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कभी लटका रहता था ताला, आज स्वर-व्यंजन की गूंज से आलोकित हो रहा विद्यालय

जहां कभी जर्जर भवन में सदैव ताला ही लटका रहता था, आज वहां स्वर व व्यंजन की मधुर गूंज से पूरा विद्यालय आलोकित हो रहा है.

गुलशन कश्यप, जमुई

जहां कभी जर्जर भवन में सदैव ताला ही लटका रहता था, आज वहां स्वर व व्यंजन की मधुर गूंज से पूरा विद्यालय आलोकित हो रहा है. हम बात कर रहे हैं सदर प्रखंड के लगमा मोहल्ला स्थित प्राथमिक विद्यालय की. जी हां, कभी शिक्षकों की कमी की वजह से बच्चों ने भी विद्यालय आना छोड़ दिया था. व्यवस्था बदहाल थी और जर्जर भवन का दरवाजा अक्सर बंद ही रहता था. कभी विद्यालय खुल भी गया, तो मुश्किल से 10 से 15 बच्चे ही कक्षा में दिखाई देते थे. लेकिन शिक्षकों के अथक प्रयास से आज इसकी तस्वीर न सिर्फ पूरी तरह से बदल गयी है, बल्कि यह विद्यालय पूरे विभाग के सामने एक नजीर बन कर उभरा है. नोनिहाल के स्वर-व्यंजन की मधुर गूंज ने महादलित टोले में एक नयी उम्मीद जग गयी है. यहां के शैक्षणिक माहौल से प्रभावित होकर अभिभावक अपने बच्चों का नाम निजी स्कूलों से कटवा कर सरकारी विद्यालय में लिखवा रहे हैं. बच्चों की उपस्थिति 90 प्रतिशत से अधिक तक पहुंच चुकी है और यह विद्यालय परिवर्तन की एक मिसाल बन गया है.

शिक्षकों व उनकी टीम की मेहनत से आया बदलाव

यह बदलाव विद्यालय प्रभारी टिंकू लाल व उनकी टीम की लगातार मेहनत से आया है. टिंकू लाल बताते हैं कि जब उनका पदस्थापन यहां हुआ था, तब स्कूल की स्थिति बेहद खराब थी. न सुविधाएं थीं, न अनुशासन और न ही बच्चों में पढ़ाई करने की इच्छा. ऐसे माहौल में बदलाव आसान नहीं था, लेकिन शिक्षकों ने यह ठान लिया कि गांव के बच्चों का भविष्य अंधकार में नहीं रहने देंगे. उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया. अभिभावकों को बताया कि सरकारी विद्यालय किसी भी निजी स्कूल से कम नहीं हो सकता यदि शिक्षक और माता-पिता मिलकर बच्चों के लिए एक बेहतर माहौल बनाएं. बच्चों में आत्मविश्वास जगाने के लिए शिक्षकों ने अपने पैसे से टाई, बेल्ट और यूनिफॉर्म खरीद कर दी. धीरे-धीरे बच्चे शालीन वेशभूषा में रोज स्कूल आने लगे और माहौल बदलने लगा.

हर सुबह चेतना सत्र का होता है आयोजन

विद्यालय प्रधान ने बताया कि स्कूल में हर सुबह चेतना सत्र शुरू किया गया जिसमें बच्चे गीत-संगीत, योग और विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से दिन की शुरुआत करते हैं. इससे बच्चों में ऊर्जा बढ़ी और वे स्कूल आने के लिए उत्साहित रहने लगे. शिक्षकों की मेहनत और अनुशासन से प्रभावित होकर अभिभावकों ने भी सरकारी विद्यालय पर भरोसा जताना शुरू कर दिया. यही कारण है कि अब इस विद्यालय में 100 से अधिक बच्चे नियमित रूप से पढ़ने आते हैं और उपस्थिति 90 प्रतिशत के करीब बनी रहती है. स्कूल में साफ-सफाई, समय पर पढ़ाई, बच्चों की जरूरतों का ध्यान और नियमित गतिविधियों ने इसे इलाके का पसंदीदा विद्यालय बना दिया है.

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