करपी. अरवल प्रखंड क्षेत्र के बांसाटाड़ गांव निवासी शिवदत्त सिंह मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. उम्र बढ़ने के साथ उनको देशभक्ति का जज्बा और भी बढ़ता गया. जब 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई तो उनकी उम्र मात्र 16 वर्ष की थी. इस आयु में ही उन्होंने अरवल में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कामता सिंह शिक्षक के नेतृत्व में अरवल थाना पर चढ़ाई कर तिरंगा फहराया था एवं अरवल पोस्ट ऑफिस को आग के हवाले कर दिया था. इस कांड में अंग्रेजी फौज द्वारा चलाई गई गोली जिसमें उनके एक साथी शहीद भी हो गये थे. इस कांड को लेकर उस समय अरवल पोस्ट ऑफिस के सब पोस्ट मास्टर फकीरा राम के कंप्लेन पर इनके खिलाफ तथा उनके साथियों कामता सिंह गुदानी गोप केसरी शरण, रामसुभग सिंह समेत 20 लोगों पर एफआइआर दर्ज करायी गयी और इन लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. यह 2 वर्ष तक जेल में रहे. उस समय अरवल हाइस्कूल में नौवीं कक्षा में पढ़ते थे. 15 अगस्त 1972 को स्वतंत्रता दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा राष्ट्र ओर से उन्हें ताम्रपत्र भेंट किया गया था. बता दें कि इनका जन्म बांसाटाड़ गांव में एक मध्यम वर्गीय एक किसान परिवार में हुआ था. स्वाधीनता आंदोलन के दौरान इन्होंने जिले भर में आयोजित होने वाली सभी संघर्षों में प्रायःभाग लिया करते थे. पढ़ाई के दौरान ही इन्होंने अपने शिक्षक कामता प्रसाद सिंह की सानिध्य में राष्ट्रभक्ति भावना से ओत-प्रोत होकर पढ़ाई छोड़ कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. इस दौरान इन्हें हैजा जैसी गंभीर बीमारी से भी ग्रसित हो गए थे जिनका इलाज जहानाबाद करवाया गया था. इनके घर पर हमेशा स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोगों की बैठकें हुआ करती थीं और वहीं से ये लोग रणनीति बनकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन चलाया करते थे.
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