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तिनका-तिनका जुटाने में लगे बाढ़ पीड़ित

बाढ़ का तांडव . मजबूत इच्छाशक्ति से ही पटरी पर लौट सकती है लोगों की जिंदगी टूटी सड़कें, दरकती दीवारें, सूने घर बता रहे हैं कि बाढ़ बहुत सारे दर्द लोगों को दे गई है. धीरे- धीरे घरों से पानी निकलने लगा है और लोग वापस लौटने की तैयारी में लग गये हैं. लौहागाड़ा पंचायत […]

बाढ़ का तांडव . मजबूत इच्छाशक्ति से ही पटरी पर लौट सकती है लोगों की जिंदगी

टूटी सड़कें, दरकती दीवारें, सूने घर बता रहे हैं कि बाढ़ बहुत सारे दर्द लोगों को दे गई है. धीरे- धीरे घरों से पानी निकलने लगा है और लोग वापस लौटने की तैयारी में लग गये हैं. लौहागाड़ा पंचायत के तालगाछ, तालगाछ कामत में पानी उतरने के साथ लोग वापस अपना आशियाना बसाने की तैयारी में हैं.
दिघलबैंक : बाढ़ ने जो कहर ढाया है, पानी घटने के साथ उसके निशान अब साफ -साफ दिखने लगे हैं. टूटी सड़कें, दरकती दीवारें, सूने घर बता रहे हैं कि बाढ़ बहुत सारे दर्द लोगों को दे गई है. धीरे- धीरे घरों से पानी निकलने लगा है और लोग वापस लौटने की तैयारी में लग गये हैं. लौहागाड़ा पंचायत के तालगाछ, तालगाछ कामत में पानी उतरने के साथ लोग वापस अपना आशियाना बसाने की तैयारी में हैं. बाढ़ में अपना सब कुछ लुटाने के बाद एक बार फिर से जिंदगी की नई पारी शुरू करने के लिए तिनका-तिनका जुटाने की कवायद पीड़ितों ने शुरू कर दी है.
घर में सांपों का डेरा
लौगाड़ा पंचायत के चिकारू के कच्चे-पक्के बने घर से पानी अब उतर चुका है. चार दिनों के मुश्किल हालात के बाद जब वे घर पहुंचे तो घर के अंदर जो मंजर था उसे देखकर कलेजा मुंह को आ गया जैसा लगा. जहां उनके बच्चे खेलते थे वहां सांपों का डेरा था. सांप ने खाली घरों में शरण लेकर अपनी जान बचाई थी. अब उन सांपों को बाहर कर या मार कर ही वे उस घर में रह सकते हैं. अभी भी उनके खेतों में पानी लगा है. घर के अंदर का अनाज और सामान बर्बाद हो चुका है. बच्चे भूख और प्यास से बेहाल हो रहे हैं. अभी तक राहत समान भी हमलोगों को नहीं मिला है. राहत के भरोस भरोसे अधिक दिनों तक रहा नहीं जा सकता है. चार दिनों के पानी और धूप के कारण शरीर बुखार से तप रहा है. ऐसे में चिकारू को समझ नहीं आ रहा है कि वे आखिर शुरू कहां से करें. जमा पूंजी तो सैलाब बहा ले गया अब तिनका-तिनका जुटाने की फिक्र सता रही है.
संघर्ष से जिंदगी लौट सकती है पटरी पर
जनप्रतिनिधियों, प्रशासन के दावों और आश्वासनों के बीच ऐसे कई चिकारू की जिंदगी के लिए संघर्ष करने को मजबूर हैं. उनके सामने समस्याओं का अंबार लगा है और उस सब से निपटने के लिए साधनहीन चिकारू के पास एक ही संबल है, वह है इनकी जीवटता और मजबूत इच्छा शक्ति. इसी जीवटता के सहारे एक बार फिर से गृहस्थ के सभी जरूरी सामग्री को जुटाना है. हर साल बाढ़ के बाद उनकी यही जीवन को वापस पटरी पर ले कर आती है. लेकिन इस बार की मुश्किल अन्य सालों से अलग है. बाढ़ तो हर साल आती है लेकिन इस बार आचानक आए बाढ़ के कारण कोई लोग अपने घरों से सामान तक नहीं निकाल पाये और जान बचाने के लाले पड़ गए. लेकिन जिन बस्तियों से पानी उतर चुका है वहां पर प्रशासन की मदद जितनी जल्दी पहुंचेगी उनकी परेशानी उतनी कम होगी.

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