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बराबर की गुफाओं को विश्व धरोहर में शामिल करने की जरूरत

संरक्षण के अभाव में बर्बाद हो रही प्राचीन धरोहर

बोधगया. मगध विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग के प्राध्यापकों व पुरातत्वविदों की टीम ने शनिवार को बराबर का पुरातात्विक सर्वेक्षण व शैक्षणिक भ्रमण किया. सर्वेक्षण कार्य का नेतृत्व विभागाध्यक्ष डॉ सत्येंद्र कुमार सिन्हा व वरीय प्राध्यापक प्रो सुशील कुमार सिंह द्वारा किया गया. टीम द्वारा बराबर पहाड़ी पर स्थित प्राचीन गुफाओं का सर्वेक्षण किया गया व बताया गया कि ये विश्व में सबसे प्राचीनतम मानव निर्मित गुफाएं है, जिन्हें मौर्यकाल में निर्मित किया गया था. ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित इन गुफाओं को मौर्यकाल की उसी विशेष तकनीक द्वारा तरास कर चिकना और चमकदार बनाया गया है जिस तरह मौर्य सम्राट अशोक के स्तंभों को बनाया गया था. इन गुफाओं पर भी प्राचीन अभिलेख खुदे हुए हैं जिससे जानकारी मिलती है कि इन गुफाओं का निर्माण लगभग 2500 वर्ष पूर्व मौर्य राजाओं द्वारा आजीवक साधकों के लिए साधना करने के निमित्त बनाया गया था. विभाग की टीम द्वारा सभी गुफाओं यथा, सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा तथा कर्ण चौपर गुफा का गहनतापूर्वक अन्वेषण करते हुए बताया गया कि प्राचीनकाल की उत्कृष्ट तकनीक एवं वास्तुकला से निर्मित ये गुफाएं विश्व की धरोहर हैं, जिसे यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में शामिल किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि पुरातात्विक धरोहर के बारे में अभी भी बहुत शोध किये जाने की आवश्यकता है, जिससे प्रमाणिक इतिहास प्रकाश में आयेगा. साथ ही, इस धरोहर की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा गया कि इस दुर्लभ पुरातात्विक स्मारक की सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कोई प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. इस अतुलनीय धरोहर के आसपास कचरे और गंदगी फैली हुई है जो अपने गौरवशाली अतीत के प्रति निरादर और वर्तमान की अकर्मण्यता को दर्शाता है. इसके लिए राज्य सरकार या जिला प्रशासन द्वारा कोई व्यवस्था नहीं है. गुफाओं के भीतर दरारें पड़ने से बारिश के पानी का रिसाव होने लगा है जिससे भीतरी दीवारों में क्षरण हो रहा है. गुफाओं के प्रवेश द्वार पर प्राचीन लिपि में लेख खुदे हुए हैं जिसके संरक्षण के लिए भी कोई प्रयास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नहीं किये गये, जिससे ये आनेवाले पीढ़ियों के लिए सुरक्षित नहीं रह पायेंगे. राज्य सरकार द्वारा इस विश्वस्तरीय धरोहर को पर्यटन के रूप में विकसित करने हेतु कोई प्रयास नहीं किया गया है जबकि इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित बाबा सिद्धेश्वरनाथ मंदिर के लिए कई तरह की व्यवस्था की गयी है. विभाग की टीम द्वारा सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से आग्रह किया जायेगा कि इस उत्कृष्ट पुरातात्विक धरोहर की सुरक्षा और संरक्षण के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाये, ताकि भविष्य में आनेवाली पीढ़ियों के लिए गौरवशाली अतीत के इस स्मारक को बचाया जा सके.

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Prabhat Khabar News Desk
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