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50 लाख की लागत से बने पोस्टमार्टम हाउस का हाल, हर कदम गंदगी, दुर्गंध और कुव्यवस्था से होता है सामना

भभुआ सदर : सदर अस्पताल परिसर स्थित पोस्टमार्टम हाउस इन दिनों गंदगी व कुव्यवस्था का पर्याय बन गया है. स्थिति यह है कि अपने प्रियजन को खोने का दर्द झेल रहे लोगों की मुश्किलें पोस्टमार्टम हाउस आकर और बढ़ जाती है. पोस्टमार्टम हाउस की ओर जाते ही गंदगी व कुव्यवस्था से सामना होता है और […]

भभुआ सदर : सदर अस्पताल परिसर स्थित पोस्टमार्टम हाउस इन दिनों गंदगी व कुव्यवस्था का पर्याय बन गया है. स्थिति यह है कि अपने प्रियजन को खोने का दर्द झेल रहे लोगों की मुश्किलें पोस्टमार्टम हाउस आकर और बढ़ जाती है. पोस्टमार्टम हाउस की ओर जाते ही गंदगी व कुव्यवस्था से सामना होता है और वहां बैठना तो दूर खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है.

अंदर का हाल देख कर लगता है जैसे कभी साफ-सफाई होती ही नहीं. यहां उठती दुर्गंध से लोग घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. वैसा ही हाल बाहरी परिसर का भी है. यहां अस्पताल से निकले दुर्गंधयुक्त अपशिष्ट पदार्थों को फेंक दिये जाने से शव के साथ आये लोगों का दुर्गंध से सांसें थमने लगती हैं.
तीन साल पहले बने कमरे अब भी खाली : साल 2016 में जब 50 लाख की लागत से अस्पताल परिसर में नया पोस्टमार्टम हाउस बन कर तैयार हुआ, तो लगा कि इसकी हालत में कुछ सुधार होंगे और शवों का पोस्टमार्टम करने में डॉक्टरों व कर्मियों को भी सहूलियत होगी. पोस्टमार्टम हाउस में एक साथ 40 शवों को रखे जाने की सुविधा है. लेकिन, यह उम्मीद भी टूट गयी. पोस्टमार्टम हाउस को लेकर जिम्मेदार अधिकारी कितने लापरवाह हैं. इसे देख कर ही लग जाता है.
पोस्टमार्टम हाउस के अधिकतर कमरे अब भी नहीं खुले हैं और न ही इसमें डॉक्टर के बैठने, एसी और डीप फ्रीजर की व्यवस्था ही हो सकी है. वैसे पोस्टमार्टम हाउस की अव्यवस्था परिसर के बाहर से ही दिखाई देने लगती है. मुख्य द्वार पर गंदगी का अंबार. परिसर में घुसने पर ऐसा लगता है जैसे यहां की सफाई के बारे में कोई सोचता ही नहीं.
घास-फूस व झाड़ी के साथ खुन सने और दुर्गंध देते कपड़े व गंदगी पूरे परिसर में बिखरी पड़ी है. परिसर में लोगों के बैठने के लिए एक शेड तो क्या चबूतरे तक का भी निर्माण नहीं कराया जा सका है. हालांकि, पिछले 16 फरवरी को जब डीएम डॉ नवल किशोर चौधरी ने सदर अस्पताल का निरीक्षण किया था, तो उन्होंने सीएस और अस्पताल प्रबंधक को स्पष्ट निर्देश दिया था कि पोस्टमार्टम हाउस की ओर घेराबंदी कर वे फूल पौधे लगा कर पार्क की तरह तैयार करें.
ताकि, शव लेकर आये लोग या मरीज व उनके परिजन उसमें बैठ राहत ले सकें. लेकिन, अस्पताल प्रबंधन ने खाली पड़े स्थान की घेराबंदी तो करा दी. लेकिन, फूल पौधे सहित बैठने के स्थान का निर्माण तीन माह बाद भी नहीं करा सकी है.
मेडिकल वेस्ट फेंक कर और बढ़ा रहे बीमारी
लोगों का जब स्वास्थ्य खराब होता तो इलाज कराने के लिए अस्पताल जाते हैं. लेकिन, जब अस्पताल परिसर में संक्रमण का खतरा बना रहे तो आखिर मरीज कहां जाये. हाल बात कर रहे हैं कि जिला सदर अस्पताल का. यहां अस्पताल परिसर में बने पोस्टमार्टम रूम के बगल में ऑपरेशन में उपयोग किये जानेवाले खून से सने कपड़े व मेडिकल वेस्ट कचरे का अंबार लगा हुआ है. उक्त कूड़े को पशु पक्षी बिखेर रहे हैं, जिसके चलते चारों ओर दुर्गंध से जीना मुहाल है. लेकिन, अस्पताल प्रबंधन बेखबर है.
अंदर तो घुसने लायक भी नहीं
पोस्टमार्टम हाउस के अंदर की बात करें तो यहां हालत घुसने लायक भी नहीं है. भवन में घुसते ही गंदगी व भारी दुर्गंध से सामना होता है. यहां कॉरिडोर के बरामदे में ही शवों की चीर-फाड़ होती है. लेकिन, सफाई नहीं होती है. वैसे तो पोस्टमार्टम इसके लिए बने प्लेटफाॅर्म पर होनी चाहिए.
लेकिन, लोहे के स्टैंड स्ट्रेचर पर ही सारा काम होता है. सबसे अधिक मुसीबत लावारिस शवों को लेकर होती है. नियमत: ऐसे शवों का पोस्टमार्टम 72 घंटे बाद होता है. ऐसे शव इतने समय पर जमीन पर रखे जाने से खराब होते रहते हैं और उनसे दुर्गंध फैलती रहती है. इसी हालत में उनका पोस्टमार्टम किया जाता है.
वैसे भी कहने को तो पोस्टमार्टम डॉक्टरों द्वारा किया जाता है. पर चीर-फाड़ से लेकर सभी कार्रवाई यहां चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के जिम्मे होती है. ज्यादातर मामलों में चिकित्सक दूर से ही शव देख कर रिपोर्ट करते हैं. शरीर के विभिन्न अंगों के वजन के लिए यहां वजन लेने वाली मशीन होनी चाहिए. पर यह काम अंदाज पर ही होता है.
पोस्टमार्टम में प्रयुक्त होने वाले उपकरण जंग खा चुके हैं और पुराने उपकरणों से ही फिलहाल काम चलाया जा रहा है. नियमानुसार, शवों को चीर-फाड़ करने के लिए उपयुक्त उपकरणों के साथ ही संबंधित चिकित्सक व कर्मचारी को ग्लब्स भी मिलने चाहिए पर ऐसा नहीं होता.

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