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शरद पूर्णिमा आज, रात में होगी अमृत की बरसात

गोपालगंज : आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा की मान्यता है. आरोग्य-ऐश्वर्य व सुख-समृद्धि कामना का यह पर्व इस बार पांच अक्तूबर को पड़ रहा है. इस दिन स्नान-दान, व्रत के साथ ही कोजागरी व्रत की पूर्णिमा भी मनायी जायेगी. पूर्णिमा तिथि चार-पांच अक्तूबर की रात 12.54 बजे लग रही है, जो […]

गोपालगंज : आश्विन शुक्ल पूर्णिमा के सनातन धर्म में शरद पूर्णिमा की मान्यता है. आरोग्य-ऐश्वर्य व सुख-समृद्धि कामना का यह पर्व इस बार पांच अक्तूबर को पड़ रहा है. इस दिन स्नान-दान, व्रत के साथ ही कोजागरी व्रत की पूर्णिमा भी मनायी जायेगी. पूर्णिमा तिथि चार-पांच अक्तूबर की रात 12.54 बजे लग रही है, जो पांच-छह अक्तूबर की रात 12.07 बजे तक रहेगी.

ज्योतिषाचार्य पं. राजेश्वरी मिश्रा के अनुसार शास्त्र सम्मत है कि शरद पूर्णिमा पर प्रदोष व निशिथ काल में होनेवाली पूर्णिमा ली जाती है. अत: शरद पूर्णिमा व कोजागरी व्रत की पूर्णिमा पांच अक्तूबर को मनायी जायेगी. कार्तिक मास महोत्सव की तैयारियों का सिलसिला इस दिन शुरू होगा. देव-पितृ के पथ प्रदर्शन कामना से प्रज्वलित किये जानेवाले आकाश दीप भी पूर्णिमा की रात आकाश में टंग जायेंगे.

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष में सिर्फ एक बार शरद पूर्णिमा पर ही चंद्रमा षोडश कलाओं से युक्त और उसकी किरणों से अमृत वर्षा होती है. इस विशेषता के कारण शृंगार रस के साक्षात स्वरूप प्रभु श्रीकृष्ण ने इसे रासोत्सव के लिए उपयुक्त माना. शरद पूर्णिमा की सुबह आराध्य देव को श्वेत वस्त्राभूषण से सज्जित कर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए. रात में गाय के दूध का घी-मिष्टान्न मिश्रित खीर प्रभु को अर्पित करना चाहिए. मध्याकाश में स्थित पूर्ण चंद्रमा का पूजन करना चाहिए.
आयुर्वेद शास्त्र ने नक्षत्राधिपति चंद्रमा को औषधियों का स्वामी माना है. इस रात को खीर बना कर चंद्रमा सामने रखने से चंद्र किरणों में औषधीय अमृत गुण आ जाता है. इसके सेवन से जीवन शक्ति मजबूत होती है. मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी ऐरावत पर सवार हो पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए आती हैं और पूछती हैं-‘को जागृयेति’.
व्रत व भजन-पूजन के साथ रतजगा कर रहे भक्तों को यश-कीर्ति व समृद्धि का आशीष देती हैं. विशेष पर ऐरावत पर सवार भगवान इंद्र व माता लक्ष्मी का पूजन और उपवास करना चाहिए. रात में सविधि पूजन कर घर-बाहर, मंदिरों में यथा शक्ति दीप जलाना चाहिए. प्रात:काल इंद्र-लक्ष्मी का पूजन कर ब्राह्मणों को खीर का भोजन करा कर वस्त्रादि-दक्षिणा देना चाहिए. इस दिन दुर्गोत्सव की पूरक पूजा के रूप में लक्ष्मी पूजन (लक्खी पूजा) का विधान है.

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