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एक्सप्रेसवे निर्माण रोकने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई

बिरना और करवंदिया मौजा में धरना देने वालों की हो रही पहचान, जिला प्रशासन ने कहा– मुआवजा बढ़ोतरी का कोई प्रावधान नहीं

भभुआ. वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे निर्माण को बाधित करने वालों पर जिला प्रशासन सख्त रुख अपनाने वाला है. प्रशासन ने स्पष्ट कहा है कि परियोजना कार्य में बाधा डालना कानूनन अपराध है और दोषियों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जायेगी. गौरतलब है कि बिरना और करवंदिया मौजा में अधिग्रहित भूमि पर धान की फसल हटाने के क्रम में पिछले दो दिनों से किसानों ने कार्यस्थल पर जमावड़ा कर काम ठप करा दिया था. कई किसान खेतों में लगायी गई मशीनों के सामने लेट गये और निर्माण रोक दिया. इस दौरान पुलिस बल भी मौके पर मौजूद रही, जबकि किसान बड़ी संख्या में विरोध कर रहे थे. जिला प्रशासन द्वारा गुरुवार को जारी प्रेस नोट में कहा गया कि दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव प्राप्त हुआ है. कुछ मामलों में शांति भंग की आशंका के तहत दंडात्मक कार्रवाई कर बॉन्ड पर मुक्त भी किया गया है. यह तथ्य भी सामने आया है कि विरोध करने वालों में कुछ ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिन्हें पहले ही मुआवजा राशि दी जा चुकी है. मुआवजा बढ़ोतरी की मांग भ्रामक प्रशासन ने साफ किया कि आबिट्रेटर सह आयुक्त न्यायालय के आदेश के तहत पात्र भू-धारियों को दो गुना मुआवजा राशि दी जा रही है. इसके बावजूद कुछ तत्व किसानों को गुमराह कर रहे हैं कि राशि और बढ़ेगी, जबकि ऐसा कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं है. प्रेस नोट के मुताबिक, यदि कोई रैयत मुआवजे से असंतुष्ट है तो वह सक्षम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है. प्रशासनिक स्तर पर मुआवजा बढ़ोतरी का कोई प्रावधान नहीं है. साथ ही “एक सड़क–एक मुआवजा ” जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. मुआवजा केवल सर्किल रेट और निर्धारित प्रावधानों के अनुसार देय है. शीघ्र पूरा करें आवेदन की प्रक्रिया जिला प्रशासन ने सभी भू-धारी रैयतों से अपील की है कि वे आवश्यक कागजातों के साथ अंचल कार्यालय में आवेदन कर शीघ्र अपनी मुआवजा राशि प्राप्त करें. साथ ही लोगों से भ्रामक सूचना व उकसावे से दूर रहने को कहा है. प्रशासन ने दोहराया है कि यह परियोजना राष्ट्रहित से जुड़ी है और इसके समय पर क्रियान्वयन की प्राथमिकता तय की गयी है. प्रशासन ने यह भी बताया कि पिछले चार महीनों से गांव-गांव माइकिंग और जन-सूचना माध्यमों से लगातार रैयतों को अधिग्रहित भूमि पर कृषि गतिविधियां बंद करने को कहा जा चुका है. सरकारी कर्मियों द्वारा किसानों को बार-बार इसकी जानकारी भी दी गयी है.

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