कई बार जेल में सहे अंग्रेजों की यातनाएं सूरज गुप्ता, कटिहार आगामी 15 अगस्त को देश के आजाद हुए 78 साल पूरा हो जायेगा. स्वाधीनता संग्राम में यह अगस्त का महीना कटिहार के लिए काफी महत्वपूर्ण है. प्रभात खबर जश्न-ए-आजादी के मौके पर स्वतंत्रता संग्राम में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देने वाले कटिहार के स्वतंत्रता सेनानी पर श्रृंखला प्रकाशित कर रही है. इसी कड़ी में जिले के स्वतंत्रता सेनानी नथुनी प्रसाद सिन्हा के योगदान पर केंद्रित रिपोर्ट यहां प्रस्तुत की जा रही है. आठ सितंबर 1908 को कटिहार जिले के समेली प्रखंड के डूमर में जन्मे नथुनी प्रसाद सिन्हा जंग-ए-आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. जानकारों की माने तो 1925-26 में महात्मा गांधी कटिहार में बीमार पड़ गये थे. उनकी सेवा करने का सौभाग्य नथुनी जी को प्राप्त हुआ था. इस बीच नथुनी पढ़ाई छोड़कर 1930 में लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने चले गये थे. नमक आंदोलन में भाग लिया. 1930 में ही बिहपुर में अंग्रेजी सिपाहियों की लाठी से डॉ राजेन्द्र प्रसाद को बचाने के लिए नथुनी जी काफी चोटें आयी. इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. वर्ष 1942 के आंदोलन के बाद नेपाल में वह फरारी जीवन बिताकर गुप्त रूप से स्वतंत्रता संग्राम का संचालन करते रहे. छदम वेश में कलकत्ता अधिवेशन गये थे. जहां इन्हें अंग्रेज सिपाही काफी मारा और इन्हें जेल भी जाना पड़ा. उन्होंने देश विभाजन के समय साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. बर्मा से आये भूखे, नंगे व बीमार शरणार्थी को स्थापित एवं उनकी सेवा के लिए इन्हें सदा याद रखा जायेगा. परिजनों में उनके पुत्र बिपिन बिहारी सिन्हा व शेखर सिन्हा ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में बताया कि 21 दिसम्बर 2001 को 94 वर्ष की उम्र में नथुनी जी का निधन हो गया. तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी तथा सरकारी व अन्य गैर सरकारी संगठनों की ओर से उन्हें कई सम्मान मिला. पढ़ाई छोड़ कूद गये जंग-ए-आजादी में स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में डूमर के बरहन्डी घाट के पास अंग्रेजों का नीलहाकोठी अंग्रेजी प्रशासन की दृष्टिकोण से काफी क्रूर और भयावह माना जाता था. वहां अंग्रेजों का तांता लगा रहता था. डूमर एवं आसपास के लोग अंग्रेजों के क्रूरता व शोषण का शिकार होते रहते थे. तब नथुनी डूमर एवं आसपास के गांवों में स्वतंत्रता संग्राम का संचालन करना एवं लोगों को जागरूक व संगठित करना सीधे फिरंगियों का चुनौती देना था. फिर भी यह कहा जाता है कि सच्चे देशभक्त, कर्मयोगी आंधी तूफान और मौत से भी नहीं डरते. श्री सिन्हा उन्ही में से एक थे. ये स्वतंत्रता आंदोलन के संचालन कार्य को अविराम गति से चलाते रहे. इनका कार्य क्षेत्र डूमर जैसे गांवों से बढ़ता हुआ पूर्णिया, अररिया, फारबिसगंज, किशनगंज, बीहपुर, टीकापटटी, कटिहार आदि क्षेत्रों में फैलता गया. बताया जाता है कि नथुनी जी की प्रारम्भिक शिक्षा डूमर गांव में हुई. आगे की पढ़ाई के लिए इनके पिताजी ने इन्हें कटिहार भेज दिया. इन्हीं दिनों 1925-26 में महात्मा गांधी का आगमन कटिहार में हुआ. डॉ किशोरी लाल कुंडू की देखरेख में कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया. इसमें कला चन्द्र, बृजनन्दन दास, सेविन साहू आदि ने भाग लिया था. गांधी जी जी यहां बीमार पड़ गये. नथुनी को उनकी सेवा करने का मौका मिला. इनके पिताजी को जब इस बात का पता चला कि नथुनी, डॉ कुंडू एवं अन्य साथियों के साथ कांग्रेस कमेटी में आना जाना करने लगे तो उन्हें कटिहार से हटाकर भागलपुर भेज दिया. बिहपुर सम्मेलन में खाई अंग्रेजों की लाठियां बाद में वह भागलपुर छोड़कर पूरा समय अपने तत्कालीन पूर्णिया जिला में बैद्यनाथ चौधरी, बासुदेव प्रसाद सिंह, भोला पासवान शास्त्री, लक्ष्मीनारायण सिंह सुधांशु, जगलाल चौधरी, गेना मंडल, पार्वती देवी आदि के साथ काफी सक्रिय हो गये. वर्ष 1930 में राजेन्द्र बाबू बिहपूर आये थे. बिहपूर में सम्मेलन होने वाला था. नथुनी बाबू अपने गांव तथा अगल बगल के गांव से 25-30 नौजवानों को संगठित कर बिहपूर ले गये. इस जत्थे का नेतृत्व इन्होने ही किया था. बिहपूर में सम्मेलन चल रहा था. डॉ राजेन्द्र प्रसाद सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे. उसी समय अंग्रेजी सिपाहियों का एक जत्था आया और सम्मेलन में शामिल कार्यकर्ताओं पर लाठियों से प्रहार कर दिया. लाठियों की मार से सभा भंग हो गयी. जिसमें राजेन्द्र बाबू को बचाने में नथुनी बाबू को भी 20-25 लाठी लगी और ये बुरी तरह घायल हो गये. सभा भंग होने के बाद इन्हें एक सज्जन अपने घर ले गये. रातभर मौत और जिन्दगी से लड़ते रहे. दो दिनों तक उनके घर पर ही इलाज होता रहा. कुछ ठीक होने पर किसी तरह घर लौटे. आजादी के बाद मिला कई सम्मान देश के आजाद होने तक उन्होंने कई आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभायी. आजादी के बाद भी वह लोगों की सेवा से जुड़े रहे. इस बीच उन्हें कई तरह का सम्मान से नवाजा गया. परिजनों ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के अलावा जिला प्रशासन के साथ-साथ कई सरकारी और गैर सरकारी संगठनों की ओर से भी नथुनी बाबू को सम्मानित किया गया. नगर निगम की ओर से कटिहार शहर के दुर्गापुर में एक पथ का नाम नथुनी प्रसाद सिन्हा पथ रखा गया है.
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