने के लिए गहरे बाढ़ के पानी को पार करना पड़ता है. शिक्षकों और छात्र-छात्राओं को जुगाड़ नाव पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिसके लिए उन्हें किराया भी देना पड़ता है. यह आर्थिक बोझ के साथ-साथ सुरक्षा का भी बड़ा खतरा है. ग्रामीणों और विद्यालय प्रबंधन द्वारा बार-बार अधिकारियों को सूचित करने के बावजूद, जिला प्रशासन ने अभी तक इस गंभीर समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया है. 700 से अधिक छात्रों और उनके शिक्षकों की सुरक्षा को नजरअंदाज करना एक बड़ी लापरवाही है. जब तक प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तब तक इन छात्रों और शिक्षकों का भविष्य और जीवन दोनों खतरे में हैं.
बोले ग्रामीण
ग्रामीण मृत्युंजय सिंह का कहना है कि गहरे के पानी से स्कूल आने जाने में रिस्क है. नाव से उतरने चढ़ने में विद्यार्थियों एवं बुजुर्ग शिक्षक-शिक्षिकाओं को गिरने का भय बना रहता है. ग्रामीण दिनेश सिंह का कहना है कि पूर्व से बहने वाला पानी एक गड्ढे में जमा है या पानी बाढ़ का है. पानी की गहराई का कोई अंदाजा नहीं है. जिससे कि शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं को नाव का सहारा लेना पड़ता है. नाव से पानी में गिरने का भी डर बना हुआ रहता है. वरीय अधिवक्ता रजनीश कुमार ने बताया कि यह बहुत पुरानी समस्या है. बाढ़ का पानी निकालने का एकमात्र रास्ता है. उन्होंने कहा कि गांव के टाल क्षेत्र का पानी इस पुलिया होकर ही निकलता है. जिससे कि वहां पर पानी जमा हो जाता है. यह समस्या प्रस्तावित सड़क बन जाने के बाद समाप्त हो जायेगी.
बोले अधिकारी
डीइओ यदुवंश राम ने कहा कि बाढ़ प्रभावित जैसे क्षेत्रों में स्कूल में बाढ़ के समय छुट्टियां दी जाती है. उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्र में बाढ़ के पानी निकल जाने के बाद गड्ढे में पानी जमा हो जाता है. कुछ दिन के बाद स्थिति सामान्य हो जाती है. जिसके विद्यालय सुचारू रूप से संचालन हो जाता है.
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