पटना : जब अपनों ने साथ छोड़ा, उस वक्त जीविका ने हाथ थामा. यह कहानी है गया जिले के मोहनपुर प्रखंड के करजरा गांव की सविता देवी की. पति और पत्नी बचपन से ही दिव्यांग हैं. ऐसे में शादी के कुछ साल तक ससुराल और मायके लोगों ने संभाला, लेकिन बाद में उन्होंने भी साथ छोड़ दिया. उस वक्त से सविता जीविका समूह से जुड़ी है और सतत् जीविकोपार्जन योजना (एसजेवाइ) का लाभ लिया. एक समय ऐसा था, जब वह दाने-दाने को मोहताज थीं. लेकिन, आजउनकी खुद की किराने की दुकान है. बेहतर आमदनी के कारण आज उनके दो बच्चे स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं.
सविता देवी की शादी 2008 में हुई थी. पति व पत्नी दोनों दिव्यांग थे, तो उस वक्त ससुराल वाले उनकी जिम्मेदारी उठाने लगे. जब सविता के तीन बच्चे हो गये, तो ससुराल के लोगों ने उनकी मदद करने से इन्कार कर दिया. कुछ दिन सविता अपने परिवार के साथ मायके आ गयी. यहां भी कुछ महीनों के बाद परिवावालों ने आर्थिक परेशानी की वजह से उनकी मदद करने से मना कर दिया. इसके बाद सविता ससुराल लौट आयी. उस वक्त घर चलाने के लिए पति अपने ट्राइ साइकिल से गांव-गांव जाकर बिस्कुट के पैकेट बेचा करते, लेकिन आमदनी इतनी नहीं होती कि परिवार का पालन-पोषण हो सके.
आर्थिक तौर पर कमजोर हो चुकी सविता को जीविका समूह के बारे में पता चला और वह अंशु जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं. 2019 में सतत जीविकोपार्जन योजना के तहत कम्यूनिटी रिसोर्स पर्सन का एक समूह उनके घर आया. इस योजना में सविता देवी का चयन हुआ, जिसके बाद उन्हें किराना दुकान खोलने के लिए 20 हजार रुपये दिये गये. इन पैसों की मदद से उन्होंने किराना दुकान खोली और आज उनकी यह दुकान काफी बेहतर कर रही हैं.
सविता बताती हैं कि जीविका की मदद से मेरी जिंदगी पटरी पर आ गयी है. पहले बच्चों का स्कूल में दाखिला सपने जैसा था. आज दो बच्चे स्कूल से पढ़ रहे हैं. प्रखंड परियोजना प्रबंधक दुर्गेश कुमार बताते हैं कि सविता के परिवार के हालात बहुत खराब थे. एसजेवाइ के अंतर्गत दंपती को बिजनेस की समझ के लिए तीन दिनों की कैपासिटी बिल्डिंग और एंटरप्राइज डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दी गयी. आज ये दुकान से महीने में पांच-सात हजार रुपये कमा रहे हैं. सविता के पति गांव-गांव जाकर बिस्कुट आदि की डिलिवरी भी करते हैं.
posted by ashish jha