भभुआ : सोमवार की रात भभुआ रेंज के सुरक्षित वन प्रक्षेत्र के अंतर्गत देउवां गांव के पास जंगल में आग लग गयी. इसे बुझाने के लिए देर रात तक वनकर्मियों की टीम को मशक्कत करना पड़ा. जंगल में आग लगने का कारण मधु चुआने वालों द्वारा मधुमक्खियों को भगाने के लिए लगायी जाने वाली आग की मशाल बतायी गयी है.
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आग से देर रात तक धधकता रहा जंगल
भभुआ : सोमवार की रात भभुआ रेंज के सुरक्षित वन प्रक्षेत्र के अंतर्गत देउवां गांव के पास जंगल में आग लग गयी. इसे बुझाने के लिए देर रात तक वनकर्मियों की टीम को मशक्कत करना पड़ा. जंगल में आग लगने का कारण मधु चुआने वालों द्वारा मधुमक्खियों को भगाने के लिए लगायी जाने वाली आग […]
बता दें कि गर्मी की शुरूआत होते ही कैमूर के वन क्षेत्र में मकरी खोह और मुंडेश्वरी वन प्रक्षेत्र में आगलगी की घटनाएं शुरू होने के बाद से ही आये दिन जंगल में आग लगने की सूचनाएं वन विभाग को प्राप्त हो रही हैं.
जानकारी के अनुसार, सोमवार की रात भभुआ रेंज के देवउा जंगल में आग लगने की खबर वन विभाग को प्राप्त हुई थी. इसके बाद भभुआ रेंज के अफसर मनोज कुमार द्वारा आग पर काबू पाने के लिए वन कर्मियों की टीम को रवाना किया गया. इधर इस संबंध में पूछे जाने पर रेंज अफसर ने बताया कि देउवां के जंगल में लगी आग पर देर रात के बाद काबू पा लिया गया.
मधु उतारने वालों को किया जा रहा चिह्नित, होगी कड़ी कार्रवाई : जंगल में आग लगने के कारणों में मधु उतारने वालों की पहचान आने के बाद वन विभाग द्वारा मधु उतारने वालों को चिह्नित कराने का काम शुरू करा दिया गया है.
अगर मधु लगाने वाले प्रमाण के साथ चिह्नित कर लिये जाते हैं अथवा मधु उतारने के क्रम में पकड़े जाते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी. उपरोक्त जानकारी देते हुए भभुआ रेंज अफसर मनोज कुमार ने बताया कि जंगल में आग लगानेवालों को चिह्नित करने के लिए फायर वाचर टीम के कर्मियों को निर्देश दे दिया गया है.
उन्होंने बताया कि जलती बीड़ी सिगरेट अथवा पिकनिक स्पॉटों पर खाना बनाने के लिए प्रयुक्त की जा रही आग के कारण भी जंगल में आग लग जाती है. यही नहीं जगंल क्षेत्र से सटे किसानों द्वारा अपने खेतों में जो डंठल जलाये जा रहे रहे हैं. उसके चिंगारियों से भी जंगल के तराई क्षेत्रों में आग लगी की घटनाएं हो सकती हैं.
प्रतिवर्ष जंगल में आग लगने के कारण नष्ट हो जाती है करोड़ों की संपदा , भभुआ. प्रति वर्ष कैमूर के वन प्रक्षेत्र में आगलगी से करोड़ों रुपये की वन संपदा जल कर राख हो जाती है. लेकिन, इस आगलगी पर काबू पाने का विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयास के बावजूद घटनाएं नहीं थमती हैं. अधिकतर मामलों में आगलगी के कारण बनने वाले पहचाने ही नहीं जा पाते हैं.
बता दें कि प्रति वर्ष वन प्रक्षेत्र में आग लगने से बड़े पैमाने पर इमारती लकड़ियां जिसमें शिशम, सागौन, सहित कई तरह के वृक्ष शामिल हैं या तो जल जाते हैं अथवा आग लगने के कारण कमजोर हो जाते हैं. इन इमारती लकड़ियों का बाजार मूल्य काफी ऊंचा होता है. इसी तरह कैमूर के वन प्रक्षेत्र में विभिन्न दवाओं के निर्माण से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों को बनाने वाले अश्वगंधा, सफेद मुसली, सतावर सहित तमाम जड़ी-बूटी भी पाई जाती हैं.
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