Jhajha Assembly Constituency 2025 News: झाझा. बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम को ध्यान में रखते हुए पुलिस अधीक्षक विश्वजीत दयाल के निर्देश पर झाझा में भारी मात्रा में अर्धसैनिक बलों के अलावा जिला पुलिस बल की तैनाती की गई है. शहर के विभिन्न चौक-चौराहों के अलावा सुदूरवर्ती ग्रामीण ईलाका के सभी चौक-चौराहाओं पर भी अर्धसैनिक बलों के साथ स्थानीय पुलिस को लगाई गयी है. थानाध्यक्ष संजय कुमार सिंह ने बताया कि परिणाम के बाद उपजने वाले संभावित समस्याओं को ध्यान में रखते हुए उच्च अधिकारियों के निर्देश पर सभी जगह पर पुलिस की व्यवस्था की गई है. उन्होंने कहा कि शहर के दुर्गा मंदिर चौक, मुख्य बाजार, कर्पूरी चौक, गांधी चौक, रेलवे स्टेशन चौक के अलावा अन्य चौक पर पारा मिलिट्री फोर्स के साथ स्थानीय पुलिस को लगाई गई है. इसके बाद बड़ी संख्या पुलिस बलों द्वारा विभिन्न क्षेत्र में गस्ती किया जा रहा है. एसडीपीओ राजेश कुमार ने आमलोगों से अपील करते हुए कहा कि मतगणना के बाद सामाजिक समरसता व शांतिपूर्ण माहौल के साथ अपने-अपने घर को लौटे. किसी भी तरह का ना तो जुलूस निकालें, न ही नारेबाजी करें. उन्होंने कहा कि सभी लोगों के भावनाओं को ध्यान में रखते हुए कार्य करें. क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखें. साथ उन्होंने कहा कि अशांति फैलाने वालों पर पैनी नजर रखी जा रही है. पहचान होने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. मौके पर थानाध्यक्ष के अलावा सर्किल इंस्पेक्टर अरुण कुमार, पूजा कुमारी समेत भारी संख्या में अर्धसैनिक बल मौजूद थे.
राजनीतिक उठापटक का गवाह रहा है झाझा विधानसभा क्षेत्र
बात अगर जमुई जिले की झाझा विधानसभा सीट की करें तो यह सीट बिहार की राजनीति में लंबे समय से बदलाव और विरोधाभास की मिसाल रही है. यहां कभी कांग्रेस का दबदबा रहा, तो कभी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और जनता दल जैसे दलों ने सत्ता में भागीदारी निभाई. वर्ष 2000 के बाद से यह सीट मुख्य रूप से जदयू और भाजपा के गठबंधन के पक्ष में झुकी रही, लेकिन 2020 के चुनाव में यहां कांटे की टक्कर देखने को मिली. 1952 में कांग्रेस के चंद्रशेखर सिंह से शुरू हुआ यह राजनीतिक सफर 1957 में भी कांग्रेस के दो विधायक भागवत मुर्मू और फिर से चंद्रशेखर सिंह के साथ जारी रहा. 1962 में समाजवादी पार्टी के श्रीकृष्ण सिंह ने कांग्रेस का एकाधिकार तोड़ा. 1967 और 1972 में शिवनंदन झा ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जीत हासिल कर समाजवादी विचारधारा को मजबूत किया. 1977 में जनता पार्टी का उभार हुआ और शिवनंदन झा ने फिर जीत दर्ज की. 1980 और 1985 में कांग्रेस के शिवनंदन यादव ने दो बार जीत दर्ज की. 1990 में जनता दल और 1995 में एक बार फिर कांग्रेस के रवींद्र यादव ने सत्ता संभाली. 2000 के दशक में जदयू के दामोदर रावत प्रमुख चेहरा बनकर उभरे. उन्होंने 2000, 2005 (दोनों चुनाव) और 2010 में जीत दर्ज कर लगातार चार बार विधानसभा पहुंचे. हालांकि 2015 में भाजपा के रवींद्र यादव ने उन्हें शिकस्त दी. लेकिन 2020 में दामोदर रावत ने पुनः वापसी की और बेहद कड़े मुकाबले में राजद के उम्मीदवार को हराकर सीट बचा ली.
झाझा विधानसभा का इतिहास
1952 : चंद्रशेखर सिंह (कांग्रेस)1957 : भागवत मुर्मू (कांग्रेस)1957 : चंद्रशेखर सिंह (कांग्रेस)1962 : श्रीकृष्ण सिंह (सोशलिस्ट पार्टी)1967 : शिवनंदन झा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)1969 : चंद्रशेखर सिंह (कांग्रेस)1972 : शिवनंदन झा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी)1977 : शिवनंदन झा (जनता पार्टी)1980 : शिवनंदन यादव (कांग्रेस)1985 : शिवनंदन यादव (कांग्रेस)1986 : रवींद्र यादव (कांग्रेस)1990 : शिवनंदन झा (जनता दल)1995 : रवींद्र यादव (कांग्रेस)2000 : दामोदर रावत (समता पार्टी)2005 : दामोदर रावत (जदयू)2005 : दामोदर रावत (जदयू)2010 : दामोदर रावत (जदयू)2015 : रवींद्र यादव (भाजपा)2020 : दामोदर रावत (जदयू)
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