भभुआ. सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन तथा लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान का असर अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में परवान नहीं चढ़ रहा है. कहीं स्वच्छता कर्मियों के मानदेय, तो कहीं स्वच्छता शुल्क की वसूली, तो कहीं कचरा ढोने वाले रिक्शों में खराबी स्वच्छता अभियान के उद्देश्यों को पूरा नहीं होने देने में बड़ा बाधा बन जाता है. गौरतलब है कि वर्ष 2016 में लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान का आरंभ सीएम नीतीश कुमार ने सात निश्चय के तहत किया था. वर्ष 2019 में पीएम मोदी ने गांधी जी की जयंती पर स्वच्छ भारत मिशन की शुरूआत की थी. मिलाजुला कर जिले में लगभग स्वच्छता अभियान में आठ-नौ साल से ऊपर का समय निकल चुका है. बावजूद इसके धरातल पर अभियान की गति आज भी खराब है. पिछले माह जब प्रभात खबर द्वारा अभियान के सरजमीं पर हकीकत को खंगाला गया, तो प्रशासनिक दावे से बहुत ही अलग स्वच्छता अभियान की असलियत परदे से बाहर आयी. रमावतपुर गांव के ग्रामीण भगवान राम, खडिहां गांव के ग्रामीण बिगाऊ यादव, जैतपुर कला गांव के ग्रामीण सौरभ सिंह सहित कई गांवों के ग्रामीणों का कहना था कि शुरूआत में तो कुछ माह सफाई और कचरे का उठाव हुआ था. लेकिन लंबे समय से न तो गांवों में न तो नियमित सफाई होती है, न तो कचरे का उठाव होता है. ग्रामीणों का यह भी कहना था कि सफाई कर्मियों से पूछने पर बोलते हैं कि पैसा नहीं मिलता है तो काम करने से क्या फायदा है. जबकि, गवलछनी, रमावतपुर तथा मुसहर बस्ती में सफाई कर्मी के काम पर रखे गये सुरेश मुसहर, जैतपुर कला गांव के सफाई कर्मी नागेंद्र डोम आदि का कहना था कि दो-तीन साल से काम करने के बाद भी दो महीने और तीन महीने का मानदेय भुगतान हुआ है. पैसा नहीं मिलता तो कैसे काम करें. सफाई कर्मियों ने पैडल रिक्शाओं की मरम्मत नहीं कराने की बात भी कही थी. यही नहीं जनप्रतिनिधियों जैतपुर कला गांव के संरपंच, रमावतपुर गांव के वार्ड सदस्य महेंद्र साह आदि ने बताया था कि सफाई अभियान को सरकार ने चला तो दिया है, लेकिन रोड से लेकर गांव की गलियों में गंदगी ही गंदगी नजर आती है. यही नहीं जिले में बने सामुदायिक शौचालयों में भी कई सामुदायिक शौचालय या तो उपयोग लायक नहीं है या पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. किसी में बैठने की, तो कहीं सीट नहीं है, कहीं दरवाजे नहीं हैं, तो कहीं दीवार ही गिर चुकी है. इधर, स्वच्छता अभियान को लेकर जब उपविकास आयुक्त सह जिला जल स्वच्छता समिति के उपाध्यक्ष से पूछा गया तो उनका कहना था कि इ-रिक्शा और पैडल रिक्शा बनवाये जा रहे हैं और ग्रामीण विकास विभाग के निर्देश पर स्वच्छता कर्मियों का भुगतान जल्द ही शुरू कराया जायेगा. स्वच्छता अभियान को लेकर सरकार द्वारा वर्ष 2016 में चलाये गये घर घर शौचालय निर्माण भी वर्तमान में बेअसर दिख रहा है. क्योंकि किसी तरह बनाये गये ये कामचलाऊ शौचालय या तो कई घरों में आज काम लायक नहीं रह गये हैं. या फिर शौचालय बनाये जाने के बाद भी लोगों के लोटा और बोतल लेकर खुले में शौच करने की आदत छूट नहीं पा रही है. हालांकि इसे लेकर सरकार द्वारा व्यवहार परिवर्तन, गांवों में निगरानी समिति, दंड वसूलने आदि कई तरह की घोषणाएं तो की गयी, लेकिन इनके अनुपालन को गंभीरता से नहीं लिये जाने के कारण इसका लाभ स्वच्छता अभियान को नहीं मिल सका है. नतीजा है आज जिले के ग्रामीण क्षेत्रों मोकरी, अखलासपुर, बसंतपुर , जैतपुर, सारंगपुर आदि गांव में जाने वाली सडकों को देखें तो फिलहाल घर-घर शौचालय अभियान की गंदगी बाहर निकल कर सड़कों पर पसर रही है. यहीं नही जिला मुख्यालय के गवई मुहल्ले से निकले वाले तथा बाबाजी के पोखरा की तरफ जाने वाले रोडों पर गंदगी पसरी नजर आयेगी. क्या कहते हैं जिला समन्वयक स्वच्छता इधर, इस संबंध में जब जिला जल व स्वच्छता समिति के समन्वयक नरेंद्र कुमार से बात की गयी तो उनका कहना था कि आज के डेट में लगभग 90 प्रतिशत गांवों में डोर टू डोर कचरा का उठाव कराया जा रहा है. जिले की आठ पंचायतों में अभी सफाई काम बाधित है. समन्वयक के अनुसार खराब हुए इ रिक्शा तथा पैडल रिक्शा की भी मरम्मत अंतिम चरण में है. अधिकांश पैडल और इ रिक्शा बनवा दिये गये है. सरकार के निर्देश पर स्वच्छता कर्मियों के मानदेय का भुगतान भी पंचायतों को 15 वें वित्त आयोग और टाइड मद से कर दिये जाने का निर्देश जारी कर दिया गया है. इस राशि को पंचायतें अन्य मद में नहीं खर्च करेंगी. जल्द ही स्वच्छता अभियान को पटरी पर लाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. इन्सेट बगैर पारिश्रमिकी भुगतान के सालों से खट रहे स्वच्छता पर्यवेक्षक भभुआ. वैसे तो स्वच्छता के नाम पर सरकार द्वारा करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं. बावजूद इसके स्वच्छता अभियान बदहाली से बाहर नहीं निकल पा रहा है. पिछले माह ही डीएम को आवेदन देने समाहरणालय पहुंचे स्वच्छता पर्यवेक्षक संघ की जिला उपाध्यक्ष गीता देवी, उदय प्रताप सिंह, रमेश रजक, पप्पू कुमार आदि ने बताया कि जिले की 146 पंचायतों में कुछ पंचायतों को छोड़ कर शेष पंचायतों में बहाल स्वच्छता पर्यवेक्षकों के 7500 रुपये सफाई कर्मियों को 3000 हजार रुपये मानदेय दिया जाना था. लेकिन, पिछले एक दो सालों से किसी को छह माह से तो किसी को एक साल से तो किसी को डेढ़ साल से मानदेय का भुगतान नहीं किया जा रहा है. इधर, जिला समन्वयक कहना है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत बहुत लोग स्वच्छता शुल्क पंचायतों को नहीं दे रहे हैं. वर्ष 2025 में जिले के पंचायतों द्वारा मात्र 28 हजार 410 रुपये की वसूली हुई है. पंचायतों का कहना है कि लोग कहते हैं कि सरकार ने यह व्यवस्था बनायी है तो आपको क्यों पैसा दें. उन्होंने बताया कि इस मामले को सदन में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने भी उठाया था. इसके बाद स्वच्छता कर्मियों के मानदेय भुगतान के लिए सरकार द्वारा अलग से राशि देने की घोषणा की गयी है.
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