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एक तरफ जश्न तो दूसरी तरफ निराशा

एक तरफ जश्न तो दूसरी तरफ निराशा हेडिंग :- नववर्ष की जश्न पर भारी पेट की आगमासूम बच्चों की मेहनत पर टिकी है परिवार की रोटीठंड में किकुरे पीठ पर बोरा लिये कचरा से शुरू होता है दिनफोटो – 9 – थावे में जश्न मनाते बच्चेफोटो- 10 – शहर के बंजारी रोड में कचरा से […]

एक तरफ जश्न तो दूसरी तरफ निराशा हेडिंग :- नववर्ष की जश्न पर भारी पेट की आगमासूम बच्चों की मेहनत पर टिकी है परिवार की रोटीठंड में किकुरे पीठ पर बोरा लिये कचरा से शुरू होता है दिनफोटो – 9 – थावे में जश्न मनाते बच्चेफोटो- 10 – शहर के बंजारी रोड में कचरा से प्लास्टिक चुनते बच्चेसूर्य की किरण नववर्ष की लालीमा लिये निकली. नयी उमंग, उम्मीद उत्साह लेकर आयी है. नववर्ष का उत्साह हर तरफ देखा गया. इस उत्साह के बीच एक ऐसा तबका, जहां न तो उम्मीद है और न ही जीवन से कोई आशा. सुबह से शाम तक मजदूरी मेहनत के बदौलत शाम का चूल्हा जल पाता है. नव वर्ष के जश्न के बीच जीवन के दो रंग देखने को मिले. प्रस्तुत है समाज के दूसरे पहलू के दर्द पर आधारित यह रिपोर्ट.नागेंद्र कुमार श्रीवास्तव, गोपालगंजहैप्पी न्यू इयर से नववर्ष का जश्न चारों तरफ देखने को मिल रहा था. आधी रात से ही पटाखा फोड़ कर नववर्ष की स्वागत की जा रही थी. सूर्य की पौ फटते ही समाज का एक तपके के मासूम बच्चे पीट पर बोरा लिये कचरो में अपना भविष्य तालाश रहे थे. मासूम आंखे नववर्ष की जश्न में जाने वाले बच्चे को देख ललचा रही थी. उनका भी सपना था कि परिजनों के साथ पिकनिक मनाने जाते. बच्चों के साथ खाते पीते मौज करते. खिलौना के साथ मस्ती करते. यह तसवीर थावे मंदिर परिसर की है जहां बच्चे मस्ती कर रहे हैं. वही दूसरी तसवीर बंजारी रोड की है. जहां सुबह सात बजे ठंड के बीच बच्चे कचरा से प्लास्टिक चुन रहे थे. ये बच्चे बंजारी गांव के रहने वाले अमर प्रसाद की बेटी काजल (सात वर्ष)तथा दूसरा नौशाद देवान का बेटा शेर (5 वर्ष) थे . दोनों एक घंटा पहले से शहर के कचरों के बीच प्लास्टिक की बोतल आदी चुनने में लगे थे. जब पूछा गया तो पता चला की अमर प्रसाद रिक्शा चलाता है. बच्चे दिन भर कचरा बीन कर 30-40 रुपये कमा लेते है. जबकि नौशाद कबाड़ चुनने का ही काम करता है. बड़ी मुश्किल से पूरे परिवार के लोग मेहनत करते है तब घर का चुल्हा जलता है. यह स्थिति सिर्फ इन्ही दो बच्चों की नहीं बल्कि जिले के 19867 ऐसे बच्चे है जिनका तकदीर कचरों के बीच फंसी हुई है. तोहरा नसीब में पढ़ाई नइखे….कचरा में भविष्य तलासने वाले बच्चे आज तक विद्यालय का मुंज नहीं देख पाये है. इनका भी सपना था कि और बच्चों के साथ कॉपी, किताब लेकर ड्रेस में स्कूल पहुंचे. काजल से स्कूल जाने की बात पूछने पर वह रो पड़ी. उसका एक ही जवाब था माई कहेले तोहरा नसीब में पढ़ाई नइखे. सर्व शिक्षा अभियान इन बच्चों से कोसो दूर है. विद्यालय से बच्चों को जोड़ने के लिए विशेष अभियान चलाया जाता है लेनिक यह अभियान इन तक नहीं पहुंच सका है. नववर्ष पर भारी पड़ रहा बाढ़ पीड़ितों का दर्दविशनपुर तटबंध पर नववर्ष के मौके पर भी उदासी छायी हुई थी. गांव के अधिकांश मरद शराब की नशे में धूत थे. कई घरों की चूल्हा ठंडा पड़ा हुआ था. गांव की तेतरी देवी की माने तो वर्ष 2011 में गंडक नदी के कटाव से विस्थापित होकर यहां बसे है. जब से बसे है इस झोपड़ी में पूरी दुनिया सिमटी हुई है. गांव की सुख चैन को अवैध शराब ने छीन ली है. शराब से कुछ बचे तब न घर का चूल्हा जले. इनके लिए नववर्ष और होली, दिवाली एक समान है.

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