काव्य संध्या 586 आयोजित
फोटो- गया- कार्यक्रम में शामिल लोग
संवाददाता, गया जी आजाद पार्क स्थित जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में शनिवार को काव्य संध्या 586 का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सभापति सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र व संचालन उदय सिंह ने किया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व सभापति डॉ रामकृष्ण उपस्थित रहे. काव्य संध्या का शुभारंभ विजय श्री ने अपने कृषि गीत- धनवा के लगलई कटनिया धान काटे कमिनिया… से की. उदय सिंह ने कहा- अपने देश के खातिर हम सब खड़े हैं सीना तान, हम भारत के वीर जवान. डॉ निरंजन श्रीवास्तव ने कहा-अब पछताने से क्या?? फायदा क्यों करते हो संताप, लोकतंत्र का महापर्व देखो, अब हो गया समाप्त. सहज कुमार ने कहा- कांटा कठोर है, रास्ता कठोर है तो डर जाऊं क्या?? देख दुविधा मर जाऊं क्या?? बिंदेश्वरी प्रसाद सिंह ने गजल में गाया- पास उनके हैं जमीनें कारखाने और भी, चाहिए उन्हें दौलत खजाने और भी. मुद्रिका सिंह ने व्यंग्य किया- मैं समझ न क्या?? लिखूं, क्या?? नहीं लिखूं, मन हमेशा अन्तर्द्वंद में उलझा रहता है. युवा गीतकार अजीत कुमार ने गीत में गाया- मैंने चाहा गिरे को उठाऊं, पर मुझे ही गिराने लगे हैं. एसएम शमसुद्दीन ने हिन्दी को आगे बढ़ाने की बात कही. विपिन कुमार ने कहा- प्रेम नहीं खेतों में नफरत की फसलें लहराने लगी हम. शंकर प्रसाद ने अपनी कविता में कहा- जिसका कंचन निरोग शरीर है, वही सबसे अमीर है. डॉ प्रकाश गुप्ता ने कहा- अदभूत अविस्मरणीय आया है परिणाम, खिला कमल जैसे अवतरित हुए राम. नन्द किशोर सिंह ने कहा- सरकार जी सरकार जी! उद्योग धंधे लगाने की है दरकार जी! विजय सिंह ने कहा- चोर बेईमान के हरा के उनका घरे बैठा देल. खालिक हुसैन परदेसी ने गजल में गाया- महफिल में अपना प्यार छुपाओगे किस तरह, उनकी नजर से दिल को बचाओगे किस तरह. डॉ राम परीखा सिंह ने कहा- मतदान किया, मतदान किया, किसी को हंसाया किसी को रुलाया. सुमंत ने गीत में गाया – अपने नीतीश कुमार किस्मत के हैं साढ़, 10 वीं बार वे फिर से झंडा देंगे टांग. सभापति सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने कहा- एनडीए के जीत और महागठबंधन के हार हे, अइसन करिश्मा की भौचक बिहार हे. अंत में महामंत्री ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया.
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