Pitru Paksha 2025: सनातन धर्म में माना जाता है कि भाद्रपद/आश्विन के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है. इस दौरान पितरों (पूर्वजों) की याद में पिंडदान और तर्पण किया जाता है. लोकविश्वास है कि इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार-समाज पर उनका आशीर्वाद बना रहता है. मान्यता है कि पिंडदान तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं, घर-परिवार में कल्याण होता है और आने वाली पीढ़ियों का भी भला होता है. इसे पूर्वजों के प्रति आभार प्रकट करने का सबसे प्रमुख धर्मकर्म माना गया है. श्राद्ध पक्ष के अलावा भी देशभर में कुछ प्रमुख तीर्थों—जैसे गया, प्रयागराज, हरिद्वार, पुष्कर, पहलगाम/गोकर्ण में पिंडदान किया जाता है. इनमें गयाजी सबसे महत्वपूर्ण माना गया है.
गयाजी क्यों माना जाता है खास?
शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, गया में पिंडदान करने से 108 कुलों और आने वाली सात पीढ़ियों तक का उद्धार होता है—ऐसा कहा गया है. पुराणों में गया को मोक्ष स्थली के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां साक्षात भगवान विष्णु पितृदेव के रूप में विराजमान रहते हैं. गया बिहार राज्य में स्थित है और फल्गु नदी के तट पर किया गया पिंडदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति गया जाकर पिंडदान करता है वो हमेशा के लिए पितृऋण से मुक्त हो जाता है. इसके बाद उसे श्राद्ध करने की जरूरत नहीं रह जाती. पुराणों में बताया गया है कि गया के फल्गु नदी तट पर ही भगवान राम ने अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था.
पितृपक्ष के दौरान सबसे ज्यादा लोग जुटते हैं यहां
गया में हर साल लाखों लोग पिंडदान करने आते हैं. मान्यता है कि भगवान राम ने यहां अपने पिता राजा दशरथ के लिए श्राद्ध और तर्पण किया था, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले. महाभारत काल में पांडवों ने भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए यही परंपरा निभाई थी. पूरे साल यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान सबसे ज्यादा लोग जुटते हैं. पितृ पक्ष के समय यहां एक बड़ा मेला भी लगता है, जिसमें हर साल हजारों लोग भाग लेते हैं.
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