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धान की खेती बनी चुनौती, आर्थिक तंगी से जूझ रहे क्षेत्र के किसान

मेदनीचौकी : प्रखंड क्षेत्र के गोपालपुर, कवादपुर, किरणपुर, पूर्वी सलेमपुर, पश्चिम सलेमपुर पंचायत के सैकड़ों एकड़ जमीन में लगी धान की फसल को उपजाना चुनौती बन गयी है. रोपनी से लेकर निकौनी तक किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. मौसम की बेरुखी धान रोपनी के शुरुआती दौर से ही कहर बरपा रहा है और […]

मेदनीचौकी : प्रखंड क्षेत्र के गोपालपुर, कवादपुर, किरणपुर, पूर्वी सलेमपुर, पश्चिम सलेमपुर पंचायत के सैकड़ों एकड़ जमीन में लगी धान की फसल को उपजाना चुनौती बन गयी है. रोपनी से लेकर निकौनी तक किसान आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं.

मौसम की बेरुखी धान रोपनी के शुरुआती दौर से ही कहर बरपा रहा है और इसका सिलसिला आज तक चल ही रहा है. धान को बचाये रखने के लिए किसान नलकूप का सहारा ले-लेकर किसी तरह जिंदा रखे हुए है.
धान के अनुकूल पानी नहीं मिलने से घास की वृद्धि खेतों में काफी ज्यादा देखी जा रही है, जिससे धान का सृजन बाधित हो रहा है. किसान धान में घास की निकौनी कराने में मजदूरी देते हाफ रहे हैं. उसमें भी मौसम का रुख देख कर धान होने की उम्मीद कम ही दिख रही है.
धान की निकौनी पड़ रहा महंगा : धान के अनुकूल बारिश नहीं होने से धान रोपनी पर हुई खर्च से ज्यादा महंगा धान की निकौनी पड़ रहा है. बीच भंवर में फंसे किसान की स्थिति ‘भयी गति सांप -छुछुंदर केरी’ जैसी हो गयी है.
इन्हें धान की आशा छोड़ने में भी नहीं बन रहा है क्योंकि धान का 120 दिन में 60 दिन बीत गया है और आगे पूंजी नहीं लगावे तो उपज की आस छोड़नी पड़ेगी. किसानों से जब इसका मर्म जानना चाहा तो गोपालपुर पंचायत के किसान छितो मंडल ने बताया कि एक बीघा धान के रोपनी के शुरुआती दौर में सात हजार लगा. उसके बाद सिर्फ निकौनी में साढ़े छह हजार लगे.
अभी धान की फसल का आधा सफर तय हुआ है. अभी उसका खाद- पानी बाकी है. किसानों ने कहा कि धान में पूंजी लग चुका है. उसके सारे विधान करने की मजबूरी बनी हुई है. उधर, ये भी आशा है कि अगर धान के अनुकूल संतोषजनक बारिश हो गयी तो धान होने की उम्मीद की जा सकती है. ऐसी परिस्थिति में धान की निकौनी करवा कर नलकूप से पानी देकर जिंदा रखना किसानों के लिए मजबूरी बनी हुई है.

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