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संत ज्ञानेश्वर के शिष्य की हत्या
गोपालगंज : यूपी के बाराबंकी में संत ज्ञानेश्वर के शिष्य व आश्रम के उत्तराधिकारी राम सहाय सिंह की रविवार की रात गोली मार कर हत्या कर दी गयी. हत्या की खबर से कुचायकोट थाना क्षेत्र के बंगरा स्थित आश्रम पर वीरानगी छायी हुई है. यहां के शिष्य बाराबंकी चले गये हैं. हत्या के पीछे संत […]
गोपालगंज : यूपी के बाराबंकी में संत ज्ञानेश्वर के शिष्य व आश्रम के उत्तराधिकारी राम सहाय सिंह की रविवार की रात गोली मार कर हत्या कर दी गयी. हत्या की खबर से कुचायकोट थाना क्षेत्र के बंगरा स्थित आश्रम पर वीरानगी छायी हुई है. यहां के शिष्य बाराबंकी चले गये हैं.
हत्या के पीछे संत ज्ञानेश्वर के नेपाल, बिहार, दिल्ली, हरिद्वार व बाराबंकी के आश्रमों से जुड़े सात लोगों को नामजद किया गया है. इनमें गोपालगंज के फुलवरिया थाना क्षेत्र के माड़ीपुर के रहनेवाले संत ज्ञानेश्वर के शिष्य हरेराम चौधुर को मुख्य अभियुक्त बनाया गया है. पुलिस वारदात के पीछे उत्तराधिकार का विवाद मान रही है.
वाराणसी के मोकलपुर थाना पांडेयपुर के रहनेवाले राम सहाय सिंह उर्फ ठाकुरजी कोमल सिंह के पुत्र थे. बाराबंकी के आश्रम में सुबह आरती के वक्त उनकी हत्या का पता चला.
उनके सिर में पीछे से गोली मारी गयी थी. आश्रम के ही सूर्यकांत मणि की तहरीर पर पुलिस ने बिहार के हरेराम चौधरी, रैसंडा के प्रताप चंद्र, विराट नगर नेपाल के आलोक भट्ट, हरिद्वार आश्रम के दुर्गेश पांडेय व प्रेम राज, दिल्ली आश्रम के राम नेवाज गुप्ता व दिलीप गुप्ता को नामजद किया गया है.
हरेराम चौधरी को चार वर्ष पूर्व आश्रम विरोधी गतिविधियों के कारण निकाल दिया गया था. रैसंडा का प्रताप चंद उसका करीबी है. अपर पुलिस अधीक्षक कुलदीप नारायण ने बताया कि आश्रमों की अकूत संपत्ति हत्या का कारण हो सकती है. संत के परिवार से जुड़े लोगों पर भी नजर रखी जा रही है.
परिजनों पर टिकी शक की सूई !
पुलिस के शक की सूई संत के परिजनों के इर्द-गिर्द टिकी हुई है. राम सहाय सिंह की दबंगई के चलते ही संत ज्ञानेश्वर की हत्या के बाद उनके भाइयों को आश्रम छोड़ना पड़ा था.
आश्रम के सूत्रों की मानें, तो संत के भाई और भतीजे आश्रम की अपनी संपत्ति पर काबिज होने के लिए प्रयत्नशील थे. संत ज्ञानेश्वर की हत्या 10 फरवरी, 2006 को उस समय कर दी गयी थी, जब वे इलाहाबाद कुंभ मेले से लौट रहे थे. इस मामले में सुल्तानपुर के बाहुबली नेता सोनू सिंह व मोनू सिंह को नामजद किया गया था.
हत्या के बाद राम सहाय सिंह ने न केवल आश्रमों का दायित्व संभाला, बल्कि उनके अनुशासन के डंडे से भयभीत होकर संत ज्ञानेश्वर के शिष्य इंद्रदेव तिवारी व परमानंद ने आश्रम भी छोड़ दिया था. आश्रम के सूत्रों का कहना है कि संपत्ति को लेकर दस साल पहले जो विवाद शुरू हुआ, उसमें दो गुट बन गये थे. राम सहाय सिंह की हत्या के बाद उनके करीबी समर्थक नजर नहीं आये.
पूरे आश्रम में खौफ इस कदर पसरा हुआ है कि आश्रम पर रहनेवाले लोग अपने कमरे से नहीं निकले. परिजनों को आशंका थी कि राम सहाय सिंह ने संत ज्ञानेश्वर की हत्या के आरोपितों सांठ-गांठ कर ली थी.
राम सहाय को पिपराधाम में दी गयी समाधि
संत ज्ञानेश्वर के उत्तराधिकारी व आश्रमों के कर्ता-धर्ता राम सहाय को संत ज्ञानेश्वर की जन्मस्थली देविरया के बघौचघाट क्षेत्र के पिपरा भुआल गांव स्थित पिपराधाम आश्रम में समाधि दी गयी.
इस दौरान विभिन्न आश्रमों के संत भी मौजूद थे. शवयात्रा गांव में ही करीब पांच सौ मीटर दूर निर्माणाधीन आश्रम पहुंची. 2.45 बजे आश्रम की बगल में उन्हें समाधि दी गयी.
आश्रमों के व्यवस्थापक कमल जी सहित अन्य गुरु भाइयों ने बताया कि परमधामवासी संत ज्ञानेश्वर स्वामी सदानंद जी ने कहा था कि आश्रम के प्रधान सचिव राम सहाय के परमधामवासी होने के उपरांत इनकी समाधि मेरी जन्मस्थली पिपरा भुआल में दी जायेगी.
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