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गिद्धौर दुर्गा मंदिर में पांच सौ सालों से हो रही है धन-वैभव की देवी मां महालक्ष्मी की पूजा

चंदेल राजवंश के जमाने से चली आ रही परंपरा

गिद्धौर. गिद्धौर के अति प्राचीन उलाय नदी तट स्थित ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर के प्रांगण में धन-वैभव, ऐश्वर्य की देवी मां महालक्ष्मी की पूजा कराने की परंपरा वर्षों पुरानी है. गिद्धौर में चंदेल राजवंश के समय में भी दुर्गा पूजा के उपरांत आश्विन शुक्ल पूर्णिमा की संध्या बेला में मां महालक्ष्मी की पूजा दुर्गा मंदिर में प्रतिमा स्थापित कर यहां पूजा की जाती थी. प्राण प्रतिष्ठा के साथ देवघर के विद्वान पंडितों के द्वारा पूरे विधि विधान से पूजा होती थी, जो आज भी अनवरत जारी है. बतातें चले कि बंगाल में जिस तरह मां लख्खी पूजा होती रही है, ठीक उसी प्रकार गिद्धौर के ऐतिहासिक मां दुर्गा मंदिर में यह कराये जाने की यहां विशिष्ट परंपरा रही है. ऐसा माना जाता है कि इस ऐतिहासिक मंदिर में स्थापित लक्ष्मी मां की जो भी श्रद्धालु भक्त सच्चे हृदय से पूजा करते हैं, उनकी झोली मां धन-धान्य से भर देती हैं. बुधवार की देर संध्या में पट खुलते ही मां महालक्ष्मी के पूजन दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ेगी. झारखंड राके विद्वान पंडित महेश चरण जी महाराज एवं पन्ना लाल मिश्र की टीम मंदिर परिसर में महालक्ष्मी की पूजा शास्त्र संवत एवं विधि पूर्वक करायी जाएगी. वहीं अगले दिन गुरुवार की देर संध्या त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के निकट स्थित कंपनी बाग तालाब में मां की प्रतिमा को विसर्जित किया जाएगा. इधर लक्ष्मी पूजा को संपन्न कराने की विधिवत जिम्मेवारी ग्रामीण स्तर पर गठित शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा समिति की है. वहीं पूजा को लेकर सारी विधि व्यवस्था समिति के सदस्यों की ओर से की जा रही है. इधर मां महालक्ष्मी के प्रतिमा को अंतिम रूप देने में बनारस के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार व गिद्धौर निवासी राजकुमार रावत व उनकी टीम लगी हुई है.

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