बलिया बेलौन माहे रमजान का आखिरी अशरा जहन्नुम के आग से निजात का है. 20वीं रोजा से ईद उल फितर का चांद निकलने तक आखिरी अशरा है. 26 वीं रमजानुल मुबारक के शाम से शब ए कदर की रात होगी. इस रात की इबादत हजार रातों से अफजल है. उक्त बातें बताते हुए मरकजी रौयते हेलाल इस्लाही कमेटी सालमारी के मौलाना मेराज आलम ने बताया की आखिरी अशरा में जुमेरात के शाम से शब ए कदर यानी लेलतुल कदर की एक रात है. यह रात हजार रातों से अफजल है. माहे रमजान के 21, 23, 25, 27, 29 वीं रोजा में से एक रात लेलतुल कदर की रात है. इसमें सब से अफजल 26वीं रात को माना गया है. इस रात लोग जाग कर रात इबादत में गुजार देते हैं. शब ए कदर के मौके पर ज्यादा से ज्यादा इबादत करने की जरूरत है. आखिरी अशरा के दौरान 20वीं रोजा से मस्जिदों में एतकाफ किया जाता है. हदीश शरीफ में है कि मस्जिदों में कोई भी एतकाफ पर नहीं बैठने से पूरे गांव वालों पर जवाबदेही हो जाती है. एक भी आदमी एतकाफ पर बैठ जाने से गांव वाले इस जवाबदेही से बच जाते हैं. महिलाएं अपने घरों पर एतकाफ में बैठ सकती है. एतकाफ में बैठने से गुनाहों की माफी होती है.
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