बैकुंठपुर. स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा होते ही बैकुंठपुर प्रखंड के वीर सेनानियों का नाम गर्व से लिया जाता है. इन्हीं में से एक थे दिघवा दक्षिण पंचायत के खजुहट्टी गांव निवासी बाबू ठाकुर सिंह, जिन्होंने जंग-ए-आजादी में अपने साहस और देशभक्ति की अमिट छाप छोड़ी. तीन जुलाई 1901 को जन्मे बाबू ठाकुर सिंह 1934 के आंदोलन से ही सक्रिय हो गये थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने बैकुंठपुर थाने का मुख्य गेट बंद कर तिरंगा झंडा फहराकर ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी. यह साहसिक कदम उस दौर में स्वतंत्रता सेनानियों के अदम्य हौसले का प्रतीक था. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उन्हें कई बार जेल की यात्रा करनी पड़ी. छपरा और भागलपुर जेल में उन्होंने समय बिताया और तीन महीने का सश्रम कारावास भी भुगता. लेकिन जेल से रिहा होने के बाद उनके हौसले और बुलंद हो गये. उन्होंने एक के बाद एक साहसिक कारनामों से अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी. 46 वर्ष की आयु में अपने साथियों के साथ उन्होंने देश को आजाद कराने के महान लक्ष्य को साकार किया. आज उनके सम्मान में खजुहट्टी गांव में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित है. स्वतंत्रता सेनानी बाबू ठाकुर सिंह की पुण्यतिथि पर उनके वंशज, जिनमें कांग्रेस पार्टी के किसान नेता नरेंद्र कुमार सिंह भी शामिल होकर श्रद्धापूर्वक उन्हें याद करते हैं. जयंती और 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर स्थानीय लोग माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. बैकुंठपुर आज भी इस वीर सपूत पर गर्व करता है, जिन्होंने अपने साहस और बलिदान से स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा.
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