बरौली. शहर में आस्था और गंगा-यमुनी तहजीब के लिए प्रसिद्ध काली पूजा की तैयारी अपने परवान पर है. आज रात धन की देवी मां लक्ष्मी के साथ वीरता की देवी मां काली भी पूजी जायेंगी. मूर्ति लगभग तैयार है और फाइनल टच बाकी है, जो अंतिम चरण में है. मूर्तिकार तेजी से प्रतिमा बनाने में लगे हैं, तो शहर के हिंदू-मुस्लिम युवा पंडाल सजाने के काम में युद्धस्तर पर लगे हैं. काली पूजा को सफल बनाने में यहां न केवल हिंदुओं का बल्कि इससे अधिक कहीं मुस्लिम युवाओं का योगदान तथा सहयोग प्रतिवर्ष रहता है. यह क्षेत्र का अपने आप में ऐसा धार्मिक आयोजन है जिसमें न कोई हिंदू होता है न मुसलमान, यदि होते हैं तो यहां केवल इंसान, जो सभी धर्मों को समान रूप से देखते हैं, आदर करते हैं तथा सर्वधर्म समभाव की भावना से ओतप्रोत रहते हैं. पूजा स्थल पर पंडाल बनाने के लिए मुस्लिम युवक कारीगरों के साथ लग कर बांस-बल्लियां बांधते दिख रहे हैं तथा चंदा उठाते भी देखे जा रहे हैं. इतना ही नहीं, मुस्लिम युवा शुरू से लेकर मूर्ति विसर्जन तक तन-मन-धन से न केवल लगे रहते हैं बल्कि पूजा और मेला स्थल पर श्रद्धालुओं की देखरेख और सुविधा का ख्याल भी रखते हैं. मां काली की पूजा के बाद अगले दिन सुबह से हीं मेला लग जायेगा तथा रात में लुप्त होती कव्वाली की परंपरा तो बनारस की नाज साबरी तथा कोलकाता के दिलवार साबरी जीवंत करेंगे. पुन: अगले पूरे दिन आजमगढ़ के लोक नर्तक फरी कलाकार अपनी कला से लोगों को अचंभित करेंगे तथा रात में पुन: सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होगा. यहां लोग दो रात तथा दो दिन मेला तथा कई तरह के रंगारंग कार्यक्रमों का आनंद ले सकेंगे. पूजा तथा मेले को सफल बनाने के लिए पूर्व चेयरमैन नारद चौधरी के साथ समिति लगी हुई है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

