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चिंताजनक . दुर्लभ मूर्तियों की क्षेत्र से लगातार हो रही है चोरी

भगवान भरोसे हैं धरोहर चोरी रोकने के लिए नहीं उठाया गया कोई कदम जिले के धार्मिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के धरोहरों की सुरक्षा भगवान भरोसे है. जिले से दुर्लभ प्रतिमाओं की लगातार चोरी हो रही है ,लेकिन राज्य सरकार या जिला प्रशासन इसकी सुरक्षा की दिशा में कदम नहीं उठा रहा. हमारे कई धरोहरों […]

भगवान भरोसे हैं धरोहर

चोरी रोकने के लिए नहीं उठाया गया कोई कदम
जिले के धार्मिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व के धरोहरों की सुरक्षा भगवान भरोसे है. जिले से दुर्लभ प्रतिमाओं की लगातार चोरी हो रही है ,लेकिन राज्य सरकार या जिला प्रशासन इसकी सुरक्षा की दिशा में कदम नहीं उठा रहा. हमारे कई धरोहरों ऐसे क्षेत्र में हैं, जहां अपराधियों व नक्सलियों की समानांतर सरकारें चलती हैं. प्रशासन उन इलाकों में जाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाता.
लखीसराय :जिले में एक वर्ष पूर्व 19 फरवरी 2015 को सूर्यगढ़ा प्रखंड के बुधौली बनकर पंचायत के श्रृंगीऋर्षि धाम में रामायण कालीन दो हजार वर्ष पूर्व पुरानी मां पार्वती की पांच फीट की काले पत्थर की दुर्लभ प्रतिमा चोरी हो गयी थी. जिसका आज तक कोई पता नहीं चल पाया. आखिरकार वहां बुधवार 17 फरवरी 2016 को मां पार्वती की दूसरी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गयी. ऐसा नहीं है कि दुर्लभ मूर्तियों की चोरी यह पहली घटना है.
इसके पूर्व भी सूर्यगढ़ा प्रखंड के उरैन, कटेहर, लखीसराय के अशोक धाम आदि जगहों से कई दुर्लभ प्रतिमा की चोरी हो चुकी है. जिनका आज तक कोई पता नहीं चला. इनमें से कई प्रतिमा पालकालीन बतायी जाती है जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अच्छी कीमत होने का अनुमान है. 17 माह पूर्व रामगढ़ चौक प्रखंड के नोनगढ़ पंचायत अंतर्गत किसकिंधा से छह फीट ऊंची काले पत्थर की भगवान विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा की चोरी का प्रयास किया गया.
जिला प्रशासन द्वारा इन धरोहरों की सुरक्षा की दिशा में उठाया गया अब तक कदम नाकाफी रहा है. श्रृंगिऋषि धाम के समीप ही चानन प्रखंड के रामसीर गांव के समीप जलप्पा स्थान स्थित है. जिला मुख्यालय के पूर्वी भाग में स्थित इस स्थल पर देवी जलप्पा की प्राचीन मंदिर है. यहां के पुजारी रामसीर निवासी गोपाल शुक्ल की मानें तो यहां पिछले 400 वर्ष पूर्व उनके पांच पीढ़ी से मां जलप्पा की पूजा होती आयी है. यहां काले पत्थर की चार फीट की मां जलप्पा की प्रतिमा है.
एक ही प्रतिमा में भगवान शिव भी विराजमान है. सैकड़ों वर्ष पूर्व स्वप्न के आधार पर झाड़ी में दबे प्रतिमा को निकाल कर यहां स्थापित किया गया. जहां खैरा (जमुई) के राजा गुरु प्रताप सिंह ने लगभग सौ वर्ष पूर्व मंदिर का निर्माण कराया. इसके अलावे यहां कई छोटी-छोटी दुर्लभ मूर्तियां थी जो समय के साथ गायब होती गयी.
क्या है ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा की व्यवस्था
नक्सल प्रभावित इलाका में स्थित श्रृंगी ऋर्षि धाम,जलप्पा स्थान आदि स्थानों में सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है. नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से इन इलाकों में पुलिस की गश्ती कम ही होती है. दोनों मंदिरों में रात्रि काल में इक्के-दुक्के लोग ही रहते हैं. मंदिर के पुजारी शाम ढलने के बाद अपने धर लौट जाते हैं. यहां रात में अक्सर एक -दो साधु संत ही रहते हैं.
यही कारण है कि एक वर्ष पूर्व 19 फरवरी की रात्रि अज्ञात चोरों ने मंदिर की मां पार्वती की प्राचीन प्रतिमा चोरी कर ली जिसे आज तक नहीं बरामद किया जा सका. जलप्पा स्थान स्थित मंदिर के पुजारी गोपाल शुक्ल ने बताया कि शाम छह बजे के बाद वे मंदिर की आरती कर मंदिर में ताला जड़ अपने घर रामसीर लौट जाते हैं. रात में मंदिर के आसपास कोई नहीं होता. पुजारी श्री शुक्ल के मुताबिक दिन में तो श्रद्धालु भक्तों की आवाजाही होती है लेकिन शाम ढलने के बाद सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है.
मंदिर से तीन किलोमीटर की दूरी पर बीयर के समीप बीएमपी के जवान रहते हैं लेकिन मंदिर की सुरक्षा के नाम पर व्यवस्था नदारद है.
क्या है ऐतिहासिक स्थलों का धार्मिक महत्व
श्रृंगीऋर्षि धाम में भगवान श्री राम के जन्म के पहले का प्राचीन शिव मंदिर है. अयोध्या के राजा दशरथ पुत्र प्राप्ति की इच्छा से श्रृंगी ऋर्षि के आश्रम पधारे थे. पुत्र प्राप्ति के बाद यहां भगवान राम सहित उनके अन्य तीनों भाइयों का मुंडन संस्कार हुआ. इस उपलक्ष्य में राजा दशरथ ने यहां एक यज्ञ भी कराया था.
पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा यह धाम गरम जल के जलाशय के लिये भी जाना जाता है. वहीं स्थानीय लोगों का मानना है कि जलप्पा मंदिर में मां जलप्पा के आशीर्वाद पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. यहां महिलाएं जो साड़ी पहन कर आती हैं उसका आंचल फाड़ कर जलप्पा माई पर चढ़ाती है और उसी आंचल को मंदिर परिसर स्थित वृक्ष में बांध कर अपनी मनोकामना मांगती है. जब श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है तो वे यहां आकर बच्चे का मुंडन वगैरह करते हैं.

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