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मां दुर्गा की छठे स्वरूप हैं मां कात्यायनी

मां दुर्गा की छठे स्वरूप हैं मां कात्यायनी विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ कात्यायनी मंदिर हैं जिले में फोटो: 3 व 4 मेंकैप्सन: मां कात्यायनी मंदिर का मुख्य द्वार व मां कात्यायनी गोगरी. संसार में मां दुर्गा के छठे स्वरूप की अराधना रविवार को होगी. लेकिन कम ही लोगों को पता है कि कात्यायनी स्थान कहां है? […]

मां दुर्गा की छठे स्वरूप हैं मां कात्यायनी विश्व प्रसिद्ध शक्तिपीठ कात्यायनी मंदिर हैं जिले में फोटो: 3 व 4 मेंकैप्सन: मां कात्यायनी मंदिर का मुख्य द्वार व मां कात्यायनी गोगरी. संसार में मां दुर्गा के छठे स्वरूप की अराधना रविवार को होगी. लेकिन कम ही लोगों को पता है कि कात्यायनी स्थान कहां है? यह सि़द्धपीठ खगडि़या जिले के चौथम प्रखंड में कोशी की धारा के बिल्कुल पास धमारा घाट पर अवस्थित है. प्रतिवर्ष यहां लाखों की संख्या में भक्त गण दर्शन व अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं. परंतु आज भी यह सिद्धपीठ अपने दुर्गम मार्ग के कारण विकसित नहीं हो पाया है. सरकार की उपेक्षा के कारण आज तक इस सिद्ध पीठ का विकास नहंी हो पाया. और न ही किसी जनप्रतिनिधि ने भी विकसित करने का प्रयास किया. यहां प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को भक्त जनों का सैलाब उमड़ता है. मंदिर के बारे में लोगों की मान्यतायें है कि गाय का पहला दूध मां कात्यायनी को अर्पण कर ही घर के लोग दूध ग्रहण करते हैं. यह कार्य सोमवार व शुक्रवार को ही होता है. इसलिए सोमवार और शुक्रवार को मंदिर परिसर दूध से सराबोर रहता है. श्रद्धालु जान जोखिम में डाल कर किसी तरह मंदिर परिसर में पहुंच कर माता का दर्शन करते हैं. धमारा स्टेशन से भक्त जन एक मात्र रास्ता रेल की पटरी से गुजर कर ही मंदिर पहुंचते हैं. वर्ष 2014 में राज्यरानी ट्रेन की चपेट में आने से 37 श्रद्धालुओं की एक साथ जान गयी थी. क्या है मां कात्यायनी मंदिर की कहानीचंद्रहासोज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कत्यायनी है. इनका कात्यायनी नाम पड़ने की एक कथा है. कथ नाम के एक महर्षि थे. उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए. इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे. उन्होंने भगवती को पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षो तक बड़ी कठिन तपस्या की थी. उनकी इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म ले. मां भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली थी. कुल काल पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया तो ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने अपने अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया. महर्षि कात्यायन ने सर्व प्रथम इनकी पूजा की थी. इसी कारण से यह कात्यायनी कहलायी. जब महिषासुर के वध के बाद देवताओं के द्वारा मां दुर्गा को दिये गये तेज अंश को क्षत विक्षत कर दिया गया. इसी में देवी का हाथ धमारा के पास गिरा था. ऐसी मान्यतायें है कि आज से लगभग 300 वर्ष पहले यह स्थान एक घने जंगल के रूप में था. श्रीपद महाराज को मां कत्यायनी ने सपना दिया कि वहां मेरा हाथ गिरा है वहां जाकर मंदिर का निर्माण कराओ. श्री पद ने मंदिर का निर्माण करा दिया. यही मंदिर मां कात्ययानी के रूप स्थापित हो गयी. 1951 में मंदिर का जीर्णोद्धार भी हुआ था. लेकिन आज भी यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर आवागमन के अभाव में शक्तिपीठ होते हुए भी उपेक्षित है.

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