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Gopalganj News : आसमा खातून ने शिव की साधना में लगा दिया जीवन

कभी नमाज अदा करने वाली आसमा आज सनातन धर्म अपना मंदिर की पुजारी बन गयी है. महादेव की साधना करते मिलती है. सुबह-शाम भगवान के चरणों में भजन कर रही है. 30 साल पहले इस्लाम को छोड़कर हिंदू बनी आसमा आज बउक दास के नाम से विख्यात है.

संजय कुमार ”अभय”, गोपालगंज

कभी नमाज अदा करने वाली आसमा आज सनातन धर्म को अपना कर मंदिर की पुजारी बन गयी है. महादेव की साधना करते मिलती है. सुबह से शाम तक भगवान के चरणों में भजन कर रही है. इतना ही नहीं 30 साल पहले इस्लाम को छोड़कर हिंदू बनी आसमां आज बउक दास के नाम से विख्यात है. इनके बहुत सारे अनन्य भक्त भी हैं. फिलहाल बउक दास एक बार फिर चर्चा में है. क्योंकि, पिछले पांच साल से इन्होंने अन्न त्याग कर दिया है. सिर्फ आलू और फल खाकर जिंदगी गुजर रही हैं. एक सड़क के निर्माण को लेकर उनका यह अन्न सत्याग्रह लगातार जारी है. बउक दास लोगों के आवागमन की दिक्कतों को लेकर काफी परेशान थी. दो दशक पहले तक चचरी पुल ही सहारा था, जिसकी देखरेख भी इन्हें ही करनी पड़ती थी. यह देखते हुए उन्होंने जराई नदी में एक मचान बनाया और उस पर बैठकर एक वर्षों तक जल सत्याग्रह किया, जिसका नतीजा हुआ कि सरकार के कानों तक यह बात पहुंची और पुल का निर्माण कराया गया. पुल तो बन गया था, लेकिन एप्रोच पथ का निर्माण नहीं हुआ था. पांच साल पहले उन्होंने यह ठाना कि जब तक पुल से पक्के अप्रोच पथ का निर्माण नहीं हो जाता तब तक वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी. जिद के कारण बउक दास की हालत आज खराब हो चुकी है.

कौन है बउक दास, क्यों बनी पुजारी

भोरे से सेट डेरवा गांव में एक मुस्लिम परिवार में आसमा खातून का जन्म हुआ था. उसने जब होश संभाला, तो नमाज अदा करने से लेकर उसे मदरसा भेजा जाने लगा. उसके मन में कुछ और ही चल रहा था. पास ही बने मंदिर की घंटियां उसे अपनी और आकर्षित कर रही थीं. कई बार वह मंदिर जाकर पूजा भी करती थी. परिवार के लोग और अन्य धर्म गुरुओं के रोक के बावजूद उसके पूजा करने का सिलसिला जारी रहा. बाद में जब काफी दबाव बनने लगा, तो 30 साल पहले उसने घर छोड़ दिया. घूमते-घूमते उसकी मुलाकात फुलवरिया थाना क्षेत्र के मदरवानी गांव के रामाकांत यादव से हो गयी. तब दोनों में प्रेम हुआ और आसमा रामांति बन गयी, लेकिन इसी बीच रमाकांत यादव किसी आपराधिक मामले में जेल चला गया, जहां उसकी मृत्यु हो गयी.

अकेले ही कर दिया था पति का अंतिम संस्कार

गोपालगंज मंडल कारा में रमाकांत यादव की मृत्यु हो गयी थी. इसकी खबर जब रामनाथी को लगी तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी. रमाकांत यादव के परिवार के लोगों ने उसका साथ नहीं दिया. फिर अकेले ही उसने अपने पति का अंतिम संस्कार कर दिया. अब उसके पास रहने का ठिकाना था ना खाने को अन्न्र, लेकिन मन भगवान की भक्ति में रम रहा था. उसकी ससुराल की बगल से होकर झरही नदी के किनारे उसने अपना ठिकाना बना लिया. झरही नदी के किनारे के जंगलों को साफ कर एक कुटिया बनाकर रामांती उसमें रहने लगी और लोगों से बातचीत करना बंद कर दिया. यह वह दौर था जब बारूद की गंध यहां की पहचान बन चुकी थी. झरही नदी का किनारा दुर्दांत अपराधियों का ठिकाना था. उसके बीच में रमांती कुछ बोल नहीं रही थी. उसने भक्ति की लौ जलानी शुरू कर दी. एक मंदिर की नींव रखी गयी. देखते-ही-देखते वहां भाव आश्रम बन गया. हर तरफ पेड़-पौधे लग गये. उसके नहीं बोलने के कारण लोगों ने उसका नाम बउक दास रख दिया. बउक दास ने एक दशक पूर्व यहां भोलेनाथ का भव्य मंदिर बनाया. उनके नेतृत्व में ही रुद्र महायज्ञ हुआ. आज बउक दास का इतना प्रभाव है कि इलाके में उनके काफी भक्त भी हुए. आज भी वह अपने बीते हुए दिनों को याद करती हैं, तो कहती हैं कि उनका जन्म ही भगवान की भक्ति के लिए हुआ था. वह गलती से मुसलमान के घर पैदा हो गयी थी. उन्हें हिंदू के घर में आना चाहिए था.

एक आवाज पर आता है कौओं का झुंड

बउक दास की आवाज को वहां के पक्षी भी पहचानते हैं. प्रतिदिन कौओं के झुंड को अपने हाथों से वह दाना खिलाती हैं. उनकी एक आवाज पर कौओं का झुंड पहुंच जाता है. प्रतिदिन उनके लिए वहां भोजन तैयार कराया जाता है. इसके बाद उन्हें बुलाकर यह अपने हाथों से भोजन देती हैं.

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