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दिघलबैंक प्रखंड के पश्चिमी क्षेत्र की सड़क व पुल-पुलिया क्षतिग्रस्त, ग्रामीण परेशान

नरेंद्र गुप्ता, दिघलबैंक : वर्ष बदल गया मगर नहीं बदली प्रखंड क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण सड़कों की सूरत.आज भी लोग बास की चचरी या डायवर्शन से ही जान जोखिम में डालकर आना जाना करते है. पिछले करीब डेढ़ वर्ष पूर्व आई प्रखंड क्षेत्र में भीषण बाढ़ ने प्रखंड के कई महत्वपूर्ण सड़को एवं पुल पुलिया […]

नरेंद्र गुप्ता, दिघलबैंक : वर्ष बदल गया मगर नहीं बदली प्रखंड क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण सड़कों की सूरत.आज भी लोग बास की चचरी या डायवर्शन से ही जान जोखिम में डालकर आना जाना करते है.

पिछले करीब डेढ़ वर्ष पूर्व आई प्रखंड क्षेत्र में भीषण बाढ़ ने प्रखंड के कई महत्वपूर्ण सड़को एवं पुल पुलिया को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था. हालात आज भी यह है कि लोहागड़ा, सिंघीमारी, सतकौआ, पत्थरघट्टी पंचायत के गांवों में पहुंचना आसान नहीं है.
हारीभिट्ठा गांव से लोहागड़ा पंचायत तक जाने वाली सड़कें आधा दर्जनों से अधिक जगहों पर कट चुकी है. कई जगहों पर पुल पुलिया ध्वस्त हो चुका है. हालांकि कई जगहों पर मिट्टी भर कर डायवर्शन बनाया तो कही आज भी चचरी से ही आना जाना करना पड़ता है. इस क्षेत्र में जीवन बसर कर रहे परिवारों का जनजीवन आज भी अस्त-व्यस्त है.
पश्चिमी क्षेत्र के लोगों की स्थिति ऐसी बनी है कि बाढ़ का पानी तो निकल गया. मगर निशान अभी भी बने हुए है. टूटी फूटी सड़के व पुल-पुलिया से आवागमन में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. आज भी कुछ लोग उस बाढ़ का मंजर को याद कर सिहर उठते है.
खड़खरिया, मंदिरटोला गांव के ग्रामीण बताते है कि आज भी जिला या प्रखंड मुख्यालय जाने के लिए पगडंडियों का इस्तेमाल करते है. कनकई नदी हर वर्ष यह कहर बरपाती है. मगर इस क्षेत्र का कोई सुध लेने वाला नहीं है. न ही जनप्रतिनिधि और न ही प्रशासन.
पुल के अभाव में हो रही परेशानी
प्रखंड के पश्चिम क्षेत्र को जोड़ने वाली मुख्य सड़क पर दोगिरजापर, नैनभीट्ठा, सिंघीमारी का निर्माण नहीं होने से लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि गत वर्ष के बाढ़ में पुल बह गया था. इसके बाद किसी स्तर से इसकी सुधी नहीं ली गयी.
लोग पुल निर्माण की मांग कर रहे है, लेकिन इस दिशा में पहल नहीं हो पाया है. क्षतिग्रस्त व ध्वस्त पुल पर ग्रामीणों के सहयोग से बांस की चचरी का पुल बनाया गया है. इससे लोग किसी तरह आवागमन कर रहे है. पुल के अभाव में स्कूली छात्रों सहित आम लोगों को काफी परेशानी हो रही है.
नेपाल से आती है बाढ़
नेपाल से सटे सीमावर्ती इलाकों में हर साल बाढ़ आती है, और अपने साथ लाती है भयानक तबाही हर साल लोग बेघर होते है.किसान के फसल हो या सड़के कई चीजों का नुकसान और आर्थिक क्षति होती है.
क्या है कारण भौगोलिक रूप से बिहार की तुलना में नेपाल काफी ऊंचाई पर बसा हुआ है. जहां के पहाड़ी इलाकों में होने वाली जबरदस्त बारिश विभिन्न स्रोतों के माध्यम से नदियों को भर देता है. जिसके बाद बलखाती हुई नदियां पहाड़ी क्षेत्र से गुजरकर जैसे ही बिहार के समतल मैदानी इलाकों में आती है. किनारे पर बसे गांव और इलाकों पर कहर बड़पाती है.
हर साल ये नदियां अपने जल के साथ कंकड़, पत्थर,बालू का भंडार लेकर आती है और जिस वजह से नदियों की गहराई कम होती जा रही है. साथ ही इन कारणों से से नदी की धारा भी बदल रही है. पिछले चार माह पूर्व आई बाढ़ ने प्रखंड में जमकर तबाही मचाई थी. साथ ही नदियों ने अपना धरा भी बदल दिया. जिस कारण अगले वर्ष वहां कटाव का खतरा मंडराने लगा है, और कमोबेस यही हालत अन्य दूसरी जगहों पर भी है.
अवैध खनन भी बड़ा कारण
बढ़ती जनसंख्या और तेजी से हो रहे निर्माण कार्य भी इस तरह के समस्या का प्रमुख कारण है, इसके अलावे प्रदूषण भी एक बड़ा कारण है क्योंकि कूड़ा-कचड़ा डंपिंग की व्यवस्था नहीं होने से सभी कचड़ा नदियों में ही डाला जा रहा है. इसके अलावे भी कई ऐसे कारण है जो नदियों की गहराई को समाप्त करती जा रही है.
जर्जर हैं सड़कें, टूटे हुए हैं पुल
वही हाल तुलसिया न्यू मार्केट से बीबीगंज बजार को जोड़ने वाली एक मात्र सड़क का है जो कालपीर गांव में बने पुल जो पिछले दस वर्षों से टूटा हुआ है. इस पुल के टूटने से करीब पांच पंचायत के हजारों लोगों को आवागमन करने में भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी कालपीर कनकई नदी धार पुल का कोई सुध लेने वाला नहीं है.
जिस कारण कोई वर्षों से यह क्षतिग्रस्त पुल अपने उद्धारक का बाटजोह रहा है. वही हाल सिंघीमारी पंचायत के पलसा घाट का है. आज भी लोग यहां चचरी पार कर गंतव्य तक पहुंचते है. सबसे ज्यादा दिक्कत टूटे हुए सीमा सड़क का है. स्थानीय प्रशासन द्वारा भी उन पर काम नहीं किया गया.
नहीं है कोई योजना
नदियों के जीर्णोद्धार और उसके प्रवाह को दुरुस्त करने की कोई योजना जमीन पर नहीं दिखती लिहाजा नदियों के अस्तित्व ही खतरे में है. अगर नदियों की गहराइयों पर काम नहीं किया गया तो बाढ़ जैसे हालात आते रहेंगे, इससे लोग परेशान होते रहेंगे लेकिन इससे कोई मतलब नहीं है.

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