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लहर के बावजूद एनडीए के झोली में नहीं आ सकी चकाई सीट

विधानसभा चुनाव में एनडीए ने सूबे में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन एनडीए के जोरदार लहर के बावजूद चकाई विधानसभा सीट एनडीए अपनी झोली में नहीं ला सका.

निर्दलीय प्रत्याशी संजय प्रसाद ने बिगाड़ा सुमित सिंह के जीत का समीकरण

सावित्री देवी के वोटरों में रही एकजुटता

सोनो. विधानसभा चुनाव में एनडीए ने सूबे में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन एनडीए के जोरदार लहर के बावजूद चकाई विधानसभा सीट एनडीए अपनी झोली में नहीं ला सका. यह न सिर्फ यहां से जदयू प्रत्याशी सुमित सिंह के लिए झटका है, बल्कि एनडीए कुनबे के लिए भी टीस भरा रहा. एनडीए से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े पूर्व मंत्री सुमित कुमार सिंह की पकड़ क्षेत्र में सभी जातियों पर होने के बावजूद उन्हें बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा. यह सीट राजद के खाते में गयी और सावित्री देवी 12 हजार 972 मतों से चुनाव जीत गयी. परिणाम के बाद यह चर्चा आम है कि निर्दलीय प्रत्याशी संजय प्रसाद ने ही सुमित सिंह के जीत के समीकरण को बिगाड़ दिया. जदयू से बागी होकर निर्दलीय चुनावी समर में उतरे संजय प्रसाद ने 48 हजार 65 मत प्राप्त किया. कहा जा रहा है कि इस मत का बड़ा आंकड़ा एनडीए का ही है. यही मत सुमित सिंह को जीत से दूर ले गया. दरअसल 2020 में संजय प्रसाद जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े थे. उस समय जदयू का टिकट न मिलने पर सुमित सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े और जीत भी दर्ज की. सावित्री देवी को 5082 मत से पराजित करने में कामयाब हुए थे.

जदयू से टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय लड़े संजय प्रसाद

इस बार 2025 में जदयू के टिकट को लेकर स्थिति विपरीत हो गयी. जदयू के टिकट की उम्मीद लगाए संजय प्रसाद इस बार जदयू के टिकट से वंचित हो गए. जदयू का टिकट सुमित सिंह को मिला जिसके बाद संजय प्रसाद भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में कूद पड़े और जमकर पसीना बहाया. हालांकि वे परिणाम में एक बार पुनः तीसरे नंबर पर रहे. इस सेंधमारी ने एनडीए प्रत्याशी सुमित सिंह को जीत से दूर कर दिया. हालांकि सुमित सिंह की ओर से चुनावी प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं रही. उन्होंने भी हर गांव हर क्षेत्र पहुंचकर नीतीश कुमार के विकास की बात को लोगों तक पहुंचाने में सफल रहे. उनके खुद का भी क्षेत्र में बड़ा वोट बैंक है. इसके अलावे नीतीश के द्वारा महिलाओं को दिए गए फायदे का लाभ भी उन्हें मिला. लोगों ने सरकार के विकास कार्य को समर्थन भी दिया बावजूद इसके हर बार की तरह जातीय समीकरण भी पूरी तरह हावी रहा. संजय प्रसाद के चुनावी मैदान में आने से भूमिहार वोट उनके पक्ष में गोलबंद हुए, जिसका सीधा नुकसान एनडीए को मिला. भूमिहार के अलावे भी अन्य जातियों में संजय प्रसाद ने अपनी पहुंच बेहतर तरीके से बनाया. वे लगातार गांव-गांव, टोला-टोला पहुंचकर लोगों से संपर्क साधा और अन्य जाति के मतदाताओं में अपनी पकड़ बनाया. इस तरह एनडीए के पारंपरिक वोटरों की बड़ी संख्या संजय प्रसाद की ओर खिसक गया जिससे सुमित सिंह को नुकसान हुआ. वहीं अगर बात महागठबंधन को लेकर की जाय तो राजद प्रत्याशी सावित्री देवी का जातीय आधार पर भी यहां बड़ा वोट बैंक है. हमेशा उन्हें बड़ी संख्या में उनका कोर वोट मिलता रहा है. उनके पति स्व फाल्गुनी प्रसाद यादव का यह क्षेत्र रहा है जिस कारण उनके समर्थक आज भी सावित्री देवी के पक्ष में गोलबंद रहते है. इस बार के चुनाव में भी यादव व अल्पसंख्यक मतदाता उनके पक्ष में एकजुट रहे. इन सबके परिणाम स्वरूप सावित्री देवी 80 हजार से भी अधिक मत लाने में सफल रही और चुनाव 12 हजार 972 मतों से जीत गयी.

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