भभुआ कार्यालय. पुलिस मुख्यालय द्वारा कैमूर पुलिस की प्रभारी एवं नोडल ऑफिसर बनायी गयी स्पेशल ब्रांच की डीआइजी हरप्रीत कौर ने सोमवार को पुलिस के कार्यों की समीक्षा की. इस दौरान उन्होंने समाहरणालय स्थित एसपी ऑफिस में लगभग साढ़े तीन घंटे तक बैठक कर अपराध को नियंत्रित करने आपराधिक मामलों के उद्वेदन व अपराधियों को सजा दिलाने की बिंदु पर जुलाई तक के कांडों की समीक्षा कर कई दिशा-निर्देश एसपी समेत पुलिस के बड़े अधिकारियों को दिये. इस दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि हाल के दिनों में यह देखा जा रहा है कि जेल से जमानत पर बाहर निकले अपराधी दोबारा अपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. ऐसे में उस तरह के अपराधी जो की आर्म्स एक्ट, मर्डर लूट, डकैती जैसे गंभीर अपराधों में जेल गये हैं और जमानत पर छूट कर बाहर आ रहे हैं. उन पर कड़ी निगरानी करने की जरूरत है, ऐसे अपराधी जेल से बाहर निकालने के बाद दोबारा गंभीर किस्म के अपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. पुलिस के पदाधिकारी इस तरह के अपराधियों की पूरी सूची तैयार कर निरंतर ऊपर निगरानी रखें कि वह जेल से छूटने के बाद क्या क्या कर रहे हैं. किस तरह के कार्यों में सम्मिलित है, अगर उनकी भूमिका जेल से छूटने के बाद एक बार फिर संदिग्ध पायी जाती है, तो उनका जमानत रद्द करवाने की दिशा में आवश्यक कार्रवाई करें. इसके अलावा डीआइजी हरप्रीत कौर ने निर्देश दिया कि गंभीर अपराध में जो अपराधी पकड़ कर जेल गये हैं, उन गंभीर आपराधिक मामलों का स्पीडी ट्रायल कराकर अधिक से अधिक अपराधियों को सजा दिलाना सुनिश्चित करें. बैठक के दौरान एसपी हरिमोहन शुक्ला के द्वारा यह बताया गया कि जिले में 20 मामलों को हमेशा स्पीडी ट्रायल में रखा जाता है, जब किसी मामले में सजा हो जाती है, तो उसमें अन्य मामला प्राथमिकता के आधार पर जोड़ दिया जाता है. कम से कम 20 मामले हमेशा स्पीडी ट्रायल में आवश्यक रूप से रहते हैं. डीआईजी ने इस पर आदेश दिया कि उसे तरह के मामले जिसमें पुख्ता सबूत है, उसकी प्राथमिकता के आधार पर तय कर स्पीड ट्रायल कर अधिक से अधिक अपराधियों को सजा देना है. खासकर आर्म्स एक्ट के मामले को अधिक से अधिक स्पीडी ट्रायल में रखें. = पुलिस के रिकॉर्ड में डिस्पोजल और कोर्ट में चार्जसीट या फाइनल फॉर्म नहीं जाने वाले मामले का प्राथमिकता के आधार पर करें निष्पादित समीक्षा के द्वारा उन्होंने यह पाया कि बड़ी संख्या में पुलिस पदाधिकारी द्वारा जिले में कांडों का पॉकेट डिस्पोजल दिखाया गया था. जिले के एसपी के द्वारा तैयार की गयी सूची के मुताबिक करीब 2000 मामले ऐसे थे, जिन्हें पुलिस के रिकॉर्ड में डिस्पोजल दिखा दिया गया था. लेकिन उस केस का फाइनल फॉर्म या चार्ज शीट न्यायालय में नहीं भेजा गया था. वैसे सभी मामलों का न्यायालय से सूची मंगाकर उसका फाइनल फॉर्म या चार्ज शीट जल्द से जल्द भेज कर उसे डिस्पोजल करने का निर्देश डीआईजी के द्वारा दिया गया. जांच के नाम पर गंभीर आपराधिक मामलों को नहीं रख पेंडिंग डीआइजी ने समीक्षा के दौरान यह पाया कि कई ऐसे मामले हैं, जो गंभीर आपराधिक किस्म के हैं. लेकिन उन्हें जांच के नाम पर लंबित रखा गया है. इसे गंभीरता से लेते हुये डीआईजी ने निर्देश दिया कि जो भी गंभीर किस्म की आपराधिक मामले हैं, उसमें जो भी निर्णय लेना है उसे जल्द से जल्द लेकर उन कांडों को निष्पादित करें. जांच के नाम पर लंबे समय तक उसे पेंडिंग नहीं रखें. सुपरविजन या अनुसंधान करने वाले पदाधिकारी गंभीर आपराधिक मामलों में जो भी निर्णय लेना है, वह आवश्यक रूप से जल्द से जल्द लेकर कांड को निष्पादित करें, यह करना गलत है कि किसी भी गंभीर किस्म के आपराधिक मामले को जांच के नाम पर लंबे समय तक उसे पेंडिंग रखा जाये, इससे दोषी अपराधियों का मनोबल बढ़ता है. पुलिस लाइन में सिपाहियों के ट्रेनिंग का भी किया निरीक्षण डीआइजी हरप्रीत कौर के द्वारा पुलिस लाइन में सिपाहियों को दिए जा रहे ट्रेनिंग का भी निरीक्षण किया़ वर्तमान में भभुआ के पुलिस लाइन में बक्सर के 144 पुलिस जवानों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. निरीक्षण के दौरान डीआइजी को यह जानकारी दी गयी थी प्रशिक्षण देने वाले पदाधिकारी की कमी है. डीआइजी ने इसे अपने समीक्षा रिपोर्ट में दर्ज कर लिया और इस समस्या को वरीय अधिकारियों को अवगत करा दूर कराने की बात कही. डीआइजी लगभग साढ़े तीन घंटे तक एसपी के ऑफिस में और एक घंटे तक पुलिस लाइन में निरीक्षण के बाद वह वापस पटना पुलिस मुख्यालय लौट गयी, उनके निरीक्षण के दौरान एसपी हरिमोहन शुक्ला दोनों अनुमंडल के एसडीपीओ सहित अन्य पुलिस पदाधिकारी मौजूद रहे.
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